आदित्य ठाकरे का बीजेपी पर तीखा हमला: भाषा विवाद और तेजस्वी यादव का डर

महाराष्ट्र में गहराया भाषा विवाद, आदित्य ठाकरे ने बीजेपी की मंशा पर उठाए सवाल

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मुख्य बातें:
  • आदित्य ठाकरे ने बीजेपी पर महाराष्ट्र में भाषा विवाद भड़काने का आरोप लगाया।
  • उन्होंने कहा कि बीजेपी को बिहार में तेजस्वी यादव की संभावित जीत का डर है, इसलिए वे ऐसे बयान दे रहे हैं।
  • ठाकरे ने जोर दिया कि उनकी लड़ाई हिंदी या किसी समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की अस्मिता पर हमला करने वाली सत्ता के खिलाफ है।

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 8 जुलाई: महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों भाषा विवाद गरमाया हुआ है, और इसी बीच शिवसेना (यूबीटी) के नेता और विधायक आदित्य ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर जमकर हमला बोला है। ठाकरे ने भाजपा पर महाराष्ट्र में ‘मराठी बनाम हिंदी’ की स्थिति पैदा करने का आरोप लगाया है, और इसे बिहार चुनाव से जोड़ते हुए बड़ा दावा किया है।

भाजपा को तेजस्वी यादव का डर?

आदित्य ठाकरे ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के भाषा संबंधी बयान को लेकर उन पर निशाना साधा। ठाकरे के अनुसार, दुबे न तो महाराष्ट्र के प्रतिनिधि हैं और न ही हिंदी भाषा के। वे सिर्फ भाजपा की विचारधारा के प्रवक्ता हैं, जो “नफरत, विभाजन और नकारात्मकता” से भरी हुई है। उन्होंने कहा कि भाजपा को बिहार में तेजस्वी यादव की संभावित जीत का डर सता रहा है, और इसी वजह से वे महाराष्ट्र में भाषा विवाद खड़ा कर रहे हैं। ठाकरे ने यह भी आरोप लगाया कि जब भाजपा हार की ओर बढ़ती है, तब वह समाज को भाषा, जाति और धर्म के नाम पर बांटने लगती है।

महाराष्ट्र: विविधता में एकता

ठाकरे ने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र विविधताओं का प्रदेश है, जहां उत्तर से लेकर दक्षिण भारत के लोग मिलकर रहते और काम करते हैं। उन्होंने कहा, “हमारा हिंदी भाषा या किसी समुदाय से कोई झगड़ा नहीं है। हमारा विरोध सिर्फ उस सत्ता से है जो मराठी अस्मिता को ठेस पहुंचाती है।” उन्होंने आनंद दुबे जैसे लोगों का हवाला दिया जो महाराष्ट्र में मराठी भाषा की सेवा कर रहे हैं और सभी को उनसे सीख लेने की बात कही। ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं से ऐसे बयानों का जवाब भावनाओं से नहीं, बल्कि राजनीतिक तरीके से देने का आग्रह किया।

महा विकास अघाड़ी की बढ़ती ताकत

आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की रणनीति पर भी बात की। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में कई दल और समूह एमवीए के साथ जुड़ने को तैयार हैं और यह एक मजबूत गठबंधन बनकर उभर रही है। इंडिया गठबंधन के साथ-साथ महाराष्ट्र के स्थानीय मुद्दों पर भी विचार-विमर्श चल रहा है, जिसमें उद्योगपतियों की भूमिका और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) जैसे दलों के रुख पर भी चर्चा शामिल है। ठाकरे बंधुओं (उद्धव और राज ठाकरे) के एक साथ आने से जनता में जोश और उत्साह है।

हिंदी थोपने का विरोध, हिंदी का नहीं

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की नीति को वापस लेने के बाद भी भाषा विवाद गहराया। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों ने ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ एकजुटता दिखाई थी, जिसकी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी सराहना की थी। हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) ने डीएमके के अधिक कट्टर रुख से दूरी बनाई, यह स्पष्ट करते हुए कि उनका विरोध हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं, बल्कि उसके ‘थोपे जाने’ के खिलाफ है। सांसद संजय राउत ने भी कहा कि महाराष्ट्र का विरोध ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ है, न कि भाषा के खिलाफ।

इस विवाद के बीच, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठी भाषा के प्रति गर्व दोहराया, लेकिन हिंदी का विरोध करने वालों की भी आलोचना की, यह दावा करते हुए कि यह भी एक भारतीय भाषा है। मुंबई में आगामी निकाय चुनावों को देखते हुए भाजपा हिंदी भाषी मतदाताओं को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, खासकर बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के लिए लड़ाई तेज होने की उम्मीद है।

आदित्य ठाकरे के बयानों से स्पष्ट है कि महाराष्ट्र में भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा आगामी चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भाजपा और शिवसेना (यूबीटी) के बीच यह वैचारिक लड़ाई सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं है, बल्कि राजनीतिक वर्चस्व और क्षेत्रीय पहचान की भी है।

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