समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8 जुलाई — भारत सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) के बीच रॉयटर्स के हैंडल को ब्लॉक करने और बाद में उसे अनब्लॉक करने को लेकर एक बड़ा टकराव सामने आया है। यह केवल एक तकनीकी विवाद नहीं है, बल्कि इससे एक बड़ा और गहरा सवाल खड़ा हुआ है — क्या भारत सरकार अब सोशल मीडिया के दबाव में निर्णय लेने लगी है? क्या भारत की नीति, कानून और संप्रभुता अब ट्विटर पोस्ट और हैशटैग्स से संचालित होगी?
क्या हुआ था?
3 जुलाई को X ने एक चौंकाने वाला दावा किया कि भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A के तहत उसे 2,355 अकाउंट्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया था। इन अकाउंट्स में अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी @Reuters और @ReutersWorld जैसे महत्वपूर्ण मीडिया संगठनों के हैंडल भी शामिल थे। X के अनुसार, उसे एक घंटे के भीतर कार्रवाई करने को कहा गया था, और यह भी निर्देशित किया गया था कि अकाउंट्स अगली सूचना तक ब्लॉक ही रहें।
X ने यह भी कहा कि अगर उसने आदेश का पालन नहीं किया, तो उस पर आपराधिक कार्रवाई की जा सकती थी। हालांकि, सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम से इनकार किया और कहा कि रॉयटर्स के हैंडल को ब्लॉक करने का कोई सरकारी आदेश नहीं था।
यह दावा और प्रतिदावा ऐसे समय पर आया जब सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर भारी विरोध हुआ। बड़े पैमाने पर लोगों ने भारत सरकार की आलोचना की और इसे “प्रेस की आज़ादी पर हमला” बताया। इसके बाद X ने दावा किया कि सरकार ने अकाउंट्स को अनब्लॉक करने का आदेश दे दिया।
सरकार और सोशल मीडिया आमने-सामने
अब यह सवाल जरूरी हो गया है कि अगर सरकार ने वाकई रॉयटर्स को ब्लॉक नहीं किया था, तो उसका हैंडल भारत में क्यों दिखाई नहीं दे रहा था? और अगर किया था, तो क्या यह एक पारदर्शी और कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ? इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि सरकार ने सोशल मीडिया पर हो रहे विरोध को देखकर अपना फैसला बदला, तो क्या अब भारत की नीतियां ट्विटर ट्रेंड्स और इंस्टाग्राम स्टोरीज़ से तय होंगी?
क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था इतनी कमज़ोर है?
भारत एक संप्रभु और लोकतांत्रिक देश है, जहां नीतियां संविधान, संसद और कानून के आधार पर बनती हैं, न कि ट्रेंडिंग हैशटैग्स या डिजिटल प्रोपेगैंडा के आधार पर। यदि सरकार केवल सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया देखकर आदेश वापस लेने लगे, तो यह प्रशासनिक मजबूती की नहीं बल्कि कमजोर निर्णय प्रक्रिया की निशानी है।
सोशल मीडिया का प्रभाव आज की राजनीति में महत्वपूर्ण है, लेकिन उसकी भूमिका सुझाव देने तक सीमित होनी चाहिए, न कि निर्णय बदलवाने तक। अगर X जैसी कंपनियां यह दावा करें कि उन्होंने सरकार को अपनी नीति बदलने पर “मजबूर” कर दिया, तो यह भारत की संप्रभुता और नीति-निर्धारण प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
प्रेस की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्र की संप्रभुता
X ने यह भी कहा कि वह भारत में “प्रेस सेंसरशिप” को लेकर गहरी चिंता में है और कानूनी विकल्पों की तलाश कर रहा है। सवाल यह है कि क्या भारत में मीडिया पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है? क्या सोशल मीडिया ही प्रेस की स्वतंत्रता का पैमाना है?
भारतीय संविधान प्रेस की स्वतंत्रता को अधिकार देता है, लेकिन वही संविधान यह भी कहता है कि कोई भी स्वतंत्रता निरंकुश नहीं हो सकती। अगर कोई मीडिया संगठन देश की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था या सामाजिक शांति को नुकसान पहुंचाता है, तो सरकार को कानून के तहत कार्रवाई करने का अधिकार है। लेकिन X जैसे मंच अगर बिना प्रमाण, सरकार को “सेंसरशिप” का दोषी ठहराने लगें, तो यह भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाने की कोशिश मानी जा सकती है।
भारत की नीतियां भारत के संविधान से चलेंगी, न कि एलन मस्क के मंच से
यह बेहद चिंताजनक है कि एक विदेशी सोशल मीडिया कंपनी भारत सरकार पर इस तरह से आरोप लगा रही है और देश की नीतियों में हस्तक्षेप कर रही है। X का यह दावा कि वह भारत के आदेशों को मानते हुए भी कानून के तहत चुनौती नहीं दे सकता, अपने आप में एक विरोधाभास है। अगर आप भारतीय कानून मानते हैं, तो फिर आपको उसकी सीमाओं को भी स्वीकार करना होगा।
दूसरी ओर, भारत सरकार को भी इस विवाद पर स्पष्ट और दस्तावेज़ आधारित जानकारी देश के सामने रखनी चाहिए, ताकि कोई भ्रम न रहे। अगर वाकई कोई गलती या निर्णय में जल्दबाज़ी हुई थी, तो उसे भी स्वीकार किया जाना चाहिए। लेकिन यह ज़रूरी है कि सरकार निर्णय ले कानून और तर्क के आधार पर — न कि ट्रोल आर्मी, विदेशी मीडिया या ट्विटर स्पेस की प्रतिक्रिया के दबाव में।
निष्कर्ष:
रॉयटर्स विवाद केवल एक अकाउंट ब्लॉक या अनब्लॉक करने का मामला नहीं है, यह एक बड़ी चेतावनी है कि अगर सरकारें सोशल मीडिया दबाव में काम करने लगें, तो लोकतंत्र की आत्मा कमज़ोर हो जाती है। भारत को यह तय करना होगा कि उसकी नीति जनता के हित, कानून और संविधान के अनुसार चलेगी या फिर सोशल मीडिया कंपनियों के इशारों पर।
सरकारें जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं — लेकिन वह जवाबदेही ट्विटर के ट्रेंड से नहीं, बल्कि संसद और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से तय होती है।