उपराष्ट्रपति का ट्रंप के दावे पर करारा जवाब: “कोई ताकत भारत को हुक्म नहीं दे सकती”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का डोनाल्ड ट्रंप को दो-टूक जवाब: भारत अपने निर्णय स्वयं लेता है, कोई बाहरी ताकत हमें निर्देशित नहीं कर सकती
- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाकिस्तान सीजफायर के दावे को सिरे से खारिज किया।
- धनखड़ ने जोर देकर कहा कि दुनिया की कोई ताकत भारत को यह निर्देश नहीं दे सकती कि वह अपने मामलों को कैसे संभाले।
- उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को ‘जारी’ बताया और कहा कि भारत ने आतंकवादियों को ‘सबक’ सिखाया है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025: अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा बार-बार यह दावा किए जाने के बाद कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराया था, भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उन्हें करारा जवाब दिया है। धनखड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत को यह निर्देश नहीं दे सकती कि वह अपने मामलों को कैसे संभाले। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और अपने सभी महत्वपूर्ण निर्णय अपने शीर्ष नेतृत्व के माध्यम से स्वयं लेता है।
ट्रंप के दावे और धनखड़ का दृढ़ संदेश
पिछले कुछ समय से डोनाल्ड ट्रंप लगातार यह दावा कर रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को उन्होंने ही अपनी मध्यस्थता से शांत किया और संघर्ष विराम कराया। उन्होंने यहां तक दावा किया है कि इस संघर्ष में “पांच जेट” गिराए गए थे। ट्रंप के इन बयानों पर भारतीय विपक्ष, खासकर कांग्रेस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से स्पष्टीकरण की मांग कर रहा है।
इसी पृष्ठभूमि में, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारतीय रक्षा संपदा सेवा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए एक बहुत ही दृढ़ संदेश दिया। उन्होंने कहा, “बाहरी बयानों से प्रभावित न हों। इस देश में, एक संप्रभु राष्ट्र में, सभी फैसले इसके नेतृत्व द्वारा लिए जाते हैं। दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो भारत को यह निर्देश दे कि उसे अपने मामलों को कैसे संभालना है।” धनखड़ ने यह भी रेखांकित किया कि भारत आपसी सहयोग और परस्पर सम्मान के साथ काम करता है और अन्य देशों के साथ कूटनीतिक संवाद में संलग्न रहता है, लेकिन अंततः वह अपने फैसले खुद लेता है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत का दृढ़ संकल्प
उपराष्ट्रपति ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर” अभी खत्म नहीं हुआ है और भारत ने आतंकवादियों को ‘सबक’ सिखाया है। यह टिप्पणी उन अटकलों को खारिज करती है जिनमें यह कहा जा रहा था कि भारत ने इस ऑपरेशन को बीच में ही रोक दिया था। धनखड़ ने स्पष्ट किया, “हमने सबक सिखाया, अच्छी तरह से सिखाया। हमने बहावलपुर और मुरीदके को चुना और फिर उसे एक रिजल्ट पर पहुंचाया।” उन्होंने आगे कहा कि भारत शांति और अहिंसा में विश्वास रखता है, और बुद्ध, महावीर और गांधी की भूमि है। “हम जिंदा प्राणियों को भी नहीं मारना चाहते, हम इंसानों को कैसे निशाना बना सकते हैं? मकसद था दूसरों में समझदारी और मानवता की भावना जगाना।”
यह बयान भारत के उस दृढ़ रुख को दर्शाता है, जिसमें वह आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करता है, लेकिन साथ ही मानवीय मूल्यों और क्षेत्रीय शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी बनाए रखता है।
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि: क्रिकेट की उपमा
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने भाषण में एक क्रिकेट की उपमा का भी प्रयोग किया, जो उनके संदेश की गंभीरता को दर्शाती है। उन्होंने कहा, “क्या हर खराब गेंद को खेलना ज़रूरी है? क्रिकेट पिच पर अच्छा खिलाड़ी खराब गेंदों को छोड़ देता है। वे लुभाती हैं, लेकिन उन्हें नहीं छेड़ा जाता। जो छेड़ते हैं, उनके लिए विकेटकीपर और गली में खिलाड़ी होते हैं।” इस उपमा के माध्यम से उन्होंने परोक्ष रूप से उन बयानों और नैरेटिव्स को ‘खराब गेंद’ बताया, जिन पर भारत को अनावश्यक रूप से प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। उनका इशारा स्पष्ट था कि भारत को केवल अपने राष्ट्रीय हितों और संप्रभुता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि बाहरी दबावों या दावों से विचलित होना चाहिए।
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया और संसद में बहस
उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब विपक्ष, खासकर कांग्रेस, डोनाल्ड ट्रंप के दावों पर सरकार से स्पष्टीकरण की मांग कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी से ‘पांच जेट’ वाले दावे पर जवाब मांगा है, जबकि अन्य विपक्षी नेताओं ने भी संसद में इस मुद्दे पर बहस की मांग की है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का यह बयान भारत की विदेश नीति की संप्रभुता और आत्म-निर्भरता को रेखांकित करता है। यह स्पष्ट संदेश है कि भारत अपने निर्णय लेने में किसी बाहरी शक्ति के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करता और अपनी सुरक्षा व हितों की रक्षा के लिए सक्षम है। आगामी संसद सत्र में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और विपक्ष की ओर से क्या प्रतिक्रिया आती है।