भारत की हरित ऊर्जा क्षमता ने थर्मल पावर को पार किया

क्या है महत्व, चुनौतियां और भविष्य की राह

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  • भारत ने समय से 5 साल पहले हासिल किया 50% गैर-फॉसिल ईंधन क्षमता का लक्ष्य, जिसमें सौर, पवन, बड़े हाइड्रो और न्यूक्लियर स्रोत शामिल हैं; 2015 में यह हिस्सा केवल 30% था।
  • थर्मल पावर अब भी कुल बिजली उत्पादन में 70% हिस्सेदारी रखता है, क्योंकि सौर और पवन ऊर्जा अभी निरंतर (24×7) बिजली आपूर्ति देने में सक्षम नहीं हैं।
  • स्टोरेज की भारी कमी (सिर्फ 5 GW) के चलते ग्रिड स्थिरता पर खतरा, और उच्च लागत, आयात निर्भरता तथा नीतिगत बाधाओं के कारण स्टोरेज प्रोजेक्ट्स की रफ्तार धीमी है।
  • ISTS छूट खत्म होने और ‘पीएम सूर्य घर’ योजना के चलते रूफटॉप सोलर और स्थानीय उत्पादन पर ज़ोर, जिससे ट्रांसमिशन दबाव कम होगा और ग्रिड अधिक स्थिर बन सकेगा । 

 

पूनम शर्मा
भारत ने जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में एक बड़ा मील का पत्थर पार कर लिया है। जून 2025 के अंत तक देश की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में से 50.1% हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आ रहा है। यह उपलब्धि भारत ने अपने निर्धारित लक्ष्य से पाँच साल पहले हासिल की है। 2015 में जब पेरिस समझौता हुआ था, तब भारत ने 2030 तक 40% गैर-फॉसिल फ्यूल क्षमता का लक्ष्य रखा था। 2022 में इसे बढ़ाकर 50% किया गया, जो अब समय से पहले पूरा हो चुका है।

 हरित ऊर्जा का उभार: एक नई दिशा

2015 में भारत की कुल ऊर्जा क्षमता में थर्मल (कोयला और गैस आधारित) का हिस्सा 70% था, जो अब घटकर 49.9% रह गया है। इसके विपरीत, नवीकरणीय ऊर्जा जैसे सौर, पवन, छोटे हाइड्रो और बायोगैस का योगदान 185 गीगावॉट हो गया है। इसमें बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से 49 GW और न्यूक्लियर से 9 GW जोड़ने पर कुल गैर-फॉसिल ईंधन क्षमता 243 GW हो जाती है, जो कि 485 GW की कुल स्थापित क्षमता का आधा से थोड़ा अधिक है।

 लेकिन उत्पादन में अब भी हावी है थर्मल पावर

हालांकि स्थापित क्षमता में हरित ऊर्जा का हिस्सा बढ़ा है, लेकिन असली बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा अब भी थर्मल प्लांट्स से ही आ रहा है। सौर और पवन ऊर्जा की उत्पादन क्षमता समय और मौसम पर निर्भर करती है, इसलिए जब मांग चरम पर होती है या सूरज नहीं निकलता, तब थर्मल पावर ही सपोर्ट करता है। आज भी भारत की 70% से अधिक बिजली उत्पादन जरूरतें थर्मल से पूरी हो रही हैं।

भंडारण की कमी से अस्थिर हो रही है ग्रिड

2020 से 2025 के बीच भारत ने 95 GW सौर और पवन क्षमता जोड़ी है, जिससे अब ये 35% स्थापित क्षमता तक पहुंच गई हैं। लेकिन बिजली भंडारण (storage) सुविधाएँ  इसके साथ नहीं बढ़ पाईं। नतीजा यह है कि ग्रिड की स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है।
उदाहरण के लिए, 30 मई 2024 को जब 250 GW की पिक डिमांड थी, तब ग्रिड मैनेजर इसे पूरा नहीं कर पाए क्योंकि नवीकरणीय उत्पादन कम था और थर्मल सपोर्ट पर्याप्त नहीं मिला।

 ऊर्जा भंडारण में निवेश

स्टोरेज सिस्टम जैसे बैटरी और पंप्ड हाइड्रो से बिजली को संरक्षित कर जरूरत के समय इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन 2024 के अंत तक भारत की कुल स्टोरेज क्षमता सिर्फ 5 GW ही रही — जिसमें 4.75 GW पंप्ड स्टोरेज और 110 मेगावॉट बैटरी स्टोरेज शामिल है।

सरकार ने स्टोरेज बढ़ाने के लिए फरवरी में नई नीतियां लागू की हैं। CEA ने सोलर प्रोजेक्ट्स के साथ स्टोरेज को अनिवार्य करने की सलाह दी है। पावर मंत्रालय ने बैटरी स्टोरेज के लिए VGF योजना में 30 GWh की नई क्षमता जोड़ी है, जबकि पंप्ड हाइड्रो में 2032 तक 51 GW जोड़े जाने की योजना है।

नीतियों के बावजूद स्टोरेज प्रोजेक्ट्स धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। IEEFA की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च लागत, आयात शुल्क और घरेलू सामग्री नियमों की जटिलता के कारण स्टोरेज प्रोजेक्ट्स में देरी हो रही है। चीन का बैटरी आपूर्ति पर वर्चस्व और उसके द्वारा रेयर अर्थ मटेरियल पर लगाए गए प्रतिबंध भी एक रणनीतिक खतरा बन गए हैं।

 रूफटॉप सोलर और ट्रांसमिशन रणनीति में बदलाव

30 जून 2025 को ISTS छूट की समाप्ति के बाद, सरकार ने रूफटॉप सोलर को प्राथमिकता देना शुरू किया है। अब प्रोजेक्ट्स को खपत वाले क्षेत्रों के नजदीक लगाने की प्रवृत्ति बढ़ेगी जिससे ट्रांसमिशन कंजेशन कम होगा।
‘पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ के तहत 27 GW रूफटॉप सोलर क्षमता जोड़ने का लक्ष्य है। अभी 19 GW ग्रिड-कनेक्टेड रूफटॉप सोलर पहले से मौजूद है।

 अन्य बड़ी बाधाएँ : पुराने प्रोजेक्ट्स बिना PPA और ट्रांसफॉर्मर की कमी

करीब 30 GW के पुराने प्रोजेक्ट्स अब भी Power Purchase Agreement (PPA) के बिना हैं। इससे निवेशकों में असमंजस है और कैश फ्लो की दिक्कतें हैं। सरकार राज्यों के साथ मिलकर इन PPAs को तेजी से मंजूरी देने की कोशिश कर रही है।

दूसरी ओर, HVDC ट्रांसफॉर्मर्स की कमी से भी नई क्षमता जोड़ने में देरी हो रही है। इन उपकरणों की वैश्विक मांग तेज है और निर्माता सीमित हैं, जिससे लीड टाइम बढ़ता जा रहा है। ट्रांसमिशन नेटवर्क में पिछली कुछ वर्षों में कम निवेश ने स्थिति और भी कठिन बना दी है।

लक्ष्य मिला, लेकिन रास्ता लंबा है

भारत का 50% गैर-फॉसिल ईंधन क्षमता तक पहुँचना  निश्चित ही एक गर्व की बात है। लेकिन यह केवल शुरुआत है। असली परीक्षा अब ग्रिड को स्थिर और विश्वसनीय बनाए रखने की है। स्टोरेज, ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर, और नीति कार्यान्वयन में तेजी से सुधार के बिना, यह हरित परिवर्तन अधूरा रह जाएगा।

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