भारत की आत्मा पर हमला: भाषा के नाम पर देश को बाँटने वाले क्षेत्रीय नेता
राष्ट्रवाद के दौर में भाषा के नाम पर विभाजन की साजिश, क्षेत्रीय कट्टरपंथियों पर उठते सवाल
- क्षेत्रीय नेताओं और भाषाई कट्टरपंथियों द्वारा भारत की एकता को चोट पहुँचाने वाले बयान और हिंसक हरकतें बढ़ रही हैं।
- महाराष्ट्र (राज ठाकरे), असम (श्रींखल चालीहा), बंगाल (बांग्ला पक्ष) और कर्नाटक (कर्नाटका रक्षणा वेदिके) जैसे समूहों पर भाषा के नाम पर नफरत फैलाने का आरोप है।
- ये घटनाएँ भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त देश में कहीं भी रहने, काम करने और गरिमा के साथ जीने के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
पूनम शर्मा
जब भारत आज़ादी के 75 वर्ष पार कर चुका है और राष्ट्रवाद की भावना पूरे देश में नई ऊंचाइयों को छू रही है, तब कुछ क्षेत्रीय नेता और भाषाई कट्टरपंथी भारत की एकता को जहर घोलने वाले बयानों और हिंसक हरकतों से चोट पहुँचा रहे हैं। महाराष्ट्र में राज ठाकरे हों या असम में श्रींखल चालीहा, बंगाल में ‘बांग्ला पक्ष’ के सदस्य हों या कर्नाटक में ‘कर्नाटका रक्षणा वेदिके’ — सब एक ही जहरीली राजनीति के वाहक हैं। इनका एक ही उद्देश्य है: भारत को भाषाओं, प्रांतों और पहचान के नाम पर बांटना।
भाषा के नाम पर नफरत का व्यापार
राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का एक वीडियो हाल ही में वायरल हुआ, जिसमें एक गरीब फेरीवाले को सिर्फ इसलिए बुरी तरह पीटा गया क्योंकि वह मराठी नहीं बोल सका। ठाकरे ने शर्मनाक रूप से सलाह दी कि “थप्पड़ मारो, लेकिन वीडियो मत बनाओ” — यह न सिर्फ कानून का मखौल है, बल्कि उस संविधान की भी अवमानना है जिसने हर भारतीय को देश के किसी भी हिस्से में रहने और काम करने का अधिकार दिया है।
क्या भाषा के नाम पर किसी को पीटना, अपमानित करना, या उसे “बाहरी” कहना स्वीकार्य है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(d) के अनुसार, हर नागरिक को भारत में कहीं भी जाने, बसने और रोजगार करने का अधिकार है — बिना इस डर के कि भाषा उसकी सुरक्षा और गरिमा को तय करेगी।
श्रींखल चालीहा और अलगाव की आग
असम में ‘लचित सेना’ के नेता श्रींखल चालीहा पर 2023 में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) लगाया गया था। वजह? उन्होंने एक मारवाड़ी व्यापारी को सार्वजनिक रूप से गाली दी, उस पर थूका और सोशल मीडिया पर इसका वीडियो डाला। इससे पहले भी वह बंगाली समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाते रहे हैं।
यह वही असम है जो दशकों तक भाषा के नाम पर जलता रहा — 1940 से 1980 तक हजारों जानें गईं। लेकिन अब जब असम आगे बढ़ रहा है, तो चालीहा जैसे नेता पुरानी नफरत को फिर से जिंदा करने पर तुले हैं। ये नेता वही हैं जो लचित बोरफुकन जैसे वीरों की विरासत का दुरुपयोग करते हैं, जैसे महाराष्ट्र में ठाकरे शिवाजी महाराज का नाम लेकर नफरत फैलाते हैं।
बांग्ला पक्ष और भाषाई घमंड
पश्चिम बंगाल में ‘बांग्ला पक्ष’ नामक समूह ने बिहार के दो छात्रों को सिर्फ इसलिए पीटा क्योंकि वे बंगाल में परीक्षा देने आए थे और बंगाली नहीं बोलते थे। उन्हें उस कमरे से खींचकर बाहर लाया गया जहाँ वे आराम कर रहे थे और उनके बिहारी होने पर अपमानित किया गया।
यह भारत के उस विचार के खिलाफ है जो कहता है: “वसुधैव कुटुम्बकम्” — संपूर्ण विश्व एक परिवार है। लेकिन बंगाल, असम, महाराष्ट्र, और कर्नाटक में अब यह भावना खत्म होती दिख रही है।
कर्नाटक में मराठी विरोध और अंग्रेजी घृणा
बेंगलुरु में कर्नाटका रक्षणा वेदिके (KRV) के कार्यकर्ताओं ने हाल ही में एक मराठी मिसल पाव की दुकान को बंद करवा दिया क्योंकि उस पर कन्नड़ में नाम नहीं लिखा था। इससे पहले अंग्रेजी साइनबोर्ड्स को तोड़ने की घटनाएं सामने आई थीं।
यह नफरत किसी एक भाषा या समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि उस एकता के खिलाफ है जो आज के भारत को परिभाषित करती है। जब आज दिल्ली में असम, बिहार, कश्मीर, और केरल के लोग साथ रहते हैं, जब चेन्नई में पंजाबी रेस्तरां चलते हैं, जब मुंबई में तमिलों की बस्तियां फलती-फूलती हैं, तब क्षेत्रीय कट्टरता हमारी आत्मा को घायल करती है।
भारत की सांस्कृतिक विविधता है एकता की नींव
आज हम उस युग में हैं जहाँ भारत की युवा पीढ़ी बंगाल में पढ़ाई कर सकती है, महाराष्ट्र में नौकरी कर सकती है, और कर्नाटक में व्यापार। यह वह सपना है जो संविधान निर्माताओं ने देखा था — एक ऐसा भारत जहाँ विविधता विभाजन नहीं, बल्कि ताकत हो।
लेकिन ठाकरे, चालीहा, और ‘बांग्ला पक्ष’ जैसे नेता उस विचार पर हमला कर रहे हैं। यह देश 1947 में बना ज़रूर, लेकिन एक सभ्यता के रूप में हजारों वर्षों से मौजूद है — कभी भी भाषा या क्षेत्र के नाम पर विभाजित नहीं हुआ।
ब्रिटिशों ने बांटा, अब भारतीय बांट रहे हैं?
अंग्रेज़ों ने “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाई थी। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम, ऊंच-नीच, और प्रांतों के आधार पर समाज को बांटने की हर संभव कोशिश की। लेकिन क्या आज वही काम ठाकरे, चालीहा, या KRV जैसे संगठन नहीं कर रहे?
ये लोग भारत को भाषाई राज्यों के जाल में फंसा देना चाहते हैं — जहाँ हर राज्य एक किला बन जाए और उसके बाहर से आने वाले भारतीयों को दुश्मन समझा जाए।
राजनीति और चुप्पी का षड्यंत्र
महाराष्ट्र की महायुति सरकार, जिसने हाल तक ठाकरे की MNS को समर्थन दिया, ने इस शर्मनाक घटना पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाया। यह चुप्पी बताती है कि कहीं न कहीं राजनीति को ऐसे टुकड़े-टुकड़े करने वाली शक्तियों से लाभ होता है।
यदि समय रहते इन पर सख्ती नहीं की गई, तो भारत के हर हिस्से में कोई “राज ठाकरे”, कोई “चालीहा”, और कोई “बांग्ला पक्ष” खड़ा हो जाएगा।
भारत को चाहिए भाषाई सम्मान, नहीं ज़बरदस्ती
हर भाषा का सम्मान होना चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण जरूरी है। लेकिन वह संरक्षण प्रेम और प्रोत्साहन से हो, न कि डंडे और थप्पड़ों से।
भारतीयता का अर्थ है — तमिलनाडु का नागरिक अगर पंजाब में रोजगार करता है, तो उसे वहां उतना ही सुरक्षित महसूस हो जितना चेन्नई में। बिहार का छात्र अगर बेंगलुरु में परीक्षा देने जाए, तो वह वहां डर से नहीं, आत्मविश्वास से जाए।
भारत एक परिवार है, किला नहीं
इन क्षेत्रीय नेताओं को समझना होगा कि भारत कोई रजवाड़ा नहीं, जहाँ हर रियासत अपनी सीमा और भाषा से बाकी देश से कट जाए। यह एक परिवार है — जिसमें हर सदस्य को बराबर का सम्मान मिलना चाहिए।
हमें मिलकर बोलना होगा — “भारत में हर कोई भारतीय है, बाहरी नहीं।”