सार्वजनिक बैंकों में न्यूनतम बैलेंस का नियम खत्म: आपकी बचत पर क्या होगा असर?

करोड़ों खाताधारकों को मिली बड़ी राहत, पेनल्टी का डर खत्म। अब सार्वजनिक बैंकों में बचत खाते में न्यूनतम बैलेंस रखने की अनिवार्यता खत्म। न्यूनतम बैलेंस न रखने पर लगने वाले शुल्क से करोड़ों ग्राहकों को मिली मुक्ति। SBI ने 2020 में ही यह नियम हटाया था, अब अन्य बड़े सरकारी बैंक भी शामिल।

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 7 जुलाई: भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रमुख बैंकों ने बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस रखने की अनिवार्यता को समाप्त करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इस कदम से करोड़ों खाताधारकों को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि अब उन्हें अपने खाते में एक निश्चित न्यूनतम राशि बनाए रखने के लिए पेनल्टी का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह परिवर्तन डिजिटल बैंकिंग के इस युग में वित्त मंत्रालय के साथ हुई चर्चाओं के बाद आया है, जिसमें मंत्रालय ने ऐसे नियमों की आवश्यकता पर सवाल उठाया था।

पेनल्टी का दौर खत्म, ग्राहकों को फायदा

इस नई नीति के लागू होने से बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और इंडियन बैंक जैसे बड़े सार्वजनिक बैंक अब अपने ग्राहकों से न्यूनतम बैलेंस न रखने पर कोई शुल्क नहीं लेंगे। यह उन लाखों लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जो अक्सर गलती से या अपनी वित्तीय स्थिति के कारण न्यूनतम बैलेंस बनाए रखने में असमर्थ होते थे और उन्हें अनावश्यक रूप से भारी जुर्माना भरना पड़ता था। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने तो इस नियम को 2020 में ही खत्म कर दिया था, जब यह खुलासा हुआ था कि न्यूनतम बैलेंस पेनल्टी से होने वाली आय बैंक के मुनाफे से भी अधिक हो गई थी। SBI के इस कदम ने अन्य सार्वजनिक बैंकों के लिए एक मिसाल कायम की थी।

सरकारी और निजी बैंकों में अंतर

जहां एक ओर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इन नियमों में ढील दे रहे हैं, वहीं निजी बैंक अभी भी आम तौर पर न्यूनतम बैलेंस के सख्त नियमों को लागू करते हैं। हालांकि, जन धन खातों और वेतन खातों जैसे कुछ विशेष प्रकार के खातों के लिए निजी बैंकों में भी छूट मौजूद है। यह दिखाता है कि वित्तीय समावेशन और आम जनता तक बैंकिंग सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने में सार्वजनिक बैंकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है।

RBI की रिपोर्ट और बदलती प्राथमिकताएं

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्टों से पता चलता है कि बैंकों का ध्यान अब फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और सर्टिफिकेट डिपॉजिट (CD) की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि ये उत्पाद उच्च रिटर्न प्रदान करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, पारंपरिक बचत खातों की वृद्धि दर में कमी आई है। यह नीतिगत बदलाव भी बैंकों की बदलती प्राथमिकताओं को दर्शाता है। बैंक अब उन उत्पादों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो उनके लिए अधिक लाभदायक हैं, जबकि बचत खातों को ग्राहकों के लिए अधिक सुलभ और परेशानी मुक्त बना रहे हैं।

जन धन खातों की सफलता का सबक

केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए जीरो-बैलेंस खातों की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि ग्राहक दंडात्मक नियमों के बिना भी अपने खातों में बैलेंस बनाए रख सकते हैं। जन धन योजना का उद्देश्य समाज के वंचित वर्गों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना था, और इन खातों ने यह दिखाया कि वित्तीय सेवाओं तक पहुंच के लिए न्यूनतम बैलेंस की शर्त हमेशा आवश्यक नहीं होती। इस अनुभव ने भी सार्वजनिक बैंकों को न्यूनतम बैलेंस नियम पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है।

ग्राहकों के लिए सुझाव

बैंकों द्वारा न्यूनतम बैलेंस नियम को खत्म करने के बावजूद, ग्राहकों को सलाह दी जाती है कि वे नवीनतम नियमों और अपने बैंक के साथ किसी भी अन्य शर्तों के लिए अपने संबंधित बैंकों से संपर्क करें। साथ ही, यदि ग्राहक उच्च रिटर्न की तलाश में हैं, तो उन्हें फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे अन्य निवेश विकल्पों पर विचार करना चाहिए, क्योंकि बचत खातों पर मिलने वाला ब्याज आमतौर पर कम होता है। यह बदलाव निश्चित रूप से भारत में बैंकिंग प्रणाली को अधिक ग्राहक-केंद्रित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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