पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण: सियासी घमासान और विपक्षी दलों की चिंताएं
बिहार के बाद अब बंगाल में वोटर लिस्ट के 'डी नोवो' पुनरीक्षण पर उठे सवाल, तृणमूल कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
- पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 से पहले भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) कराने की तैयारी है।
- यह प्रक्रिया अगस्त 2025 के आसपास शुरू होकर अक्टूबर तक पूरी होने की संभावना है, जिस पर विपक्षी दल समय को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
- विपक्षी दलों का आरोप है कि यह कवायद मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने और सत्तारूढ़ दल को फायदा पहुंचाने की “साजिश” है।
समग्र समाचार सेवा
कोलकाता, पश्चिम बंगाल, 11 जुलाई: बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चल रहे विवाद के बीच, अब भारत निर्वाचन आयोग (ECI) पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह की कवायद की तैयारी कर रहा है। विधानसभा चुनाव 2026 से कुछ महीने पहले मतदाता सूची के इस ‘डी नोवो’ (शुरू से) पुनरीक्षण की योजना ने राज्य के राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। विपक्षी दल, विशेष रूप से सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC), इस कदम को “संदिग्ध टाइमिंग” और मतदाताओं को प्रभावित करने की “साजिश” करार दे रहे हैं, जबकि आयोग का कहना है कि यह चुनावी पारदर्शिता और सूची की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
क्या है विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR)?
विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) मतदाता सूची के वार्षिक सारांश पुनरीक्षण से अलग एक गहन प्रक्रिया है। इसमें बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करते हैं और एक नई सूची तैयार की जाती है। ECI का तर्क है कि पिछले दो दशकों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर बदलाव (जुड़ने और हटने) हुए हैं, जिससे डुप्लीकेट प्रविष्टियों और मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम सूची में बने रहने की आशंका बढ़ गई है। आयोग के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 2002 से मतदाताओं की संख्या में असामान्य रूप से 62-66% की वृद्धि हुई है, जिसे केवल जन्म दर से नहीं समझाया जा सकता। यह पुनरीक्षण इसी असामान्यता को दूर करने और सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है।
संभावित कार्यक्रम और विवादित टाइमिंग
हालांकि पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) की ओर से अभी कोई आधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं की गई है, सूत्रों के अनुसार यह प्रक्रिया 1 अगस्त, 2025 के आसपास शुरू हो सकती है और अक्टूबर के अंत तक इसे पूरा करने का लक्ष्य है। इसके बाद नवंबर-दिसंबर में सारांश पुनरीक्षण भी हो सकता है।
इस टाइमिंग को लेकर विपक्षी दलों ने तीखा विरोध जताया है। उनका आरोप है कि आगामी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस तरह की गहन कवायद जानबूझकर की जा रही है ताकि सत्तारूढ़ दल को फायदा पहुंचाया जा सके या विशेष समुदायों के मतदाताओं को बाहर किया जा सके। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने तो सुप्रीम कोर्ट में इस अप्रत्याशित SIR के खिलाफ याचिका भी दायर की है। बिहार में भी इसी तरह की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जहाँ अदालत ने इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं, लेकिन प्रक्रिया की संवैधानिकता पर फिलहाल रोक नहीं लगाई है।
प्रक्रिया और दस्तावेज़ संबंधी चिंताएं
पश्चिम बंगाल में भी बिहार के मॉडल की तर्ज पर ही SIR चलाया जाएगा, जिसमें बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर पूर्वनिर्धारित गणना फॉर्म वितरित करेंगे। इन फॉर्मों को आवश्यक दस्तावेजों के साथ जमा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मामले में आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को सत्यापन के लिए मान्य करने पर विचार करने को कहा है, जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि बंगाल में भी इन दस्तावेजों को स्वीकार किया जाएगा।
विपक्षी दलों की मुख्य चिंता यह भी है कि सत्यापन प्रक्रिया में वास्तविक मतदाताओं को परेशान न किया जाए, खासकर बुजुर्ग, बीमार, दिव्यांग और गरीब वर्ग के लोगों को। वे आरोप लगा रहे हैं कि नागरिकता सत्यापन पर अत्यधिक जोर दिया जा रहा है, जो गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है, न कि चुनाव आयोग का। तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि राज्य में जनवरी 2025 में ही मतदाता सूची का एक विशेष सारांश पुनरीक्षण पूरा हो चुका है, और अब इस नई ‘डी नोवो’ प्रक्रिया का मतलब उस काम को खारिज करना है।
राजनीतिक निहितार्थ और आगे की राह
पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के इस विशेष पुनरीक्षण के बड़े राजनीतिक निहितार्थ हैं। सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस इसे भाजपा की ‘साजिश’ मान रही है ताकि उसके वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके। वहीं, भाजपा इसे मतदाता सूची की शुद्धि के लिए एक आवश्यक कदम बता रही है।
चुनाव आयोग का दावा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें बूथ लेवल ऑफिसर (BLO), बूथ लेवल एजेंट (BLA) और स्वयंसेवकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। हालांकि, यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर क्या फैसला सुनाता है और राजनीतिक दल इस पूरी प्रक्रिया को किस तरह से लेते हैं। फिलहाल, पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतदाता सूची का यह पुनरीक्षण आगामी चुनावों से पहले एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है।