‘ये आँखें’
हृदय का दर्पण हैं ये आँखें
पलकों के पर्दे से ढकी
समुद्र की गहराई लिए ये आँखें
खुशी से छलक जाती हैं ये आँखें
दुःख में बह जाती हैं ये आँखें
जब कुछ न भी बोलो तब भी
बहुत कुछ कह जाती हैं ये आँखें ।
कभी चुलबुलाहट थी इनमें
अब गहराने लगी है।
मन की अंतर्दृष्टि दिखाने
लगी हैं ये आँखें ।
वह इनका मटकना,
और कभी गुस्से से तमतमाना
जो जीभ न कह पाए
वह भी अभिव्यक्त कर
जाती हैं ये आँखें ।

वरिष्ठ पत्रकार और समाचार विश्लेषक I शोध विद्वान और हिस्पेनिस्ट I बार्सीलोना, स्पेन से भारतीय, यूरोपीय मामलों और भू राजनीति पर लेखन कार्य करते हैं
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