दलाई लामा कैसे चुने जाते हैं? एक रहस्यमय यात्रा धर्म, पुनर्जन्म और करुणा की

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पूनम शर्मा
दलाई लामा—एक नाम जो दुनिया भर में करुणा, शांति और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दलाई लामा कैसे चुने जाते हैं? या यह कि कोई साधारण व्यक्ति कैसे एक दिव्य पुनर्जन्म माना जाता है? यह प्रक्रिया केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रहस्यों से भी भरपूर है।
दलाई लामा: चुना नहीं, “खोजा” जाता है
दलाई लामा को किसी चुनाव या वोटिंग प्रक्रिया से नहीं चुना जाता, बल्कि उन्हें खोजा जाता है। यह खोज तिब्बती बौद्ध धर्म की एक विशिष्ट परंपरा पर आधारित होती है, जो पुनर्जन्म (Reincarnation) और आत्मिक चेतना के सिद्धांतों में गहराई से विश्वास करती है। तिब्बती बौद्ध धर्म बौद्धमत की वज्रयान शाखा से जुड़ा हुआ है, जिसमें ध्यान, योग, मंत्र और तांत्रिक अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
तिब्बती पुनर्जन्म की अवधारणा
तिब्बती बौद्ध मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति तुरंत पुनर्जन्म नहीं लेता। इसके बीच में एक अवस्था होती है जिसे बार्डो कहा जाता है। यह तीन चरणों में होती है:

 चिकाई बार्डो: मृत्यु के तुरंत बाद आत्मा को “वास्तविकता की स्पष्ट रोशनी” का अनुभव होता है।
चोनीड बार्डो: आत्मा विभिन्न बुद्ध रूपों को देखती है।
सिद्पा बार्डो: आत्मा पुनर्जन्म के लिए यात्रा करती है, जो उसके कर्म के अनुसार निर्धारित होता है।
लेकिन वे आत्माएँ जिन्होंने पूर्ण करुणा और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उन्हें अपने पुनर्जन्म का स्थान और समय चुनने का अधिकार होता है। इन्हें तुलकु कहा जाता है। दलाई लामा उन्हीं तुलकुओं में से सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित हैं।

13 वें दलाई लामा

दलाई लामा की खोज कैसे होती है?
जब किसी दलाई लामा का निधन होता है, तो तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं और उच्च लामाओं की एक समिति पुनर्जन्म के संकेतों की खोज शुरू करती है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
दिशा का संकेत: यदि दलाई लामा का अंतिम संस्कार किया गया हो, तो जिस दिशा में  धुएँ  का रुख होता है, उसे ध्यान में रखा जाता है।
पवित्र झील की दृष्टि: लामाओं को विशेष झील (लामो लात्सो) के किनारे ध्यान में बैठाकर संकेत मिलते हैं—जैसे कोई स्थान, घर, या चेहरा दिखाई देना।
दिव्य भविष्यवाणी: नेचुंग ऑरेकल (सरकारी भविष्यवक्ता) की मदद ली जाती है, जो भविष्यवाणी करता है कि अगला पुनर्जन्म कहां हुआ होगा।
परीक्षण प्रक्रिया
एक बार जब संभावित बालक की पहचान हो जाती है, तो उसके सामने कुछ  वस्तुएँ  रखी जाती हैं—कुछ ऐसी जो पूर्व दलाई लामा की होती थीं और कुछ नहीं। यदि बालक सही वस्तुएं चुनता है, तो इसे एक महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है। इसके बाद पूर्व दलाई लामा के सेवक, जिन्होंने उन्हें करीब से जाना था, उस बालक की पुष्टि करते हैं।
अगर दो या अधिक बालकों में समान लक्षण पाए जाते हैं और फैसला कठिन हो, तो उनका नाम एक पवित्र पात्र में डालकर उसे देवगणों के सामने रखकर लॉटरी विधि से अंतिम चयन किया जाता है।
प्रशिक्षण और स्थापना
नए दलाई लामा की पहचान के बाद उन्हें ल्हासा के डेपुंग मठ ले जाया जाता है,      जहाँ  वे धार्मिक शिक्षा और बौद्ध दर्शन का गहन अध्ययन करते हैं। केवल एक—चौथे दलाई लामा—का जन्म मंगोलिया में हुआ था, बाकी सभी तिब्बत में ही जन्मे।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य: चीन और तिब्बत
1959 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद से वर्तमान (14वें) दलाई लामा भारत में निर्वासन में रह रहे हैं। उन्होंने साफ कहा है कि वे कभी भी ऐसे देश में पुनर्जन्म नहीं लेंगे, जो स्वतंत्र नहीं हो। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि चीन यदि किसी राजनीतिक लाभ के लिए अपना “सरकारी दलाई लामा” चुनता है, तो उसे कोई मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।
भविष्य का संकेत
दलाई लामा ने यह भी कहा है कि वह अपने जीवन के अंत के करीब बौद्ध विद्वानों के साथ बैठक करेंगे और तय करेंगे कि क्या अगला दलाई लामा होना चाहिए या नहीं। 1991 में उन्होंने संकेत दिया था कि उनका पुनर्जन्म किसी जानवर या कीट के रूप में भी हो सकता है, अगर वह अधिक प्राणियों की भलाई कर सके।
रोचक तथ्य
“दलाई लामा” का अर्थ है—Ocean of Wisdom (करुणा और ज्ञान का महासागर)। “दलाई” शब्द मंगोलियाई है और “लामा” तिब्बती।
तीसरे दलाई लामा को यह उपाधि अल्तान खान ने दी थी, ताकि उन्हें मंगोलिया में धर्मगुरु के रूप में स्थापित किया जा सके।
पहले दलाई लामा को उनके जीवनकाल में यह उपाधि नहीं दी गई थी; उन्हें मरणोपरांत यह मान्यता दी गई।
चौथे दलाई लामा एकमात्र ऐसे थे जिनका जन्म तिब्बत के बाहर मंगोलिया में हुआ था।
निष्कर्ष
दलाई लामा की खोज कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह गहन आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ी होती है। यह न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म का केंद्रबिंदु है, बल्कि पूरी मानवता को करुणा, त्याग और आध्यात्मिकता का संदेश देता है। आज जब चीन इस प्रक्रिया को राजनीतिक रूप देने की कोशिश कर रहा है, तो दुनिया को यह समझना होगा कि दलाई लामा की आत्मा कोई राजनीतिक मोहरा नहीं, बल्कि शांति का प्रतीक है।

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