लालू यादव को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं , लैंड-फॉर-जॉब्स केस में ट्रायल जारी

सुप्रीम कोर्ट ने लालू यादव को ट्रायल कोर्ट में पेशी से छूट दी लेकिन लैंड-फॉर-जॉब्स घोटाले में मुकदमे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

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  •  सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल पर रोक लगाने से इनकार किया: कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, और ट्रायल प्रक्रिया जारी रहेगी।
  • लालू यादव को ट्रायल कोर्ट में पेशी से छूट: अदालत ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होने से छूट देते हुए हाई कोर्ट से मामले की शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया।
  • सीबीआई पर 17A मंजूरी को लेकर बहस: लालू के वकील ने जाँच  को अवैध बताया, जबकि सीबीआई ने कहा कि 2018 से पहले के मामलों में यह मंजूरी जरूरी नहीं है।
  •  सीबीआई ने दाखिल की चार्जशीट: 7 जून को दाखिल चार्जशीट में लालू यादव, उनके परिजन और 77 अन्य शामिल हैं, जिन पर बिना विज्ञापन के नौकरियां देने और जमीन के बदले भर्तियाँ कराने का आरोप है।

 

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 जुलाई –लैंड-फॉर-जॉब्स घोटाले से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को आंशिक राहत दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने जहां एक ओर उनके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, वहीं उन्हें ट्रायल कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट दे दी है।

न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश जारी किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह दिल्ली हाई कोर्ट के 29 मई के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी, जिसमें हाई कोर्ट ने ट्रायल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई शीघ्रता से की जाए।

पीठ ने कहा, “हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं, सिवाय इसके कि अंतिम निर्णय के समय उच्च न्यायालय की टिप्पणियां बाधा नहीं बनेंगी। मामले के तथ्यों को देखते हुए हम आदेश देते हैं कि याचिकाकर्ता (लालू यादव) को ट्रायल कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दी जाती है।”

इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने आरजेडी प्रमुख की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने लैंड-फॉर-जॉब्स घोटाले में ट्रायल रोकने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में ट्रायल रोकने का कोई ठोस कारण नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी करते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग पर जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 12 अगस्त को तय की है।

लालू यादव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि इस मामले में सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के तहत आवश्यक पूर्व अनुमति के बिना जांच शुरू की, जो कानून के तहत अनिवार्य है। वहीं, सीबीआई की ओर से एएसजी एस.वी. राजू ने तर्क दिया कि यह प्रावधान 2018 में लागू हुआ था, जबकि कथित अपराध 2004 से 2009 के बीच हुए, इसलिए अनुमति की आवश्यकता नहीं थी।

सीबीआई के अनुसार, लालू यादव ने रेल मंत्री रहते हुए अपने प्रभाव का दुरुपयोग कर रेलवे की ग्रुप “D” की नौकरियों के बदले अपने परिवार के नाम पर जमीन हस्तांतरित करवाई। ये नियुक्तियाँ बिना किसी सार्वजनिक विज्ञापन के की गईं और रेलवे की भर्ती प्रक्रिया के नियमों का उल्लंघन हुआ। 7 जून को सीबीआई ने लालू यादव, उनके परिवार के सदस्यों और 77 अन्य लोगों, जिनमें 38 नौकरी पाने वाले भी शामिल हैं, के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

यह मामला राजनीतिक गलियारों और न्यायिक क्षेत्र में व्यापक चर्चा का विषय बना हुआ है, और इससे भ्रष्टाचार कानून और राजनीतिक पदों की जवाबदेही को लेकर अहम सवाल उठते हैं।

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