अहमदाबाद विमान दुर्घटना: क्या बोइंग को बचाने की साजिश? प्रारंभिक रिपोर्ट पर उठे सवाल

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  • अहमदाबाद विमान दुर्घटना की प्रारंभिक रिपोर्ट में फ्यूल स्विच बंद होने को कारण बताया गया।
  • रिपोर्ट के बाद अमेरिकी सरकार और बोइंग पर सवाल: क्या वे साजिश कर रहे हैं?
  • दुर्घटना में 270 लोगों की मौत, बोइंग के सुरक्षा रिकॉर्ड पर फिर से बहस शुरू।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 जुलाई : अहमदाबाद में हुए दर्दनाक विमान हादसे के लगभग एक महीने बाद आई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। इस रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि एयर इंडिया के विमान का फ्यूल स्विच बंद होने के कारण यह दुर्घटना हुई, जिसमें 270 लोगों की जान चली गई। हालांकि, इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अमेरिकी सरकार और विमान निर्माता कंपनी बोइंग पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि वे इस दुर्घटना के असली कारणों को छिपाकर बोइंग को बचाने की साजिश रच रहे हैं।

एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुर्घटनाग्रस्त बोइंग 787 ड्रीमलाइनर का फ्यूल स्विच बंद होने से दो पायलटों के बीच भ्रम पैदा हुआ, जो शायद दुर्घटना की वजह बनी। रिपोर्ट में उल्लेख है कि दुर्घटना के समय एक पायलट ने दूसरे से पूछा, “आपने फ्यूल स्विच क्यों बंद कर दिया है?” इस पर दूसरे पायलट ने जवाब दिया कि उसने ऐसा नहीं किया है। संभावना है कि पायलटों ने फ्यूल स्विच को फिर से चालू करने की कोशिश की हो, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और विमान क्रैश हो गया। AAIB की रिपोर्ट का दावा है कि फ्यूल स्विच बंद होने की स्थिति में विमान के दोनों इंजन में फ्यूल का प्रवाह रुक गया, जो दुर्घटना का प्रमुख कारण हो सकता है।

बोइंग और अमेरिकी एजेंसी का बचाव: क्या यह काफी है?

AAIB की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद, अमेरिकी सरकारी एजेंसी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) और बोइंग ने तुरंत एक स्पष्टीकरण जारी किया। उन्होंने कहा कि फ्यूल कंट्रोल स्विच का डिज़ाइन और लॉकिंग फीचर्स बोइंग के विभिन्न विमानों में एक ही हैं, और वे इसे खतरे की स्थिति नहीं मानते हैं जिसके लिए किसी भी बोइंग विमान मॉडल पर एयरवर्थनेस डायरेक्टिव देने की आवश्यकता पड़े। यह नोटिफिकेशन 11 जुलाई को अहमदाबाद-लंदन प्लेन क्रैश की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद सामने आई, जिसमें इंजन फ्यूल कटऑफ स्विच पर सवाल उठाए गए थे।

हालांकि, सोशल मीडिया और विशेषज्ञों के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह अमेरिकी सरकार की बोइंग को बचाने की साजिश है। लोग पूछ रहे हैं कि अगर फ्यूल स्विच इतना सुरक्षित है, तो अचानक बंद कैसे हो गया, खासकर तब जब दोनों पायलटों ने इससे इनकार किया है। यह बहस बोइंग के अतीत के सुरक्षा रिकॉर्ड और एफएए की निगरानी की भूमिका पर भी सवाल उठाती है।

विमान के रखरखाव और पायलट का अनुभव

एयर इंडिया ने बताया कि पिछले छह सालों में अहमदाबाद-लंदन बोइंग 787-8 फ्लाइट के थ्रस्ट कंट्रोल मॉड्यूल (TCM) को दो बार बदला गया था, जिसमें 2019 और 2023 शामिल है। TCM में फ्यूल कंट्रोल स्विच होते हैं, जो इस दुर्घटना की जांच का केंद्र बन गए हैं। यह तथ्य कि इन स्विचों को टेकऑफ के तुरंत बाद बंद पाया गया, जबकि मुख्य पायलट सुमित सभरवाल के पास 8400 घंटे और को-पायलट सी. कुंदर के पास 3000 घंटे की उड़ान का अनुभव था, रहस्य को और गहरा करता है। इतने अनुभवी पायलटों द्वारा ऐसी गलती की संभावना कम मानी जा रही है।

बोइंग ड्रीमलाइनर का इतिहास: सुरक्षा चिंताएं पहले भी

बोइंग 787 ड्रीमलाइनर को एक आधुनिक, ईंधन-कुशल विमान के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसका इतिहास सुरक्षा चिंताओं से अछूता नहीं रहा है। इस विमान में लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग किया जाता है, जो सहायक बिजली इकाई (APU) और इलेक्ट्रॉनिक उड़ान प्रणालियों के लिए बैकअप के रूप में काम करती है। हालांकि, इन बैटरियों में ओवरहीटिंग और आग लगने की घटनाएं सामने आई हैं, जिसके कारण 2013 में पूरे 787 बेड़े को अस्थायी रूप से ग्राउंडेड करना पड़ा था। 2017 की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में भी बोइंग विमानों में बैटरी शॉर्ट-सर्किट की बात सामने आई थी।

न्यू यॉर्क टाइम्स के अनुसार, बोइंग के 108 साल के इतिहास में 6000 से अधिक प्लेन क्रैश हुए हैं, जिनमें 9000 से अधिक लोगों की मौत हुई है। विशेष रूप से, बोइंग 737 मैक्स से जुड़ी 2018 और 2019 की दुर्घटनाओं (जिसमें 346 लोगों की मौत हुई) में मैन्युवरिंग कैरेक्टरिस्टिक्स ऑग्मेंटेशन सिस्टम (MCAS) में बड़ी खामी सामने आई थी। इन हादसों के बाद विमान का संचालन रोक दिया गया था। पिछले साल बोइंग के सीईओ डेव कॉलहम को सीनेट के सामने सेफ्टी मानकों के उल्लंघन और आपराधिक साजिश रचने के आरोपों का सामना करना पड़ा था।

यह दुर्घटना एक बार फिर बोइंग विमानों की सुरक्षा और जांच प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जिससे दुनिया भर की एयरलाइंस और नियामक एजेंसियों पर दबाव बढ़ गया है कि वे इन चिंताओं का समाधान करें।

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