पूनम शर्मा
भारत के खिलाफ सबसे बड़ा हमला जब उसके ही भीतर से होता है, तब वह सबसे ज़्यादा खतरनाक होता है। यही किया है तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने, जिन्होंने अमेरिका में जाकर खुलेआम अपने ही देश के खिलाफ ज़हर उगला और कहा कि “भारत अब हिंदू गुंडों के हाथों में चला गया है, इसलिए अमेरिकी कंपनियों को यहां निवेश नहीं करना चाहिए।”
क्या कोई सच्चा भारतीय ऐसा बोल सकता है? क्या यह सिर्फ बयान है या यह सुनियोजित राष्ट्रद्रोह है?
जब विदेशी मंच बना राष्ट्रविरोध का अड्डा
महुआ मोइत्रा जैसे नेताओं ने अब लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर भारत विरोध को अपना एजेंडा बना लिया है। संसद में नहीं, बल्कि न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन डीसी में खड़े होकर देश की छवि बिगाड़ना इनकी रणनीति है। वे कहते हैं कि भारत में अब हिंदू कट्टरपंथियों का शासन है। लेकिन क्या वे यह भी बताते हैं कि भारत में हर धर्म के लोग चुनाव लड़ते हैं, जीतते हैं, व्यापार करते हैं और जीवन जीते हैं?
नहीं, क्योंकि सच इनकी स्क्रिप्ट में फिट नहीं बैठता।
हिंदू समाज को “गुंडा” कहना – क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?
महुआ मोइत्रा का बयान न केवल दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि हिंदू समाज के खिलाफ खुला अपमान है। जब कोई सांसद अपने ही देश के बहुसंख्यक धर्म को “गुंडों” की जमात कहे, तो वह सिर्फ समाज नहीं, भारत की आत्मा को ठेस पहुंचाता है।
हिंदू समाज सहिष्णु है। यही समाज कांवड़ यात्रा में सेवा करता है, दीपावली पर सभी को आमंत्रित करता है, और हर आपदा में सबका साथ देता है। लेकिन आज उसी समाज को वोट बैंक की राजनीति के लिए बदनाम किया जा रहा है।
विदेशी निवेश रोकने की साज़िश
महुआ मोइत्रा ने अमेरिका में यह कहकर कि “यहां निवेश मत करो, भारत अब हिंदू गुंडों के कब्जे में है”—देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा हमला किया है। यह अपील नहीं, एक साज़िश है, जिससे भारत को आर्थिक रूप से कमजोर किया जाए। जब Apple, Google, Tesla जैसी कंपनियाँ भारत को अगला वैश्विक केंद्र मान रही हैं, तब एक भारतीय सांसद खुद उन्हें डराने की कोशिश कर रही हैं।
क्या ऐसा व्यक्ति भारत के लिए बोल रहा है या भारत के खिलाफ खड़े दुश्मनों के लिए?
बंगाल की हिंसा और विपक्षी मौन
2 मई 2021 के बंगाल चुनाव के बाद जो हिंसा की नंगी तस्वीरें आईं, वे आज भी झकझोर देती हैं—महिलाओं का बलात्कार, घर जलाना, राजनीतिक कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या। लेकिन ममता सरकार और उनके प्रवक्ताओं ने इस पर चुप्पी साध ली। क्या महुआ ने कभी उन पीड़ितों के लिए एक शब्द भी कहा?
नहीं, क्योंकि वहाँ पीड़ित हिंदू थे और हमलावर सत्ता पक्ष के कार्यकर्ता!
तुष्टिकरण की सीमाएँ लांघती ‘धर्म आधारित राजनीति’
दिल्ली सरकार की योजनाएँ अब धर्म आधारित वितरण में बदल गई हैं। 60,000 लाभार्थी लगभग एक विशेष समुदाय से चुने गए। क्या अब भारत में लाभ की पात्रता मज़हब से तय होगी?
इस राजनीति ने धर्मनिरपेक्षता को छद्म सेक्युलरिज़्म में बदल दिया है। और यह चलन विपक्ष के हर कोने में फैला है।
लव जिहाद और पहचान की चोरी
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में “राजीव” बनकर “बदलो अहमद” नामक युवक एक 20 साल की युवती और उसकी 16 साल की बहन को लेकर शादी के इरादे से आया। यह सिर्फ एक घटना नहीं—ऐसी घटनाएं अब आम होती जा रही हैं, लेकिन तथाकथित प्रगतिशीलों की ज़ुबान बंद है।
क्यों? क्योंकि सच्चाई उनके एजेंडे के विपरीत है।
असम में घुसपैठियों की धमकी
डॉ. हिमंत बिस्वा शर्मा को खुलेआम अवैध बांग्लादेशी चुनौती देते हैं कि “हम ज़मीन कब्जा करेंगे और हिंदुओं को बेघर कर देंगे।” यह सिर्फ सांप्रदायिक बयान नहीं, देश की एकता और कानून व्यवस्था के लिए चुनौती है। लेकिन विपक्ष को इसमें कोई ‘संविधान खतरे में’ जैसा संकेत नहीं दिखता।
मंदिरों और सनातन पर हमला
राम मंदिर पर तंज, गौमाता का अपमान, और पूजा-पाठ करने वालों को पाखंडी कहना—ये सब “बुद्धिजीवी वर्ग” का नया धर्मनिरपेक्ष तरीका बन गया है। और इस खेल में महुआ मोइत्रा जैसे लोग सबसे आगे हैं। वे संसद में बैठकर राम को कोसती हैं और विदेश जाकर हिंदुओं को ‘गुंडा’ कहती हैं।
क्या यही भारत की भावना है? या ये वही सोच है जो कभी “टुकड़े-टुकड़े गैंग” के नारे लगवाती थी?
अब देशद्रोह को लोकतंत्र कहना बंद करो!
भारत में लोकतंत्र ज़िंदा है—यहां अदालतें स्वतंत्र हैं, प्रेस ज़िंदा है, लोग सरकार के खिलाफ वोट देते हैं। लेकिन जो लोग भारत को अपमानित करने के लिए विदेश जाते हैं, विदेशी कंपनियों से कहते हैं कि भारत में निवेश न करें, वे राष्ट्रवादी नहीं, राष्ट्रविरोधी हैं।
महुआ मोइत्रा का बयान सिर्फ निंदनीय नहीं—दंडनीय होना चाहिए। ऐसे लोगों को संसद में नहीं, देशद्रोह के कटघरे में खड़ा करना चाहिए।
क्योंकि जब कोई अपने ही देश को नीचा दिखाता है, वह विपक्ष नहीं—वह गद्दार होता है।!