सामूहिकता से व्यक्तिवाद तक: भारत की जनरेशन-Z का विरोधाभास

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पूनम शर्मा
भारत में जनरेशन-Z यानी वे युवा जो 1997 से 2012 के बीच जन्मे हैं, आज एक ऐसे सांस्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं, जहां पारंपरिक परिवार-केंद्रित मूल्यों और आधुनिक, डिजिटल रूप से संचालित, व्यक्तिवादी जीवनशैली के बीच संतुलन साधना एक चुनौती बन गया है। यह पीढ़ी स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के साथ बड़ी हुई है, लेकिन उनके भीतर कहीं न कहीं पारंपरिक भारतीय मूल्यों की छाया भी मौजूद है। यही द्वंद्व इस लेख का विषय है – एक विरोधाभास जिसे हम “जनरेशन-Z का पारिवारिक बनाम व्यक्तिगत संघर्ष” कह सकते हैं।

डिजिटल युग की संतानें
जनरेशन-Z की पहचान उसके अत्यधिक तकनीकी-आधारित जीवनशैली से होती है। ये युवा सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल देखते हैं और दिनभर इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, यूट्यूब या लिंक्डइन जैसे प्लेटफॉर्म्स से जुड़े रहते हैं। उनके लिए ‘कनेक्टेड’ रहने का अर्थ डिजिटल होना है – भले ही वे अपने ही माता-पिता या दादा-दादी से दिनभर में एक बार भी आमने-सामने बात न करें।

यह टेक्नोलॉजिकल निर्भरता उन्हें अधिक स्वतंत्र, आत्मकेंद्रित और अपने फैसले खुद लेने वाला बनाती है। रिश्तों में स्पेस की मांग बढ़ी है। अब माता-पिता की बात मानना ‘आज्ञाकारी’ नहीं, बल्कि ‘पिछड़ेपन’ की निशानी समझी जाती है।

परिवार से दूरी: स्वाभाविक या रणनीतिक?
भारत एक ऐसा देश है जहां “परिवार” केवल खून के रिश्तों का नाम नहीं, बल्कि एक सामाजिक व्यवस्था है। लेकिन अब शहरी क्षेत्रों में Gen-Z तेजी से इस पारंपरिक ढांचे से दूर होती जा रही है। करियर, शिक्षा और आत्मनिर्भरता की खोज में युवा अपने घरों से दूर, महानगरों में अकेले रहने को प्राथमिकता दे रहे हैं।

पहचान और स्वायत्तता की खोज
Gen-Z के सामने सबसे बड़ा प्रश्न है: “मैं कौन हूँ ?”
वे अपनी एक अनूठी पहचान गढ़ना चाहते हैं – जो न तो पूरी तरह पारंपरिक हो और न ही पूरी तरह पश्चिमी। यही कारण है कि यह पीढ़ी लीक से हटकर करियर चुन रही है – यूट्यूबर, गेमर, स्टार्टअप संस्थापक, डिजाइनर, डिजिटल मार्केटर, और न जाने क्या-क्या।

इस आत्म-खोज के दौरान वे कई बार पारिवारिक अपेक्षाओं और सामाजिक मान्यताओं से टकरा जाते हैं। शादी, नौकरी, धर्म, रीति-रिवाज – इन सब विषयों पर Gen-Z के विचार पहले की पीढ़ियों से बिल्कुल अलग हैं।

सोशल मीडिया: आत्म-अभिव्यक्ति या आभासी भ्रम?
Gen-Z के लिए सोशल मीडिया न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि एक ऐसा मंच है जहां वे अपनी पहचान, विचार और भावनाओं को खुलेआम रख सकते हैं। इंस्टाग्राम रील्स, ट्विटर थ्रेड्स और यूट्यूब व्लॉग्स – ये सब उनके लिए आत्म-अभिव्यक्ति के औज़ार बन चुके हैं।

पर क्या ये अभिव्यक्ति असली है या केवल एक आभासी मुखौटा? सोशल मीडिया पर लाइक्स और फॉलोअर्स के पीछे भागते-भागते Gen-Z कई बार आभासी पहचान को वास्तविक जीवन से ज़्यादा अहमियत देने लगती है। इससे वास्तविक संबंध कमजोर पड़ते हैं, और व्यक्ति अकेलापन महसूस करने लगता है – भले ही वह हजारों लोगों से ‘कनेक्टेड’ क्यों न हो।

परंपरा बनाम नवाचार: संतुलन की तलाश
यह कहना गलत होगा कि Gen-Z ने पूरी तरह से भारतीय पारंपरिक मूल्यों को त्याग दिया है। वास्तव में, वे इन मूल्यों को नए सांचे में ढालने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए – योग, आयुर्वेद, भारतीय संगीत, देसी स्टार्टअप्स और पर्यावरण-संवेदनशील जीवनशैली की ओर इस पीढ़ी की रुचि बढ़ी है।

इसका मतलब है कि वे परंपरा से भाग नहीं रहे, बल्कि उसे अपनी शर्तों पर फिर से परिभाषित कर रहे हैं। वे परिवार चाहते हैं – लेकिन ऐसा जो उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करे। वे विवाह चाहते हैं – लेकिन साथी की समानता के साथ। वे धर्म चाहते हैं – लेकिन अंधविश्वास के बिना।

मानसिक स्वास्थ्य और आत्मचिंतन
इस विरोधाभासी जीवनशैली के कारण Gen-Z में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ी हैं। अकेलापन, एंग्जायटी, अवसाद – ये सब समस्याएं अब सामान्य होती जा रही हैं। पारिवारिक सहयोग की जगह अब मानसिक स्वास्थ्य ऐप्स और थेरेपी प्लेटफॉर्म्स ने ले ली है।

भारत में पहले इन मुद्दों पर बात करना वर्जित था, लेकिन Gen-Z ने इन वर्जनाओं को तोड़ते हुए ‘मेंटल हेल्थ’ को मुख्यधारा में ला खड़ा किया है। यह एक साहसिक कदम है, जो इस पीढ़ी के आत्म-साक्षात्कार और सुधार की दिशा में प्रयास को दर्शाता है।

यह विरोधाभास नहीं, संक्रमण है
भारत की Gen-Z जिस बदलाव से गुजर रही है, वह केवल विरोधाभास नहीं, बल्कि एक सामाजिक-आध्यात्मिक संक्रमण है। वे सामूहिकता से व्यक्तिवाद की ओर जा रहे हैं, लेकिन यह व्यक्तिवाद आत्मकेंद्रित नहीं, बल्कि आत्म-जागरूक है।

यह पीढ़ी पारंपरिक जड़ों से पूरी तरह अलग नहीं हो रही, बल्कि उन्हें नए रंग दे रही है। जहां एक ओर वे वैश्विक नागरिक बनने की ओर अग्रसर हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीयता को भी आधुनिक स्वरूप में आत्मसात कर रही हैं।

यही है भारत की जनरेशन-Z – विरोधाभासी, परिपक्व और परिवर्तनकारी।

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