बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण विवादों में! सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या है मामला?
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के 'विशेष सघन पुनरीक्षण' अभियान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में प्रक्रिया की निष्पक्षता और संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए हैं, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
समग्र समाचार सेवा
पटना, 5 जुलाई: बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के ‘विशेष सघन पुनरीक्षण’ अभियान पर विवाद गहरा गया है। इस पूरी प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिससे राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया है। याचिकाकर्ताओं ने इस अभियान की संवैधानिक वैधता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिसके बाद देश की सर्वोच्च अदालत इस मामले पर सुनवाई करने को तैयार हो गई है।
क्या है ‘विशेष सघन पुनरीक्षण’ अभियान?
यह अभियान भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर राज्य में चल रहा है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट और त्रुटिहीन बनाना है। इस प्रक्रिया के तहत, नए मतदाताओं का पंजीकरण, मौजूदा मतदाताओं के विवरण में सुधार, और डुप्लीकेट या अयोग्य नामों को हटाने का कार्य किया जाता है। आमतौर पर, यह एक सामान्य प्रक्रिया होती है, लेकिन इस बार इसकी ‘सघन’ प्रकृति और इसके समय को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में क्यों दी गई चुनौती?
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि यह विशेष पुनरीक्षण अभियान कुछ खास उद्देश्यों से प्रेरित हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप मतदाता सूची में धांधली की आशंका है। उनका तर्क है कि इस प्रकार का सघन अभियान एक खास समय पर चलाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की जा सकती है, जिससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। याचिका में प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और नियमों के कथित उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया है।
विपक्षी दलों के भी कान खड़े
इस मामले के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद बिहार के राजनीतिक दलों में भी हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दल जहां इस चुनौती को राज्य सरकार और चुनाव आयोग पर दबाव बनाने के अवसर के रूप में देख रहे हैं, वहीं सत्ताधारी गठबंधन इस प्रक्रिया को वैध और आवश्यक बता रहा है। दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है, क्योंकि मतदाता सूची में होने वाला कोई भी बदलाव सीधे तौर पर चुनावों के परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
क्या होगा अगला कदम?
सुप्रीम कोर्ट अब इस याचिका पर सुनवाई करेगा और निर्वाचन आयोग तथा संबंधित पक्षों से जवाब तलब कर सकता है। अदालत का फैसला इस पुनरीक्षण अभियान की दिशा तय करेगा और आगामी चुनावों पर भी इसका सीधा असर पड़ सकता है। यह मामला बिहार में चुनावी तैयारियों के बीच एक नया कानूनी और राजनीतिक पेंच बन गया है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।