चीन की दो फाड़: शंघाई क्लब बनाम CCP यूथ लीग का संघर्ष

शंघाई क्लब बनाम कम्युनिस्ट यूथ लीग चीन की सत्ता का असली युद्ध

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पूनम शर्मा
चीन आज जिस दौर से गुजर रहा है, वह केवल उसकी आंतरिक राजनीति का संकट नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन की नींव हिला देने वाला घटनाक्रम बन चुका है। शी जिनपिंग, जो कभी अडिग और अजेय माने जाते थे, अब गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और सत्ता संघर्ष के बीच फंसे हैं। जुलाई 2025 तक हालात इस मोड़ पर आ गए हैं जहाँ शी का राजनीतिक भविष्य अस्थिर दिख रहा है और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) अंदर से दो हिस्सों में बँटती नजर आ रही है।

शी जिनपिंग की सेहत और सत्ता पर सवाल

मई-जून 2024 के बीच खबरें आईं कि शी जिनपिंग को ब्रेन स्ट्रोक हुआ। करीब तीन महीनों तक वे सार्वजनिक जीवन से गायब रहे, और इसी दौरान ज़ियान युचिया नाम के नेता ने धीरे-धीरे CMC (Central Military Commission) जैसे शक्तिशाली संस्थानों पर पकड़ बनानी शुरू कर दी। आज स्थिति यह है कि शी जिनपिंग एक तरह से “सेरेमोनियल हेड” बनकर रह गए हैं – कुछ वैसा ही जैसे भारत में राष्ट्रपति या यूरोप में क्वीन।

शंघाई क्लब बनाम CCP यूथ लीग

चीन की सत्ता की असली लड़ाई दो धड़ों के बीच है – एक ओर शंघाई क्लब, जिसके समर्थन में तकनीकी और व्यापारिक लॉबी है, और दूसरी ओर CCP यूथ लीग, जिसने विचारधारा और जनसंपर्क के स्तर पर असर बनाए रखा है। शी जिनपिंग के शुरुआती सत्ता संघर्ष में उन्होंने यूथ लीग और शंघाई क्लब – दोनों को ही कमजोर किया, लेकिन अब वही शक्तियां फिर संगठित होकर शी को सत्ता से हटाने की तैयारी में हैं।

वैश्विक असर और भारत की भूमिका

शी के कमजोर पड़ते ही चीन में नए नेतृत्व के उदय की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। यह भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर है। चीन की आंतरिक अस्थिरता, ताइवान पर आक्रामकता में गिरावट और रूस पर बढ़ती निर्भरता ने भारत को पश्चिमी देशों के लिए एक स्थायी वैकल्पिक रणनीतिक साझेदार बना दिया है। “मेक इन इंडिया”, “चिप मैन्युफैक्चरिंग”, और “डिफेंस प्रोडक्शन” जैसे अभियानों को इस वैश्विक समीकरण से नई ऊर्जा मिल रही है।

चीन-भारत संबंध: खुली दुश्मनी नहीं, पर छुपा हुआ संघर्ष

चीन कभी भी भारत से खुली जंग नहीं चाहता। उसकी रणनीति हमेशा “प्वाइंट फाइव वॉर” यानी साइड से हमला – पाकिस्तान, नेपाल, साइबर अटैक या आर्थिक मोर्चे से दबाव बनाना रही है। लेकिन सीधी टक्कर से वह बचता रहा है क्योंकि उसे पता है कि भारत की आत्मरक्षा क्षमता आज पहले से कहीं अधिक मजबूत है।

CCP का भारत-विरोध क्यों?

सबसे अहम सवाल यह है कि चीन भारत के प्रति इतना आक्रामक क्यों है? इसका जवाब CCP की विचारधारा में छुपा है। जब माओ ने “कल्चरल रेवोल्यूशन” चलाई, तो चीन की सभी आध्यात्मिक जड़ों – मंदिरों, ग्रंथों, और परंपराओं – को नष्ट कर दिया गया। लेकिन इनका मूल भारत में है। जब तक भारत में हिन्दू परंपरा और स्वतंत्र धार्मिक चेतना जीवित है, तब तक CCP को यह डर सताता रहेगा कि उसका खड़ा किया गया “नया चीन” वापस पुराने रास्ते की ओर न लौट जाए। इसी कारण वह भारत को कभी रणनीतिक मित्र मान ही नहीं सकता।

भारत के लिए रणनीतिक अवसर

शी जिनपिंग के कमजोर पड़ने से भारत को एक “रणनीतिक विंडो” मिली है। यह समय है जब भारत G20, QUAD, इंडो-पैसिफिक मंचों पर अपनी भूमिका को और मजबूत कर सकता है। भारत की इकोनॉमी तेजी से उभर रही है, और चीन की गिरावट का फायदा उठाकर वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) का नया केंद्र बन सकता है।

 CCP के रहते भारत-चीन मैत्री असंभव

जब तक चीन में CCP सत्ता में है, तब तक भारत और चीन के रिश्ते कभी भी “गहरे सहयोगी” नहीं बन सकते। चीन हमेशा भारत को एक वैचारिक खतरा मानेगा, क्योंकि भारत का अस्तित्व उसकी विचारधारा को चुनौती देता है। भारत को इस समय अपने “भविष्य के सहयोगियों” की पहचान कर वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहिए।

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