उद्धव-राज ठाकरे एक मंच पर: भाषा विवाद और सियासी तेवर

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • दो दशक बाद उद्धव और राज ठाकरे एक साथ मंच पर दिखे।
  • हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के फैसले के विरोध में एकजुट हुए दोनों भाई।
  • राज ठाकरे ने कार्यकर्ताओं को हिंसा के वीडियो न बनाने की ‘सलाह’ दी।

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 12 जुलाई: महाराष्ट्र की राजनीति में एक अप्रत्याशित और ऐतिहासिक पल देखने को मिला जब दो दशक बाद शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे एक ही मंच पर एक साथ नजर आए। यह मौका था राज्य सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य किए जाने के फैसले को वापस लिए जाने का जश्न मनाने का। इस दौरान दोनों भाइयों ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार पर जमकर निशाना साधा, और भाषा के नाम पर हो रही हिंसा के बीच राज ठाकरे का कार्यकर्ताओं को दिया गया ‘संदेश’ भी चर्चा का विषय बन गया।

दो दशकों बाद भाइयों का मिलन

यह पहली बार था जब उद्धव और राज ठाकरे बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद किसी सार्वजनिक मंच पर एक साथ दिखे। महाराष्ट्र की राजनीति में यह घटनाक्रम कई मायने रखता है, खासकर तब जब राज्य में भाषा को लेकर तनाव बढ़ रहा है। दोनों नेताओं ने इस मंच का उपयोग अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन करने और महाराष्ट्र की अस्मिता के मुद्दे पर अपनी दृढ़ता व्यक्त करने के लिए किया। इस एकजुटता ने न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी नई चर्चाओं को जन्म दिया।

हिंदी भाषा और राजनीतिक संग्राम

राज्य सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किए जाने के फैसले के विरोध में दोनों भाइयों ने एक साथ मोर्चा खोला था। इस फैसले को वापस लिए जाने को उन्होंने अपनी जीत के रूप में पेश किया और इसी का जश्न मनाने के लिए यह मंच साझा किया गया। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों ने ही अपनी भाषणों में महाराष्ट्र और मराठी भाषा की अस्मिता को केंद्रीय मुद्दा बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। यह घटना दर्शाती है कि भाषा का मुद्दा महाराष्ट्र में कितना संवेदनशील और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।

इसे भी पढ़ें : भारत की आत्मा पर हमला: भाषा के नाम पर देश को बाँटने वाले क्षेत्रीय नेता 

राज ठाकरे की ‘नई सलाह’

इस दौरान राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मीरा रोड की एक घटना का भी हवाला दिया, जहां पर एक व्यापारी की हत्या हो गई थी। राज ठाकरे ने कार्यकर्ताओं से कहा, “क्या किसी के माथे पर लिखा होता है कि वह किस जाति या समुदाय से है? मेरा कहना है कि बेवजह किसी को मत मारो, लेकिन अगर कोई ज्यादा ही नाटक करता है तो फिर उसके कान के नीचे जरूर बजाओ।हां लेकिन अगली बार जब किसी को पीटो तो उसका वीडियो मत बनाना।” यह बयान राज्य में भाषा के नाम पर हो रही हिंसा को नजरअंदाज करते हुए दिया गया, जिससे एक नई बहस छिड़ गई है। उनकी यह ‘सलाह’ कार्यकर्ताओं को उकसाने और साथ ही कानून प्रवर्तन से बचने की दोहरी रणनीति प्रतीत होती है।

सरकार पर तीखा हमला

राज ठाकरे ने अपने संबोधन में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्र सरकार को भी मराठी भाषा को लेकर जमकर घेरा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “अगर तुम्हारे पास विधानभवन में सत्ता है।। तो हमारे पास भी महाराष्ट्र की सड़कों की सत्ता है।” यह बयान राज ठाकरे के आक्रामक तेवरों को दर्शाता है और यह संकेत देता है कि वे सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने में हिचकिचाएंगे नहीं। इतना ही नहीं, राज ठाकरे ने बताया कि राज्य के शिक्षा मंत्री उनसे मिलने आए थे और उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि वे उनकी बात सुनेंगे जरूर लेकिन मानेंगे नहीं। यह टिप्पणी राज ठाकरे के हठी स्वभाव और सरकार के प्रति उनके अविश्वास को उजागर करती है।

राजनीतिक निहितार्थ

उद्धव और राज ठाकरे का एक साथ मंच पर आना महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बड़े संकेत देता है। यह भविष्य में एक संभावित गठबंधन या कम से कम भाषा और मराठी अस्मिता के मुद्दों पर दोनों गुटों के बीच एक अनौपचारिक समन्वय की संभावना को बल देता है। यह घटना भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) गठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है, खासकर आगामी चुनावों को देखते हुए। दोनों भाइयों की यह एकजुटता महाराष्ट्र की पहचान और भाषा के संरक्षण के इर्द-गिर्द एक मजबूत राजनीतिक विमर्श को जन्म दे सकती है।

 

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.