इतिहास संकलन समिति की दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यशाला

भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन पर राष्ट्रव्यापी विमर्श, विद्वानों का जुटान भारत के सांस्कृतिक इतिहास को पुनः परिभाषित करने की ओर एक कदम

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  • अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के विद्वत परिषद की राष्ट्रीय कार्यशाला दिल्ली में संपन्न हुई।
  • कार्यशाला का उद्देश्य भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आख्यानों को स्वदेशी परिप्रेक्ष्य से पुनः स्थापित करना है।
  • देशभर से विद्वानों और क्षेत्रीय प्रमुखों ने इसमें भाग लेकर भविष्य की पहलों पर चर्चा की।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 13 जुलाई: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के झंडेवालान स्थित केशव कुंज में नवनिर्मित केंद्रीय कार्यालय “साधना” में आज अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के विद्वत परिषद (विद्वानों की परिषद) की एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सफलतापूर्वक संपन्न हुई। यह महत्वपूर्ण आयोजन टॉवर 1 के पुस्तकालय सभागार में हुआ, जिसमें देश भर से प्रमुख विद्वानों और क्षेत्रीय प्रमुखों ने भाग लिया। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य भारत के गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक आख्यानों को एक स्वदेशी दृष्टिकोण से पुनः स्थापित करना और उन्हें लिपिबद्ध करना था।

कार्यशाला का शुभारंभ पारंपरिक दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। संगठन के सम्मानित महासचिव, डॉ. बालमुकुंद पांडे ने भारत माता और बाबा साहेब आप्टे की प्रतिमाओं के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस पवित्र शुरुआत ने कार्यशाला के गरिमामय और राष्ट्रवादी उद्देश्य को और भी अधिक रेखांकित किया।

विद्वत परिषद के राष्ट्रीय प्रमुख, प्रोफेसर संतोष कुमार शुक्ला ने अपने उद्घाटन भाषण के साथ कार्यशाला के एजेंडे का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि यह कार्यशाला किस प्रकार भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार-विमर्श करने और भविष्य की रणनीति तैयार करने के लिए एक मंच प्रदान करेगी। प्रोफेसर शुक्ला ने प्रतिभागियों से आह्वान किया कि वे अपने शोध और ज्ञान को साझा करें ताकि भारत के वास्तविक ऐतिहासिक स्वरूप को उजागर किया जा सके।

अपने मुख्य भाषण में डॉ. बालमुकुंद पांडे ने विद्वत परिषद के दृष्टिकोण, संरचना और लक्ष्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया, जो भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आख्यानों को स्वदेशी परिप्रेक्ष्य से पुनः प्राप्त करने और फिर से लिखने में सहायक होगी। डॉ. पांडे ने इस बात पर बल दिया कि सदियों से विदेशी आक्रमणकारियों और औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा भारतीय इतिहास को विकृत किया गया है, और अब समय आ गया है कि हम अपने स्वयं के स्रोतों और शोध के आधार पर अपने इतिहास को पुनः लिखें। उन्होंने कहा कि यह केवल इतिहास का पुनर्लेखन नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की अस्मिता और गौरव की पुनर्स्थापना है।

कार्यशाला में देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से आए विद्वानों ने अपने-अपने शोध कार्य और विचारों को प्रस्तुत किया। प्रतिभागियों ने प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों, विभिन्न ऐतिहासिक कालों की घटनाओं, और भारतीय समाज के विकास पर गहन चर्चा की। इस दौरान, इतिहास के उन अनछुए पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया, जिन्हें अब तक मुख्यधारा के इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाया था। कार्यशाला में यह भी तय किया गया कि भविष्य में इतिहास संकलन के कार्य को गति देने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी ऐसी कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी, ताकि अधिक से अधिक विद्वानों और शोधार्थियों को इस अभियान से जोड़ा जा सके।

विद्वानों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि इतिहास केवल घटनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह किसी भी राष्ट्र की पहचान और उसके भविष्य की दिशा तय करने वाला महत्वपूर्ण आधार है। इसलिए, भारत के युवाओं को अपने वास्तविक इतिहास से अवगत कराना अत्यंत आवश्यक है। इस कार्यशाला ने इतिहास के अध्ययन और शोध में एक नई ऊर्जा का संचार किया है, जिससे भारत अपने अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त कर सकेगा और एक सशक्त भविष्य की नींव रखेगा।

यह राष्ट्रीय कार्यशाला भारतीय इतिहास लेखन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई, जिसने भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पुनर्जागरण की दिशा में एक सशक्त कदम बढ़ाया है।

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