समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 26 जुलाई — इस सप्ताह चीन से जुड़े कई अहम घटनाक्रम सामने आए हैं। बीजिंग में आयोजित यूरोपीय संघ (EU) और चीन के बीच कूटनीतिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे होने पर शिखर वार्ता हुई, जो उम्मीद के विपरीत केवल एक दिन में सिमट गई। वहीं, भारत ने चीन के साथ संबंध सामान्य करने की दिशा में एक और कदम उठाते हुए वीज़ा सेवाओं को बहाल किया। इसके अलावा, तिब्बत स्थित मेडोग डैम परियोजना में भी नई प्रगति दर्ज की गई है।
EU-चीन शिखर वार्ता: सीमित परिणाम
24 जुलाई को बीजिंग में आयोजित EU-चीन शिखर वार्ता को लेकर पहले खबरें थीं कि यह दो दिनों तक चलेगी, लेकिन चीन के अनुरोध पर इसे एक दिन में समाप्त कर दिया गया। इस अचानक लिए गए निर्णय के पीछे कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन इससे दोनों पक्षों के बीच मौजूद तनाव को उजागर किया गया।
इस वार्ता में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने कहा कि EU और चीन के बीच व्यापारिक संबंध “एक निर्णायक मोड़” पर पहुंच चुके हैं। उन्होंने $358 अरब डॉलर के व्यापार असंतुलन को रेखांकित किया जो चीन के पक्ष में है। साथ ही, चीन द्वारा दुर्लभ खनिजों (rare earths) के निर्यात पर लगाए गए नए प्रतिबंधों पर भी चिंता जताई।
इन खनिजों का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, सौर पैनलों और रक्षा उपकरणों में होता है, और चीन इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व रखता है।
भारत-चीन संबंधों में नरमी: वीज़ा सेवा फिर शुरू
एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत ने चीन के लिए वीज़ा सेवाओं को फिर से शुरू करने की घोषणा की है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद के बाद संबंधों में ठंडापन था। सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय व्यापारिक, शैक्षणिक और पर्यटन गतिविधियों को फिर से प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
हालांकि, सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को इस पहल के साथ सतर्क रहना चाहिए, खासकर तकनीकी और संवेदनशील क्षेत्रों में चीन की मौजूदगी को लेकर।
मेडोग डैम परियोजना में प्रगति
चीन की महत्वाकांक्षी मेडोग डैम परियोजना — जो तिब्बत में ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्संगपो) नदी पर बनाई जा रही है — इस सप्ताह चर्चा में रही। नई रिपोर्टों के अनुसार, इस परियोजना के कुछ प्रमुख इंजीनियरिंग चरणों को समाप्त किया गया है, और चीन इसे “विश्व का सबसे शक्तिशाली जलविद्युत डैम” बनाने की ओर अग्रसर है।
भारत पहले ही इस परियोजना पर चिंता जता चुका है क्योंकि इससे ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और पूर्वोत्तर भारत में जल संकट उत्पन्न हो सकता है।
इस सप्ताह के घटनाक्रम यह संकेत देते हैं कि चीन वैश्विक मंच पर अपने वर्चस्व को बनाए रखने की कोशिश में है, लेकिन उसके कुछ कदम — जैसे व्यापारिक असंतुलन, निर्यात नियंत्रण, और मेगा-प्रोजेक्ट्स — अन्य देशों को सतर्क भी कर रहे हैं। वहीं, भारत जैसे देश, जो भू-राजनीतिक रूप से चीन के पड़ोसी हैं, अब रणनीतिक सतर्कता और कूटनीतिक लचीलापन दोनों का सहारा ले रहे हैं।