दलाई लामा पर उत्तराधिकार : चीन की दमनकारी सोच भारत का करारा जवाब

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पूनम शर्मा
तिब्बत और दलाई लामा को लेकर चीन की दमनकारी मानसिकता एक बार फिर खुलकर सामने आई है। इस बार विवाद भारत के केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू के एक बयान से शुरू हुआ है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन पूरी तरह से धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, न कि किसी राजनीतिक निर्णय का हिस्सा। चीन इस बयान पर बौखला गया और भारत को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि उसे तिब्बत जैसे “आंतरिक मामलों” में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।

हाल ही में धर्मशाला में आयोजित एक बौद्ध सम्मेलन के दौरान दलाई लामा ने कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, इसका निर्णय केवल धार्मिक परंपराओं, संकेतों और आध्यात्मिक प्रक्रियाओं से होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस पुनर्जन्म की प्रक्रिया को केवल उनके गले में स्थित फोर्ट्रंग ट्रस्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। यह एक धार्मिक परंपरा है, जिसमें किसी राजनीतिक शक्ति या सरकार को दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।

चीन का ढोंग और आक्रामकता
इस बयान के बाद चीन ने न केवल दलाई लामा को अलगाववादी बताया, बल्कि भारत को भी चेतावनी दी कि वह तिब्बत और उसके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप से बचे। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत को कड़ी भाषा में फटकारते हुए कहा कि भारत को यह समझना चाहिए कि दलाई लामा चीन विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं और तिब्बत, चीन का आंतरिक मामला है।

लेकिन यह पहली बार नहीं है जब चीन ने दलाई लामा के मुद्दे पर अपनी विस्तारवादी और अधिनायकवादी सोच का परिचय दिया हो। बीते दशकों में चीन ने तिब्बत पर न केवल कब्जा किया, बल्कि वहाँ की संस्कृति, धर्म और परंपराओं को कुचलने की हर संभव कोशिश की है। हजारों बौद्ध मठ नष्ट कर दिए गए, लामा समुदाय के लोगों को जेलों में डाला गया और दलाई लामा की शिक्षाओं पर प्रतिबंध लगाया गया।

अब चीन की योजना यह है कि दलाई लामा के निधन के बाद वह एक “सरकारी” दलाई लामा नियुक्त करे, जो चीन समर्थक हो और तिब्बत में उसके कब्जे को वैध ठहरा सके। यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन है, बल्कि तिब्बती लोगों की आत्मा और संस्कृति पर हमला भी है।

भारत का सख्त रुख
केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने चीन की इस दमनकारी योजना का सटीक और बेबाक विरोध करते हुए कहा कि “मैं स्वयं दलाई लामा का अनुयायी हूँ  और जानता हूँ  कि उनके उत्तराधिकारी का निर्णय केवल उनके धार्मिक समुदाय द्वारा ही लिया जाएगा। यह पूरी तरह से एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, न कि राजनीतिक।”

रिजिजू का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे अरुणाचल प्रदेश से आते हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसे चीन लगातार “दक्षिण तिब्बत” कहकर अपना हिस्सा बताता रहा है। चीन ने पहले भी रिजिजू और अन्य पूर्वोत्तर के नेताओं को अपने दौरे पर आपत्ति जताई थी। ऐसे में उनका यह बयान न केवल दलाई लामा के प्रति आस्था का प्रतीक है, बल्कि चीन की विस्तारवादी नीति को चुनौती देने वाला भी है।

भारत का आधिकारिक जवाब
विदेश मंत्रालय ने भी इस मसले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भारत धार्मिक स्वतंत्रता, आस्था और परंपराओं का सम्मान करता है और किसी भी धार्मिक अनुयायी को अपनी मान्यताओं के अनुरूप जीने का पूरा अधिकार देता है। भारत ने यह भी साफ किया कि वह तिब्बतियों को सम्मान और शरण देने की नीति पर कायम रहेगा और यह मानवता तथा अंतरराष्ट्रीय मानवीय सिद्धांतों के अनुरूप है।

तिब्बतियों के लिए भारत: एक आश्रय
भारत ने 1959 में दलाई लामा को शरण देकर तिब्बतियों के लिए उम्मीद की किरण जगाई थी। आज भी लाखों तिब्बती भारत में बसकर शांतिपूर्वक अपना जीवन जी रहे हैं, और उनकी धार्मिक, सांस्कृतिक परंपराएँ  भारत में सुरक्षित हैं। धर्मशाला तिब्बती निर्वासित सरकार का मुख्यालय बना हुआ है और यहीं से दलाई लामा अपनी शिक्षाओं का प्रचार करते हैं।

चीन की साजिश: ‘सरकारी दलाई लामा’
चीन द्वारा भविष्य में अपने अनुसार एक दलाई लामा को थोपने की योजना न केवल तिब्बती संस्कृति के लिए विनाशकारी होगी, बल्कि यह पूरी बौद्ध परंपरा के खिलाफ भी एक अपराध होगा। पहले ही 1995 में चीन ने जबरन पंचेन लामा का चयन कर लिया था और असली पंचेन लामा, जो दलाई लामा द्वारा चयनित थे, उन्हें गायब कर दिया गया। यह उदाहरण साफ दर्शाता है कि चीन किस हद तक धार्मिक संस्थानों का राजनीतिकरण करने में सक्षम है।

दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चीन की दखलअंदाजी, उसकी तानाशाही मानसिकता और तिब्बत पर कब्जा मजबूत करने की साजिश का हिस्सा है। भारत ने इस बार स्पष्ट कर दिया है कि वह न तो चीन के दबाव में आने वाला है और न ही धार्मिक परंपराओं के साथ कोई समझौता करेगा। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू का सशक्त बयान और भारत का आधिकारिक रुख यह साबित करता है कि भारत न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का संरक्षक है, बल्कि पड़ोसी देशों की संप्रभुता और उनकी संस्कृति के प्रति भी सम्मानजनक दृष्टिकोण रखता है।

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