NCERT की नई किताब में मुगलों की बर्बरता का जिक्र disclaimer के साथ

एनसीईआरटी की नई कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की किताब में मुगलों की 'निर्दयता' का ज़िक्र लेकिन 'कोई दोष नहीं' की चेतावनी के साथ

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  •  अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने श्रीरंगम, मदुरै, चिदंबरम और संभवतः रामेश्वरम जैसे हिंदू तीर्थस्थलों पर हमले किए।
  •  सल्तनत काल में जैन, बौद्ध और हिंदू मंदिरों में स्थापित मूर्तियों को नष्ट करने की घटनाओं का जिक्र है, जो केवल लूटपाट नहीं बल्कि ‘आइकनोक्लैज़्म’ यानी मूर्तिभंजन की मानसिकता से प्रेरित थे।
  •  ‘जिजिया’ कर को अब ‘सार्वजनिक अपमान’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो गैर-मुस्लिमों को इस्लाम में धर्मांतरण के लिए प्रेरित करता था। पहले इसे केवल गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला टैक्स बताया गया था।
  •  बाबर को “सुसंस्कृत और बौद्धिक” बताते हुए भी उसकी क्रूरता का उल्लेख है। किताब में लिखा है कि वह शहरों की पूरी आबादी का कत्लेआम करता था और “खोपड़ियों के मीनार” बनवाने में गर्व महसूस करता था।
  •  अकबर को “सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण” कहा गया है। चित्तौड़गढ़ किले पर हमला कर 30,000 नागरिकों के नरसंहार का उल्लेख किया गया है। हालांकि बाद के वर्षों में उसने धार्मिक सहिष्णुता दिखाई, लेकिन प्रशासन में गैर-मुस्लिमों की संख्या सीमित ही रही।
  •  औरंगज़ेब के संदर्भ में कहा गया है कि भले ही कुछ आदेश राजनीतिक रहे हों, लेकिन उसके फ़रमान उसके धार्मिक उद्देश्यों को भी स्पष्ट करते हैं। उसने काशी, मथुरा, सोमनाथ सहित जैन मंदिरों और सिख गुरुद्वारों को ध्वस्त किया

 

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली ,16 जुलाई– राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 8 की नई सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में इतिहास के “अंधकारमय कालखंडों” को लेकर एक नया दृष्टिकोण अपनाया है। नई किताब में दिल्ली सल्तनत, मुगलों और मराठों के कालखंड को शामिल करते हुए कुछ शासकों की ‘बर्बरता’, ‘धार्मिक असहिष्णुता’ और मंदिरों पर हमलों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। लेकिन साथ ही यह स्पष्ट किया गया है कि “बीते समय की घटनाओं के लिए आज किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”

क्या बदला है नई किताब में?

इस सप्ताह जारी हुई पुस्तक का शीर्षक है ‘Exploring Society: Indian and Beyond’। पहले यह विषयवस्तु कक्षा 7 में पढ़ाई जाती थी, लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-SE 2023) के तहत अब इसे कक्षा 8 में शामिल किया गया है।

पुस्तक के इतिहास खंड में ‘Reshaping India’s Political Map’ नामक अध्याय में 13वीं से 17वीं शताब्दी तक के भारत का राजनीतिक परिदृश्य पेश किया गया है। इसमें दिल्ली सल्तनत, विजयनगर साम्राज्य, मुगलों और सिखों के उदय के साथ-साथ उनके विरोध को दर्शाया गया है।

शासकों की निर्दयता पर खुलकर बातें

किताब में कुछ उल्लेखनीय बिंदु निम्नलिखित हैं:

“आज के लोगों को दोष देना अनुचित”

पुस्तक में एक ‘नोट ऑन सम डार्कर पीरियड्स इन हिस्ट्री’ नाम से विशेष टिप्पणी जोड़ी गई है, जो छात्रों को यह समझाने का प्रयास करती है कि इतिहास के अंधेरे पक्षों को निष्पक्ष रूप से देखना चाहिए और आज किसी को भी उन घटनाओं के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

NCERT ने स्पष्टीकरण में कहा है:

“यह घटनाएं इतिहास का हिस्सा हैं और उनका प्रभाव भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना पर पड़ा है। इन घटनाओं को छिपाना या उनका श्वेतकरण करना इतिहास के साथ ईमानदारी नहीं होगी। लेकिन हम यह भी मानते हैं कि आज के समाज को इनसे सबक लेकर भविष्य के लिए एक बेहतर रास्ता तैयार करना चाहिए।”

मराठा अध्याय में शिवाजी की प्रशंसा

पुस्तक में शिवाजी को “सच्चे दूरदर्शी और कुशल रणनीतिकार” कहा गया है। उन्होंने धर्म की रक्षा करते हुए अन्य धर्मों का भी सम्मान किया और नष्ट किए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया। वहीं, पुराने संस्करण में शिवाजी को केवल एक कुशल प्रशासक और मराठा राज्य की नींव रखने वाला बताया गया था।

आलोचना और सराहना दोनों

कुछ शिक्षाविदों और राजनीतिक हलकों ने इस बदलाव को ‘इतिहास का संकीर्ण दृष्टिकोण’ बताते हुए आलोचना की है, जबकि NCERT का कहना है कि यह पूरी तरह से प्रमाण-आधारित और संतुलित लेखन है, जो छात्रों को अतीत की जटिलताओं को समझने में मदद करेगा।

नई पाठ्यपुस्तक का उद्देश्य इतिहास को कड़वे तथ्यों के साथ ईमानदारी से प्रस्तुत करना है, न कि उसे छुपाना या महिमामंडित करना। साथ ही यह छात्रों को यह भी सिखाने की कोशिश कर रही है कि इतिहास से सबक लेकर वर्तमान में सौहार्द और समरसता बनाए रखनी चाहिए।

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इतिहास की पड़ताल

NCERT की नई कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान पुस्तक ने इतिहास की कई अनकही, लेकिन प्रमाणित घटनाओं को मुख्यधारा के पाठ्यक्रम में शामिल कर एक साहसिक कदम उठाया है। मुगलों और दिल्ली सल्तनत की धार्मिक असहिष्णुता, मंदिरों के विध्वंस और जनसंहार जैसी घटनाएँ अब खुलकर पाठ्यक्रम में आ रही हैं।

हालांकि, किताब साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि “बीते समय के अपराधों के लिए आज किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता” — यह संतुलन एक सकारात्मक संकेत है।

यह परिवर्तन उस विचारधारा के विरुद्ध खड़ा होता है जो अतीत की क्रूरता को छिपाकर सौम्यता का भ्रम पैदा करना चाहती है। लेकिन यह भी उतना ही आवश्यक है कि इतिहास का उपयोग आज की नफरत फैलाने वाली राजनीति के लिए न किया जाए।

शिक्षा का उद्देश्य अतीत से सीखकर भविष्य को बेहतर बनाना होना चाहिए, न कि अतीत की राख में नफ़रत की चिंगारी ढूंढ़ना।

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