पंडित गणेश प्रसाद मिश्र ‘दद्दा जी’ की जन्म शताब्दी: राष्ट्रव्यापी श्रद्धांजलि और प्रेरक विरासत
'दद्दा जी' की जन्म शताब्दी पर राष्ट्र का नमन: सेवा और संस्कृति का अनुपम उदाहरण
- पंडित गणेश प्रसाद मिश्र ‘दद्दा जी’ की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में देशभर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित।
- ‘दद्दा जी’ एक महान निष्काम कर्मयोगी, संस्कृतविद् और समाज सेवी के रूप में याद किए जा रहे हैं।
- उनके ‘नर सेवा ही नारायण सेवा’ और ‘शिक्षा सबल और सशक्त कर सकती है’ जैसे विचारों का प्रचार-प्रसार।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली: 23 जुलाई, 2025 – भारत के एक महान शिक्षाविद्, समाज सेवी और निष्काम कर्मयोगी पंडित गणेश प्रसाद मिश्र, जिन्हें प्यार से ‘दद्दा जी’ के नाम से जाना जाता है, की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में राष्ट्रव्यापी श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। उनके जीवन और आदर्शों को याद करते हुए, विभिन्न संगठन और हस्तियां उनके अद्वितीय योगदान को सम्मान दे रही हैं। यह शताब्दी समारोह ‘दद्दा जी’ के उन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, जिन्होंने अपना जीवन राष्ट्र निर्माण, शिक्षा के प्रसार और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।
दद्दा जी का जीवन: सेवा, संस्कृति और राष्ट्रवाद का संगम
पंडित गणेश प्रसाद मिश्र ‘दद्दा जी’ का जीवन निस्वार्थ सेवा, भारतीय संस्कृति के प्रति गहन प्रेम और प्रबल राष्ट्रवाद का प्रतीक था। उनका मानना था कि ‘नर सेवा ही नारायण सेवा है’ और इस सिद्धांत को उन्होंने अपने पूरे जीवन में चरितार्थ किया। उन्होंने समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अविस्मरणीय है। ‘शिक्षा सबल और सशक्त कर सकती है’ उनका प्रमुख संदेश था, जिसे पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास आज भी निरंतर आगे बढ़ा रहा है। यह न्यास विद्यार्थियों को आवश्यक सुविधाएं, सकारात्मक वातावरण और प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
दद्दा जी केवल एक शिक्षाविद् या समाज सेवी ही नहीं थे, बल्कि वे एक संस्कृतविद् भी थे जिन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को सहेजने और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन और कार्य हमें याद दिलाते हैं कि कैसे एक व्यक्ति अपने विचारों और कर्मों से समाज में गहरा और स्थायी परिवर्तन ला सकता है।
अयोध्या आंदोलन में भूमिका और शताब्दी समारोह के कार्यक्रम
पंडित गणेश प्रसाद मिश्र ‘दद्दा जी’ का भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय – अयोध्या आंदोलन – में भी सक्रिय योगदान था। उन्होंने 1990 की कार सेवा में बढ़-चढ़कर भाग लिया और 1992 में विवादित ढांचा विध्वंस के समय छतरपुर जिले के उन दो कार सेवकों में से एक थे जो वहां पहुंच सके थे। यह उनके राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उनकी जन्म शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में पूरे वर्षभर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इन आयोजनों में किसान मेले, चौपालें, श्रद्धांजलि सभाएं, भजन कार्यक्रम और सामग्री वितरण शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य ‘दद्दा जी’ के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना और उनकी विरासत को जीवित रखना है। धवर्रा (छतरपुर जिले) में उनके जन्मस्थान पर विशेष आयोजन किए गए हैं, जहां पं. गणेश प्रसाद मिश्र खेल परिसर और गांव के समग्र विकास को एक आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में, ‘दद्दा जी’ को श्रद्धांजलि देने के लिए स्मृति व्याख्यान मालाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और खेलकूद जैसे विषयों पर चर्चा की जा रही है।
उनके पुत्र और पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास के अध्यक्ष डॉ. राकेश मिश्र इन सभी आयोजनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि ‘दद्दा जी’ के आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने रहें। राष्ट्रव्यापी इन श्रद्धांजलि सभाओं में विभिन्न गणमान्य व्यक्ति, शिक्षाविद और समाज सेवी भाग ले रहे हैं, जो ‘दद्दा जी’ के व्यापक प्रभाव को दर्शाते हैं।