समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 25 जुलाई — देश में संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने के तहत, केंद्र सरकार ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि को छह महीने और बढ़ाने की राज्यसभा से मंजूरी प्राप्त कर ली है। यह विस्तार 13 अगस्त 2025 से प्रभावी होकर 13 फरवरी 2026 तक लागू रहेगा। यह प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में पेश किया गया था।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पहली बार 13 फरवरी 2025 को लगाया गया था, जब मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को इस्तीफा दे दिया था। उस समय राज्य में भाजपा के भीतर गंभीर राजनीतिक असंतोष और मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच बढ़ते जातीय टकराव के चलते संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था।
उल्लेखनीय है कि मणिपुर में 3 मई 2023 से हिंसा जारी है, जिसमें अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। हाल के महीनों में हिंसा में थोड़ी कमी आई है, विशेषकर पर्वतीय इलाकों में, लेकिन स्थायी शांति अब भी दूर है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत, राष्ट्रपति शासन को छह-छह महीने की अवधि में संसद से मंजूरी लेनी होती है, जब तक राज्य में सामान्य शासन व्यवस्था बहाल न हो जाए।
हालांकि राष्ट्रपति शासन को बढ़ा दिया गया है, लेकिन भाजपा के सहयोगी और एनडीए के विधायक, खासकर मैतेई और कुकी-जो समुदायों से, एक चुनी हुई सरकार की बहाली की मांग कर रहे हैं। राज्यसभा सांसद लिसेम्बा सनाजाओबा ने कहा कि “केवल राष्ट्रपति शासन से जनभावनाएं शांत नहीं होंगी, लोकतांत्रिक सरकार ही सही समाधान है।”
केंद्र सरकार का भी कहना है कि राज्य में जब तक जातीय मेल-मिलाप और स्थिरता नहीं आती, तब तक चुनी हुई सरकार की बहाली मुमकिन नहीं है। उधर सुरक्षा बलों की कार्रवाई भी जारी है, जिसमें इम्फाल और चुराचांदपुर जिलों में हथियार, विस्फोटक और कट्टरपंथी संगठनों के सदस्यों की धरपकड़ की गई है।
राज्य विधानसभा निलंबित है और निकट भविष्य में चुनाव की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में सवाल है: क्या केंद्र सरकार शांति स्थापना को तेज़ करके मणिपुर को दोबारा लोकतंत्र की पटरी पर ला पाएगी?