2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट: सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

मुंबई लोकल ट्रेन धमाका: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाई कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, क्या है आगे?

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  • सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन धमाका मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई।
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले की तेज सुनवाई और कुछ दोषियों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था।
  • महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उठाया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24 जुलाई, 2025: 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों के मामले में आज एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने इस जघन्य आतंकी घटना से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए कुछ अभियुक्तों की अपीलों पर तेजी से सुनवाई करने और कुछ को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया था। महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने यह बड़ा फैसला सुनाया है। इस स्थगन से मामले की जटिल न्यायिक प्रक्रिया में एक नया मोड़ आ गया है, और पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीदें फिर से जागृत हुई हैं।

क्या था 2006 मुंबई ट्रेन धमाका?

11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक सात बम धमाके हुए थे। ये धमाके पश्चिमी रेलवे की ट्रेनों में शाम के व्यस्त समय में हुए थे, जब लोग अपने काम से घर लौट रहे थे। इस भयावह आतंकी हमले में 189 लोग मारे गए थे और 800 से अधिक घायल हुए थे। इन धमाकों ने मुंबई को हिलाकर रख दिया था और पूरे देश में आतंक का माहौल पैदा कर दिया था। जांच एजेंसियों ने इसे लश्कर-ए-तैयबा द्वारा अंजाम दी गई साजिश बताया था।

इस मामले में महाराष्ट्र एटीएस (ATS) ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था और एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, विशेष मकोका (MCOCA) अदालत ने 2015 में 12 आरोपियों में से 12 को दोषी ठहराया था, जिनमें से 5 को मौत की सजा और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश और महाराष्ट्र सरकार की चिंता

विशेष मकोका अदालत के फैसले के खिलाफ दोषियों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश पारित किया था जिसमें निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए कुछ अभियुक्तों की अपीलों पर तेजी से सुनवाई करने और उनमें से कुछ को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि अपीलों की सुनवाई में अत्यधिक देरी हो रही है, जिससे दोषियों के अधिकारों का हनन हो रहा है।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के इस आदेश का विरोध किया। राज्य सरकार का तर्क था कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़ा है, और ऐसे जघन्य मामलों में दोषियों को जमानत पर रिहा करने से समाज में गलत संदेश जाएगा और न्याय की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। सरकार ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया था।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और आगे की प्रक्रिया

आज सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें दोषियों की अपीलों की त्वरित सुनवाई और कुछ को जमानत देने का निर्देश था। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि मामले की सुनवाई तब तक लंबित रहेगी जब तक कि शीर्ष अदालत इस मुद्दे पर अंतिम फैसला नहीं सुना देती।

यह सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है, जो ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया की संवेदनशीलता को दर्शाता है। उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की विस्तार से सुनवाई करेगा और सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ही कोई अंतिम निर्णय देगा। पीड़ितों के परिवार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए यह एक बड़ी राहत है, क्योंकि इससे उन्हें यह विश्वास है कि न्याय मिलेगा और दोषी खुले नहीं घूम पाएंगे।

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