कांग्रेस, CIA और विदेशी पैसा : भारत में हो रही है लोकतंत्र के नाम पर साज़िश?

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पूनम शर्मा
भारतीय राजनीति के गलियारों में इन दिनों एक तूफान उठा हुआ है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक के बाद एक ऐसे सनसनीखेज दावे किए हैं, जो देश की लोकतांत्रिक नींव को हिला सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी न केवल भ्रष्टाचार में लिप्त रही है, बल्कि विदेशी एजेंसियों, खासकर CIA और रूसी नेटवर्क की कठपुतली बनकर भारत की नीतियों और लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रभावित करती रही है।

इन दावों के पीछे निशिकांत दुबे ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के “डी-क्लासिफाइड दस्तावेजों” को आधार बनाया है। उनका दावा है कि इन दस्तावेजों में ऐसे प्रमाण हैं जो कांग्रेस और विदेशी एजेंसियों के गठजोड़ की पोल खोलते हैं।

पत्रकारों पर भी गंभीर आरोप
निशिकांत दुबे के अनुसार, इन दस्तावेजों से यह भी स्पष्ट होता है कि कई भारतीय पत्रकार भी इस अंतरराष्ट्रीय साज़िश में शामिल थे। इन पत्रकारों को अमेरिका, रूस और चीन से पैसा देकर नक्सलियों के पक्ष में खबरें लिखवाई जाती थीं, और यह पूरी योजना तथाकथित “सत्याग्रह” जैसे आंदोलनों को हवा देने के लिए थी।

उन्होंने दावा किया कि “न्यूज़ क्लिक” जैसे मीडिया प्लेटफॉर्म, विदेशी फंडिंग के जरिए भारत में चीन और अमेरिका की वैचारिक घुसपैठ को अंजाम दे रहे थे। यह भी आरोप लगाया गया है कि इन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए पत्रकारों को मोटी रकम दी जाती थी, जिसे बाद में वामपंथी संगठनों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बाँटा जाता था।

कांग्रेस और विदेशी फंडिंग: एक ऐतिहासिक गठजोड़?
दुबे के अनुसार, 1970 के दशक में कांग्रेस सरकार के दौरान, भारत में 1,60,000 से अधिक समाचार लेखों को CIA के ज़रिए प्रभावित किया गया। इसके लिए बाकायदा अमेरिकी विदेश मंत्रालय, राजनयिक दफ्तरों और पत्रकारों को धन दिया गया। इतना ही नहीं, कांग्रेस के कई बड़े नेता सीधे-सीधे विदेशी खुफिया एजेंसियों से संपर्क में थे।

दावे के अनुसार, 100 से अधिक चैनलों से कांग्रेस को फंडिंग मिली, और यह पैसा कूटनीतिक पदों, कर्मचारियों और पत्रकारों के ज़रिए कांग्रेस तक पहुंचाया गया।

क्या यह ‘नव औपनिवेशिक’ साज़िश है?
अगर ये आरोप सही हैं, तो सवाल सिर्फ कांग्रेस पार्टी तक सीमित नहीं रहता। यह भारतीय लोकतंत्र, मीडिया की स्वतंत्रता और हमारी नीतिगत स्वायत्तता पर सीधा हमला है। यह मानना कठिन नहीं कि यह सब सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि भारत को वैचारिक रूप से गुलाम बनाने की विदेशी कोशिशों का हिस्सा हो सकता है।

निशिकांत दुबे ने यह भी कहा कि अब वक्त आ गया है कि सरकार सभी पुराने दस्तावेजों को डी-क्लासिफाई करे, ताकि सच्चाई जनता के सामने आए। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक पार्टी की बात नहीं है, बल्कि एक सिस्टम की बात है, जिसमें नेताओं के बेटे, दामाद और चहेते सालों से मलाई खा रहे हैं।

राहुल गांधी और विदेशी दौरे
बीजेपी ने लगातार राहुल गांधी के अमेरिका और यूरोप दौरों पर सवाल उठाए हैं। दुबे का दावा है कि राहुल गांधी उन ही एजेंसियों और थिंक टैंकों से जुड़े लोगों से मिलते हैं, जिन्होंने भारत विरोधी नैरेटिव को फैलाया है। उनका कहना है कि राहुल गांधी का मकसद सिर्फ राजनीतिक प्रचार नहीं, बल्कि भारत सरकार के खिलाफ वैचारिक माहौल बनाना है।

क्या ये सब झूठ है? या फिर देश को खतरे में डालने की साजिश?
इस मुद्दे पर कांग्रेस की ओर से कोई साफ प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यदि ये आरोप और दस्तावेज सही साबित होते हैं, तो यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा संकट की तरह देखा जाएगा। भारत की सरकार और न्यायपालिका को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा।

क्या मीडिया का एक बड़ा हिस्सा विदेशी पैसे और एजेंडे से चल रहा है? क्या कुछ पत्रकार केवल “दलाल” बनकर रह गए हैं? क्या विपक्षी दलों की नीतियां वास्तव में भारत विरोधी ताक़तों से प्रभावित होती रही हैं?

सरकार की जिम्मेदारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को इन खुलासों के बाद इस पूरे नेटवर्क की गहराई से जांच करानी चाहिए। साथ ही, देश को यह भरोसा दिलाना चाहिए कि जो भी इस लोकतंत्र के खिलाफ साज़िश में शामिल होगा, उसे सज़ा जरूर मिलेगी।

मीडिया, NGO, राजनीतिक दल और यहां तक कि ब्यूरोक्रेसी में जो भी इस साजिश का हिस्सा बने, उन्हें बेनकाब करना अब वक्त की मांग है।

निष्कर्ष:
निशिकांत दुबे के दावे राजनीति की सीमाओं से आगे जाकर राष्ट्रहित और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे उठाते हैं। अगर ये खुलासे सही साबित होते हैं, तो यह भारतीय लोकतंत्र को गिरवी रखने की साजिश है।

अब देखना यह है कि क्या सरकार इन दस्तावेजों की जांच कराकर जनता के सामने पूरा सच लाएगी, या फिर यह भी एक राजनीतिक तूफान बनकर कुछ दिनों में थम जाएगा?

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