साहिर लुधियानवी को आख़िरी विदाई और 200 रुपये का अनकहा क़र्ज़

जावेद अख़्तर ने बयां किए साहिर के साथ अपने दिल को छू लेने वाले पल

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समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 5 जुलाई: गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी की पुण्यतिथि (25 अक्टूबर) के अवसर पर, जावेद अख़्तर ने उनके साथ अपने गहरे रिश्ते और एक मार्मिक घटना को याद किया। यह कहानी साहिर की संवेदनशीलता, जावेद अख़्तर के संघर्ष के दिनों और 200 रुपये के उस वाकये की है, जो उनकी दोस्ती का प्रतीक बन गया।

मुश्किल वक्त में साहिर का सहारा

जावेद अख़्तर बताते हैं कि जब उनके दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे और आर्थिक तंगी चरम पर थी, तब उन्होंने साहिर लुधियानवी से मदद मांगने का फैसला किया। साहिर ने जावेद की उदासी भांप ली और उनसे हाल पूछा। जब जावेद ने अपनी परेशानी बताई और काम दिलाने का आग्रह किया, तो साहिर ने अपनी आदत के अनुसार अपनी पैंट की पिछली जेब से कंघी निकालकर बालों पर फिराई, जो उनकी उलझन का संकेत था। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, “ज़रूर नौजवान, फ़कीर देखेगा क्या कर सकता है।”

200 रुपये की वो संवेदनशीलता

साहिर ने जावेद अख़्तर को पास रखी मेज़ पर 200 रुपये दिखाते हुए कहा, “हमने भी बुरे दिन देखे हैं नौजवान, फिलहाल ये ले लो, देखते हैं क्या हो सकता है।” जावेद अख़्तर बताते हैं कि साहिर ने नज़रें चुराते हुए पैसे दिए ताकि उन्हें बुरा न लगे। यह साहिर की असाधारण संवेदनशीलता का प्रमाण था कि वह पैसे देते समय भी दूसरे व्यक्ति की गरिमा का पूरा ख्याल रखते थे।

“आपके वो 200 रुपये मेरे पास हैं…”

त्रिशूल, दीवार और काला पत्थर जैसी फिल्मों में सलीम-जावेद की कहानी और साहिर के गाने होने से उनकी मुलाकातें बढ़ गईं। इस दौरान जावेद अख़्तर अक्सर शरारत में साहिर से कहते, “साहिर साब! आपके वो दो सौ रुपये मेरे पास हैं, दे भी सकता हूं लेकिन दूंगा नहीं।” साहिर मुस्कुराते और दूसरों के पूछने पर कहते, “इन्हीं से पूछिए।” यह सिलसिला उनकी गहरी दोस्ती और सम्मान का प्रतीक बन गया।

25 अक्टूबर 1980: एक दुखद विदाई

25 अक्टूबर 1980 की देर शाम, जावेद अख़्तर को साहिर के निधन की ख़बर मिली। हार्ट अटैक से उर्दू शायरी का यह करिश्माई सितारा हमेशा के लिए खामोश हो गया था। जावेद अख़्तर तुरंत उनके घर पहुंचे और सफेद चादर में लिपटे साहिर को देखकर भावुक हो गए। उन्होंने उनके ठंडे पड़ चुके हाथों को छूकर उन खूबसूरत गीतों को याद किया, जो उन्होंने इन्हीं हाथों से लिखे थे।

आख़िरी विदाई और वो अनकहा क़र्ज़

साहिर लुधियानवी को जुहू कब्रिस्तान में दफ़नाया गया, जहां मोहम्मद रफ़ी और मजरूह सुल्तानपुरी जैसे दिग्गज भी आराम कर रहे हैं। अंतिम संस्कार के बाद, जब सभी लोग लौट गए, तो जावेद अख़्तर काफ़ी देर तक कब्र के पास बैठे रहे। कब्रिस्तान से निकलते समय उन्हें साहिर के दोस्त अशफ़ाक़ साहब ने आवाज़ दी। अशफ़ाक़ हड़बड़ाए हुए आए थे और उन्होंने जावेद से कब्र बनाने वाले को देने के लिए पैसे मांगे। जब जावेद ने पूछा कितने, तो अशफ़ाक़ का जवाब था, “दो सौ रुपये”। यह सुनकर जावेद अख़्तर निस्तब्ध रह गए। 200 रुपये का वह अनकहा क़र्ज़, जो जावेद अक्सर साहिर से मज़ाक में कहते थे, उनकी आख़िरी विदाई पर इस तरह सामने आएगा, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। यह घटना साहिर और जावेद के रिश्ते की गहराई और नियति के अनोखे खेल को दर्शाती है।

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