बिहार के बाद अब पूरे देश में ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR)

विवादों के बीच चुनाव आयोग का मास्टरस्ट्रोक, अगस्त से देशव्यापी अभियान संभव

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  • चुनाव आयोग बिहार के बाद अब पूरे देश में मतदाता सूचियों का ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) शुरू करेगा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR जारी रखने को संवैधानिक करार दिया।
  • इस प्रक्रिया में मतदाता सूची से लाखों ‘संदिग्ध विदेशी नागरिकों’ के नाम हटाए जाएंगे।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 जुलाई 2025: बिहार में चल रहे मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चल रहे विवादों के बीच, चुनाव आयोग ने अब इस प्रक्रिया को पूरे देश में लागू करने का बड़ा फैसला लिया है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 जुलाई को बिहार में एसआईआर जारी रखने को संवैधानिक बताए जाने के बाद आया है। चुनाव आयोग ने सभी राज्यों में अपनी चुनावी मशीनरी को सक्रिय कर दिया है, और यह उम्मीद है कि यह देशव्यापी अभियान अगस्त 2025 से शुरू किया जा सकता है।

बिहार में मतदाता सूची के इस विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से लगभग 35 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जाने की संभावना है, जो राज्य के कुल मतदाताओं का 4.5 प्रतिशत से अधिक है। अब तक, बिहार में 6.6 करोड़ मतदाताओं ने अपने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं, जो कुल मतदाताओं का लगभग 88 प्रतिशत है। चुनाव आयोग ने यह भी जानकारी दी है कि पंजीकरण प्रक्रिया के दौरान नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों के कुछ विदेशी नागरिकों के नाम भी मतदाता सूची में पाए गए हैं। इन सभी नामों को उचित जांच के बाद 30 सितंबर को अंतिम प्रकाशित होने वाली वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किया जाएगा।

‘सर’ क्या है और क्यों है विवादों में?

स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची को अपडेट और दुरुस्त करने के लिए चलाया जाने वाला एक घर-घर सत्यापन अभियान है। बिहार में यह 2003 के बाद पहला ऐसा गहन पुनरीक्षण है। इस अभियान के तहत, लगभग 8 करोड़ लोगों को फोटो और पते के प्रमाण के साथ फॉर्म भरने के लिए कहा जा रहा है। 2003 की मतदाता सूची में जिन 3 करोड़ से अधिक लोगों के नाम नहीं थे, उनसे अतिरिक्त दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। 24 जून को जारी ईसी अधिसूचना के अनुसार, 1987 के बाद जन्मे नए मतदाताओं को अपने माता-पिता के जन्म विवरण प्रस्तुत करने होंगे, बशर्ते माता-पिता 2003 की सूची में शामिल न हों।

विपक्षी दलों, खासकर INDIA गठबंधन, ने इस अभियान पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि यह अभ्यास सत्तारूढ़ एनडीए को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है और चुनाव आयोग उन मतदाताओं के नाम “गलत तरीके से हटाने” की कोशिश कर रहा है जो सत्तारूढ़ दल को वोट देने की संभावना कम रखते हैं। विपक्षी दलों ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया था। उनकी मुख्य चिंताएं हैं:

समय और लक्ष्यीकरण: यह इतना बड़ा संशोधन केवल बिहार में और ठीक विधानसभा चुनाव से पहले क्यों किया जा रहा है?

बहिष्करण रणनीति: लगभग 3 करोड़ लोगों को सख्त दस्तावेज़ीकरण का सामना करना पड़ रहा है यदि उनके नाम 2003 की सूची में नहीं थे।

नागरिकता खंड का डर: इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन अधिकारी (ERO) “संदिग्ध विदेशी नागरिकों” को चिह्नित कर सकते हैं, जिसका दुरुपयोग होने की आशंका है, खासकर सीमांचल क्षेत्र में।

आईडी सीमाएं: आधार और मनरेगा कार्ड को वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा रहा है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के संवैधानिक अधिकार को बरकरार रखा है, लेकिन यह भी निर्देश दिया है कि सत्यापन के लिए आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी वैध माना जाए।

देशव्यापी प्रभाव और चुनाव आयोग का उद्देश्य

चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार, एसआईआर का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना है ताकि प्रवासन, मृत्यु और डुप्लीकेट पंजीकरण जैसी वर्तमान वास्तविकताओं को सामने लाया जा सके। उनका जोर है कि इसका उद्देश्य मतदाता सूची की अखंडता और सटीकता को बनाए रखना है ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सकें। इस देशव्यापी अभियान से लाखों ‘संदिग्ध’ मतदाताओं, जिनमें विदेशी नागरिक और दोहरे पंजीकृत नाम शामिल हैं, को मतदाता सूची से बाहर किया जाएगा। 1 अगस्त से इस तरह के सभी लोगों की जांच की जाएगी।

यह कदम आगामी चुनावों के लिए मतदाता सूची को शुद्ध करने और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि अगले साल 2026 में असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होंगे। इस प्रक्रिया से इन राज्यों में भी मतदाता सूची की सटीकता पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।

 

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