भारत बनाम चीन: क्या रेयर अर्थ मिनरल्स से बदलेगा शक्ति संतुलन?
चीन द्वारा रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर रोक से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित ,भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार
- राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन: जुलाई 2025 में शुरू हुआ यह मिशन घरेलू खनन और प्रसंस्करण को बढ़ावा देगा।
- Geological Survey of India (GSI) को 2024 से 2030 तक 1200 एक्सप्लोरेशन प्रोजेक्ट दिए गए हैं।
- Rs 1,345 करोड़ की स्कीम: भारी उद्योग मंत्रालय ने मैग्नेट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए यह स्कीम लाई है। महिंद्रा, उनो मिंडा, सोना BLW जैसे निजी खिलाड़ी भी रुचि दिखा रहे हैं।
- IREL का पुनर्गठन: यह सरकारी खनन कंपनी अब घरेलू ज़रूरतों को प्राथमिकता दे रही है और ओमान व वियतनाम में स्रोत तलाश रही है।
पूनम शर्मा
चीन ने जब अप्रैल 2025 में सात प्रमुख रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर पाबंदी लगाई, तो झटका सिर्फ अमेरिका या जापान को नहीं लगा—इसकी गूंज भारत तक भी पहुँची। इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) से लेकर रक्षा उत्पादों तक, भारत की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं इन खनिजों पर चीन की आपूर्ति पर निर्भर हैं। चीन के इस फैसले से भारत की EV इंडस्ट्री और रक्षा उत्पादन सेक्टर दोनों पर खतरे की तलवार लटक गई है। लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर भारत सही रणनीति अपनाए, तो यह संकट आत्मनिर्भरता की नींव रख सकता है। चीन द्वारा रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिजों) के निर्यात पर लगाई गई रोक ने वैश्विक तकनीकी और औद्योगिक दुनिया में हलचल मचा दी है। इससे भारत जैसे देशों को भी झटका लगा है, खासकर इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और रक्षा उत्पादन क्षेत्र में।
चीन का शिकंजा और भारत की चुनौती
रेयर अर्थ मिनरल्स—17 दुर्लभ तत्व जिनके बिना आधुनिक तकनीक अधूरी है—आज वैश्विक भू-राजनीति का नया हथियार बन चुके हैं। चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा भंडार (44 मिलियन टन) है और वह वैश्विक प्रोसेसिंग क्षमता का 90% नियंत्रित करता है।
भारत में सालाना लगभग 540 टन मैग्नेट चीन से मंगाए जाते हैं। चीन की नई नीतियों के कारण अब भारतीय कंपनियों—जैसे मारुति सुजुकी और JSW MG मोटर इंडिया—को कच्चे माल की मंजूरीभारत के पास है तीसरा सबसे बड़ा भंडार ,भारत के पास 6.9 मिलियन टन के रेयर अर्थ भंडार हैं, जो मुख्यतः आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल की मोनाजाइट रेत में मौजूद हैं। परंतु उत्पादन 2023-24 में केवल 2,900 टन रहा, यानी वैश्विक हिस्सेदारी का मात्र 1%।
भारत के पास वर्तमान उत्पादन से 250 गुना अधिक रेयर अर्थ भंडार हैं, जो समय रहते उपयोग में लाए जाएं तो रणनीतिक रूप से बड़ा हथियार बन सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि तकनीक, बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञता की कमी के कारण, बिना ठोस नीति सुधार और निजी भागीदारी के यह अवसर खो सकता है।
भारत के पास खनन की क्षमता तो है, परंतु प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी, रिफाइनिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर और निजी निवेश की भारी कमी है। इसके अलावा, मोनाजाइट में थोरियम जैसी रेडियोधर्मी सामग्री भी होती है, जिससे इसे निकालना जोखिमपूर्ण हो जाता है। भारत ऑस्ट्रेलिया जैसे मित्र देशों के साथ तकनीक और आपूर्ति साझेदारी कर रहा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक निजी कंपनियों को रेयर अर्थ खनन और प्रोसेसिंग में भागीदारी नहीं दी जाती, तब तक भारत चीन की बराबरी नहीं कर पाएगा।
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चुनौतियाँ क्या हैं?
प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी की कमी
खनन क्षेत्र में निजी भागीदारी पर Atomic Energy Act, 1962 की रोक
रेडियोधर्मी तत्वों के साथ मौजूदगी
पर्यावरणीय प्रतिबंध और जागरूकता की कमी
नीति सुधारों की धीमी
भारत ‘ को नीतिगत इच्छाशक्ति, निजी निवेश, तकनीकी साझेदारी और पर्यावरणीय संतुलन की जरूरत है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में बिना नाम लिए चीन को चेताया कि किसी देश को इन खनिजों को ‘हथियार’ की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। भारत के पास तीसरा सबसे बड़ा भंडार है और यह समय है, जब भारत को आयातक से निर्यातक बनने की ओर बढ़ना होगा।