उपराष्ट्रपति धनखड़ की राजनेताओं से अपील: “परस्पर सम्मान रखें, गाली-गलौज बंद करें”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का राजनेताओं को कड़ा संदेश: "यह हमारी सभ्यता का सार नहीं!"

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  • उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक दलों से परस्पर सम्मान और अभद्र भाषा से बचने का आग्रह किया।
  • उन्होंने कहा कि राजनीतिक कटुता लोकतंत्र के लिए हानिकारक है और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होने चाहिए।
  • धनखड़ ने आगामी संसद सत्र में सार्थक चर्चा और रचनात्मक सुझावों का आह्वान किया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025: भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने देश के राजनीतिक परिदृश्य में बढ़ती कटुता और असम्मानजनक भाषा पर गहरी चिंता व्यक्त की है। नई दिल्ली में राज्यसभा के आठवें बैच के प्रतिभागियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम (RSIP) के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने सभी राजनीतिक दलों से सौहार्द, परस्पर सम्मान और रचनात्मक संवाद की संस्कृति को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया। उनका यह संदेश ऐसे समय में आया है जब देश में राजनीतिक बयानबाजी का स्तर लगातार गिरता जा रहा है।

“गाली-गलौज हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं”

उपराष्ट्रपति महोदय ने अपने संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैं राजनीतिक जगत के सभी लोगों से अपील करता हूँ कि कृपया परस्पर सम्मान रखें। कृपया टेलीविज़न पर या किसी भी पार्टी के नेतृत्व के विरुद्ध अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। यह संस्कृति हमारी सभ्यता का सार नहीं है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राजनेताओं को अपनी भाषा का ध्यान रखना होगा और व्यक्तिगत आक्षेपों से बचना होगा। धनखड़ ने कहा, “अब समय आ गया है कि हम राजनेताओं को गालियाँ देना बंद करें। जब विभिन्न राजनीतिक दलों में लोग दूसरे राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं को गालियाँ देते हैं, तो यह हमारी संस्कृति के लिए अच्छा नहीं है।” उन्होंने स्मरण कराया कि भारतीय संस्कृति मर्यादा और परस्पर सम्मान की भावना पर आधारित है, और यही हमारी विचार प्रक्रिया में एकता ला सकती है।

राष्ट्र हित में संवाद और मुलाकातें आवश्यक

श्री धनखड़ का मानना है कि यदि राजनीतिक संवाद उच्च स्तर पर हो और नेता अधिक बार मिलते-जुलते रहें, तो इससे राष्ट्र हित की पूर्ति होगी। उन्होंने कहा, “वे आपस में अधिक संवाद करें। वे व्यक्तिगत स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान करें — तो राष्ट्र हित की पूर्ति होगी… हमें आपस में क्यों लड़ना चाहिए? हमें अपने भीतर शत्रुओं की तलाश नहीं करनी चाहिए।” उपराष्ट्रपति ने इस बात पर दृढ़ विश्वास व्यक्त किया कि प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल और प्रत्येक सांसद अंततः एक राष्ट्रवादी है और राष्ट्र की प्रगति में विश्वास करता है। उन्होंने लोकतंत्र की प्रकृति पर भी प्रकाश डाला, यह बताते हुए कि सत्ता में हमेशा एक ही पार्टी नहीं रहती, और परिवर्तन एक स्वाभाविक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विकास की निरंतरता और हमारी सभ्यतागत लोकाचार की निरंतरता बनी रहनी चाहिए, जो केवल लोकतांत्रिक संस्कृति के सम्मान से आती है।

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“समृद्ध लोकतंत्र कटुता सहन नहीं कर सकता”

उपराष्ट्रपति ने इस बात पर विशेष बल दिया कि एक समृद्ध लोकतंत्र निरंतर कटुता का वातावरण सहन नहीं कर सकता। उन्होंने देश के लोगों से राजनीतिक तापमान को कम करने का आग्रह किया। धनखड़ ने कहा, “राजनीति टकराव नहीं है, राजनीति कभी भी एकतरफा नहीं हो सकती। अलग-अलग राजनीतिक विचार प्रक्रियाएँ होंगी, लेकिन राजनीति का अर्थ है एक ही लक्ष्य को प्राप्त करना, लेकिन किसी न किसी तरह अलग-अलग माध्यमों से।” उन्होंने दृढ़ता से कहा कि इस देश में कोई भी व्यक्ति राष्ट्र के विरुद्ध नहीं सोचेगा, और किसी भी राजनीतिक दल को भारत की अवधारणा के विरुद्ध नहीं देखा जा सकता। उन्होंने नेताओं से एक-दूसरे के साथ चर्चा और संवाद करना सीखने का आग्रह किया, क्योंकि “जब हम आपस में लड़ते हैं, तो हम अपने दुश्मन को मजबूत कर रहे होते हैं।” उन्होंने युवा पीढ़ी से अपील की कि वे एक मजबूत दबाव समूह बनें और अपनी विचार प्रक्रिया से राजनेताओं को नियंत्रित करें ताकि वे राष्ट्र और विकास के बारे में सोचें।

राष्ट्रीय हित सर्वोपरि: अनावश्यक राजनीति से बचें

श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “जब राष्ट्रीय हित की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब राष्ट्र के विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए। जब राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय चिंता का विषय हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि भारत को विभिन्न राष्ट्रों के बीच गर्व के साथ खड़ा होना है और यह विचार कि भारत को बाहर से नियंत्रित किया जा सकता है, हमारी संप्रभुता के खिलाफ है। उन्होंने प्रश्न किया कि “हमारा राजनीतिक एजेंडा भारत की विरोधी ताकतों द्वारा क्यों निर्धारित किया जाना चाहिए? हमारे एजेंडे को हमारे दुश्मनों द्वारा भी क्यों प्रभावित किया जाना चाहिए?”

संवाद और विविधता का सम्मान: टीवी डिबेट पर भी टिप्पणी

उपराष्ट्रपति महोदय ने टेलीविजन पर होने वाली चर्चाओं में झलकती राजनीतिक दलों की कटुता की ओर विशेष ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक राजनीतिक दल का नेतृत्व परिपक्व होता है और राष्ट्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध होता है। उन्होंने युवाओं से इस सकारात्मक मानसिकता को सोशल मीडिया में लाने का आग्रह किया। धनखड़ ने कहा, “एक बार जब आपको हमारी टेलीविजन चर्चाएं सुखदायक, सकारात्मक और आकर्षक लगेंगी, तो कल्पना कीजिए कि कितना बड़ा बदलाव आ सकता है।” उन्होंने निराशा व्यक्त की कि आजकल टीवी डिबेट्स कानों को थका देती हैं, जो हमारी महान संस्कृति के “अनंतवाद” (अनंत संवाद में विश्वास) के विपरीत है। उन्होंने समझाया कि संवाद का अर्थ है विचारों को खुलकर कहना, लेकिन अपनी राय पर इतना आश्वस्त न होना कि दूसरे के दृष्टिकोण को स्वीकार न किया जा सके। “यह अहंकार है। यह उद्दंडता है। हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना होगा।”

आगामी संसद सत्र में सार्थक चर्चा की उम्मीद

उपराष्ट्रपति ने आगामी संसद सत्र में सार्थक चर्चा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह सत्र महत्वपूर्ण होगा और इसमें गंभीर विचार-विमर्श होंगे जो भारत को नई ऊँचाइयों पर ले जाएँगे। उन्होंने स्वीकार किया कि सब कुछ कभी सही नहीं होता और सुधार की गुंजाइश हमेशा होती है। “अगर कोई किसी चीज़ में सुधार का सुझाव देता है, तो वह निंदा नहीं है। यह आलोचना नहीं है। यह केवल आगे के विकास के लिए एक सुझाव है।” उन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से रचनात्मक राजनीति करने की अपील की, ताकि राष्ट्र के विकास के मार्ग पर मिलकर आगे बढ़ा जा सके।

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