क्या नैनार नागेन्द्रन बदल पाएँगे तमिलनाडु में बीजेपी की किस्मत?

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पूनम शर्मा
तमिलनाडु की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लंबे समय से बाहरी खिलाड़ी की भूमिका निभाती रही है। जहां द्रविड़ दलों—डीएमके और एआईएडीएमके—का दशकों से प्रभुत्व रहा है, वहीं भाजपा को अकसर ‘सोशल मीडिया पार्टी’ करार दिया गया। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में 11% वोट शेयर हासिल करने के बावजूद एक भी सीट न जीत पाने के बाद, भाजपा ने introspection के रास्ते पर चलने का फैसला किया है। इस पुनर्रचना की कमान अब नैनार नागेन्द्रन के हाथों में है—एक ऐसे नेता जो विवादों से दूर रहते हैं, लेकिन संगठनात्मक दृष्टि से मजबूत माने जाते हैं।

एक हार, जिसने दिशा बदली

2024 के चुनावों में तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा को तमिलनाडु में सफलता नहीं मिल सकी। खासकर कोयंबटूर सीट पर हार ने कार्यकर्ताओं को गहरे सदमे में डाल दिया। यह वही सीट थी जहां से पार्टी के प्रमुख चेहरा अन्नामलाई चुनाव लड़ रहे थे। आरोप लगे कि लाखों मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे। इस पर पार्टी की चुनावी तैयारी और जमीनी पकड़ पर सवाल उठे।

इसके बाद अन्नामलाई के इस्तीफे और अंतरिम संचालन समिति के कार्यकाल के बाद, नैनार नागेन्द्रन को फरवरी 2025 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। जहां अन्नामलाई तूफानी शैली के लिए जाने जाते थे, वहीं नागेन्द्रन को एक शांत, सोच-समझकर चलने वाला नेता माना जाता है।

बूथ स्तर पर वास्तविकता की तलाश

तमिलनाडु भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती है—बूथ स्तर पर संगठन की मजबूती। पार्टी में वर्षों से शिकायत रही है कि मंडल अध्यक्षों द्वारा भेजे गए कार्यकर्ता आंकड़ों की कभी ज़मीनी जांच नहीं होती।

नैनार नागेन्द्रन ने इस स्थिति को बदलने के लिए एक स्टेटवाइड बूथ वेरिफिकेशन ड्राइव शुरू की है। इसमें कार्यकर्ताओं को उनके गृह ज़िले से बाहर भेजा जा रहा है ताकि किसी भी तरह की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग न हो। हर बूथ पर जाकर सत्यापन किया जा रहा है कि जिन लोगों को कार्यकर्ता बताया गया है, वे असल में सक्रिय हैं या नहीं। साथ ही, बूथों को A, B और C कैटेगरी में विभाजित कर उनकी चुनावी उपयोगिता का मूल्यांकन भी किया जा रहा है।

मतदाता सूची और डेटा-आधारित रणनीति

भाजपा अब डाटा की ताकत को समझ रही है। योजना के अनुसार, शक्ति केंद्र प्रमुख और बूथ अध्यक्षों को मतदाता सूची के गहन विश्लेषण का कार्य सौंपा गया है। इसके तहत परिवारवार वोटर बुकलेट तैयार की जा रही है, ताकि हर कार्यकर्ता यह जान सके कि कौन समर्थक है, कौन विरोधी, और किसे झुकाया जा सकता है।

यह वही रणनीति है जिसे डीएमके और एआईएडीएमके वर्षों से सफलता से अपनाते आए हैं। अब भाजपा भी इसी मॉडल को अपने तरीक़े से लागू करने की कोशिश कर रही है।

संचार कौशल पर फोकस

राजनीति में संचार केवल बयान देने का माध्यम नहीं बल्कि इमेज बिल्डिंग का ज़रिया बन चुका है। नैनार नागेन्द्रन के नेतृत्व में पार्टी ने मीडिया प्रवक्ताओं और सोशल मीडिया इंचार्ज को ट्रेनिंग देना शुरू किया है।

भाजपा नेता आशीर्वथम अचारी के मुताबिक, “भाजपा की अच्छी योजनाओं को डीएमके अपने नाम से प्रचारित कर देती है। हमें सही समय पर सही जानकारी जनता तक पहुंचानी होगी।”

इस दिशा में, पार्टी ने जिला स्तर पर सोशल मीडिया प्रशिक्षकों की तैनाती भी की है, जो न केवल तथ्यात्मक जानकारी देंगे बल्कि “डैमेज कंट्रोल” की स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया भी सुनिश्चित करेंगे।

गठबंधन की नई समझ

तमिलनाडु में गठबंधन राजनीति एक अनिवार्य तत्व है। भाजपा भले ही पहले एआईएडीएमके पर अधिक निर्भर रहती थी, लेकिन अब समीकरण बदल चुके हैं। भाजपा अब कई सीटों पर दूसरे स्थान पर है और इस वजह से उसे राजनीतिक सौदेबाजी में नया आत्मविश्वास मिला है।

पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि दोनों दलों के बीच एक संयुक्त रणनीतिक समिति की ज़रूरत है, जो न केवल चुनावी रणनीति बनाए, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता तालमेल को भी सुनिश्चित करे।

 क्या यह रणनीति रंग लाएगी?

नैनार नागेन्द्रन के नेतृत्व में तमिलनाडु भाजपा जिस नई राह पर चल रही है, वह धीमी लेकिन नींव मजबूत करने वाली राजनीति की ओर इशारा करती है। केवल सोशल मीडिया या ऊपरी प्रचार से परे, यह अभियान संगठन की गहराइयों में उतरने का प्रयास है।

भाजपा यदि इन प्रयासों में निरंतरता बनाए रखती है, और गठबंधन की राजनीति को भी संतुलित तरीके से साधती है, तो वह निकट भविष्य में तमिलनाडु की राजनीति में एक मज़बूत विकल्प बन सकती है। लेकिन इसके लिए केवल संगठन निर्माण नहीं, बल्कि स्थानीय भावनाओं और संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता भी आवश्यक होगी—जिसमें भाजपा को अभी भी लम्बा रास्ता तय करना है।

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