योगी की चेतावनी: बढ़ती आबादी, घटती पहचान

"कश्मीर जैसी डेमोग्राफी पूरे भारत में? योगी ने दिखाई भविष्य की डरावनी तस्वीर"

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पूनम शर्मा
भारतीय राजनीति में ऐसे क्षण बहुत कम आते हैं जब कोई नेता तथ्यों को छिपाने की बजाय सीधे-सीधे उन मुद्दों को उठाता है जिन पर बाकी नेता चुप्पी साधे रहते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हालिया बयान ठीक ऐसा ही है – स्पष्ट, निर्भीक और भविष्य की दिशा में चेतावनी देने वाला।

जब भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक अलग-अलग राजनीतिक दबावों और अस्थिरताओं का सामना करना पड़ रहा है, तब योगी आदित्यनाथ ने वह बात कह दी जिसे राष्ट्रवादी लोग वर्षों से सोशल मीडिया और मंचों पर कहते रहे हैं – परंतु पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अब तक उस स्पष्टता के साथ नहीं आई थी।

“अगर जनसंख्या का संतुलन नहीं रहा, तो भारत का ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ बचेगा नहीं”
योगी आदित्यनाथ ने कावड़ यात्रा के संदर्भ में एक बेहद मौलिक और चिंतनशील बयान दिया। उन्होंने कहा कि अगर भारत में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ता रहा, तो न सिर्फ धार्मिक स्वरूप बल्कि देश की सांस्कृतिक पहचान भी संकट में आ जाएगी। उनका इशारा स्पष्ट था – यह सिर्फ एक धार्मिक मुद्दा नहीं है, यह भारत की मूल आत्मा और पहचान से जुड़ा अस्तित्व का प्रश्न है।

आज जहां कट्टरपंथियों द्वारा यात्रा, मंदिर और परंपराओं पर लगातार हमले हो रहे हैं, वहीं योगी ने याद दिलाया कि घंटी और शंख, जो हिंदू परंपरा का प्रतीक हैं, उन्हें कुछ लोग “शैतानी” चीज़ बताकर रोकना चाहते हैं। उन्होंने यह भी उदाहरण दिया कि कैसे कश्मीर में एक समय मंदिरों का सर्वे कराने पर ‘दांत दर्द’ की तर्ज पर बहाने बनाए गए थे।

कश्मीर जैसी डेमोग्राफी पूरे भारत में?
योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी चिंता यही थी – अगर भारत के अलग-अलग हिस्सों में जनसंख्या अनुपात वही हो गया जो कश्मीर में 1990 के दशक में हुआ था, तो वहां के जैसे ही हालात भारत के अन्य राज्यों में भी हो सकते हैं। न पूजा-पाठ का अधिकार रहेगा, न मंदिर सुरक्षित होंगे।

उन्होंने चेतावनी दी कि जब जनसंख्या का असंतुलन राजनीतिक समीकरणों को भी बदल देगा, तब कोई लोकतंत्र, सेकुलरिज़्म, या ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ नहीं बचेगा। योगी के अनुसार, भारत का विचार उसी समय जीवित रह सकता है जब भारत में बहुसंख्यक परंपराएं सुरक्षित रहें और उन्हें हाशिए पर न धकेला जाए।

दिल्ली सरकार की कार्रवाई पर तारीफ भी
योगी आदित्यनाथ की यह भी विशेषता रही है कि जब उन्हें सही कार्य होता दिखता है, तो वे उसकी खुले रूप से प्रशंसा भी करते हैं, चाहे वह बीजेपी की सरकार हो या विपक्ष की। दिल्ली सरकार द्वारा अवैध निर्माण और घुसपैठियों के खिलाफ की गई कार्रवाई की उन्होंने सराहना की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित में उठाए गए कदमों की प्रशंसा होनी चाहिए, आलोचना नहीं।

राष्ट्रवादियों को चेतावनी
योगी आदित्यनाथ ने अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी और संघ से जुड़े राष्ट्रवादियों को भी आगाह किया कि सिर्फ सत्ता में बने रहना ही पर्याप्त नहीं है। अगर डेमोग्राफिक बदलावों को रोका नहीं गया, तो भविष्य में न सत्ता बचेगी और न ही राष्ट्रवाद का कोई प्रभाव।

उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि किस प्रकार कांग्रेस और अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों में जनसंख्या परिवर्तन का एक सुनियोजित प्रयास हो रहा है। कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों में घुसपैठ और जनसंख्या विस्थापन की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है, और यदि भाजपा इसे समय रहते नहीं संभालती तो स्थिति हाथ से निकल जाएगी।

क्यों विशेष हैं योगी आदित्यनाथ?
योगी आदित्यनाथ न केवल हिन्दू धर्म के गहरे जानकार हैं, बल्कि उन्होंने संत परंपरा से राजनीतिक नेतृत्व तक का सफर एक संतुलन के साथ तय किया है। उन्होंने हर मुद्दे पर संविधान की मर्यादा में रहते हुए बात की है और उनके बयान आज भी भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाते।

यही कारण है कि योगी जी को भाजपा के अन्य नेताओं से अलग माना जाता है – न केवल उनके कार्यों की स्पष्टता बल्कि उनकी नीयत की पारदर्शिता के कारण।

निष्कर्ष
योगी आदित्यनाथ का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं है, यह भारत की भावी पीढ़ी के लिए चेतावनी है। अगर देश ने जनसंख्या और पहचान से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज किया, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक स्वरूप ही बदल जाएगा।

उनका कथन – “बढ़ेंगे तो कटेंगे” – नफरत नहीं, बल्कि एक सामाजिक यथार्थ का सूचक है, जिसे नज़रअंदाज़ करना स्वयं भारत के भविष्य के साथ अन्याय होगा।

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