कोलकाता गैंगरेप: दरिंदे मोनोजित मिश्रा का काला सच आया सामने, कॉलेज प्रशासन पर भी उठे सवाल

आरोपी मोनोजित का लड़कियों के शोषण का था लंबा इतिहास, फिर भी कॉलेज प्रशासन ने दी 'ढाल'

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समग्र समाचार सेवा
कोलकाता, 30 जून: कोलकाता के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में 24 वर्षीय छात्रा के साथ हुए गैंगरेप ने देश को हिला कर रख दिया है। इस सनसनीखेज मामले के मुख्य आरोपी मोनोजित मिश्रा को लेकर अब कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार, मोनोजित का अपराधों का इतिहास बेहद डरावना है और उस पर पहले भी कई छात्राओं को प्रताड़ित करने के आरोप लग चुके थे। इसके बावजूद, कॉलेज प्रशासन ने हमेशा चुप्पी साधकर उसे संस्थागत संरक्षण दिया, जिससे यह दरिंदा और भी बेखौफ हो गया।

काली करतूतों का पुराना इतिहास

मोनोजित मिश्रा, जो अब कॉलेज का गैर-शैक्षणिक स्टाफ है, पर पहले भी यौन उत्पीड़न और अभद्रता के कई गंभीर आरोप लग चुके हैं। छात्रों का आरोप है कि वह लड़कियों की अश्लील और मॉर्फ की गई तस्वीरें शेयर करता था, उनके अंतरंग पलों की रिकॉर्डिंग कर वायरल करता था और उन्हें उनकी शारीरिक बनावट को लेकर शर्मिंदा करता था।

शिकायतें हुईं, पर कोई कार्रवाई नहीं

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई छात्राओं ने मोनोजित के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतें शिक्षक-प्रभारी से की थीं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। चौंकाने वाली बात यह है कि आरोपों के बावजूद उसे कॉलेज में ही नौकरी दे दी गई, जिससे वह और उसके साथी मिलकर छात्राओं के लिए डर का पर्याय बन गए। यह साफ दर्शाता है कि कैसे कॉलेज प्रशासन ने एक अपराधी को बढ़ावा दिया।

टीएमसी यूनिट से निकाला गया, फिर भी मिली नौकरी

मोनोजित मिश्रा को 2021 में कॉलेज की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छात्र इकाई से भी निष्कासित कर दिया गया था। इसके बावजूद, उसे कॉलेज में गैर-शैक्षणिक स्टाफ के रूप में नियुक्त कर लिया गया। यह घटना यह सवाल खड़ा करती है कि क्या मोनोजित को राजनीतिक संबंधों के बल पर बचाया जा रहा था?

पकड़ा गया, पर सवाल अभी भी बाकी

मोनोजित मिश्रा और उसके दो साथियों, जैब अहमद और प्रमित मुखोपाध्याय को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उन्हें 1 जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेजा गया है। मगर अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर कॉलेज प्रशासन ने पहले ही शिकायतें सुनी होतीं और मोनोजित पर कार्रवाई की होती, तो क्या यह जघन्य अपराध रोका जा सकता था?

कॉलेज प्रशासन की चुप्पी: क्या यह ‘सिस्टमैटिक कवर-अप’ था?

इस पूरे मामले ने कॉलेज प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह केवल लापरवाही थी या फिर जानबूझकर किया गया एक ‘सिस्टमैटिक कवर-अप’? क्या दोषियों को राजनीतिक संबंधों के कारण बचाया गया? यह घटना पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाती है। क्या भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालय यौन हिंसा के अड्डे बनते जा रहे हैं, जहाँ छात्रों की सुरक्षा खतरे में है?

जनता की मांग: फास्ट ट्रैक कोर्ट और कड़ी कार्रवाई

सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा फूट पड़ा है। लोग मांग कर रहे हैं कि इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और मोनोजित मिश्रा को जल्द से जल्द सख्त सज़ा मिले। साथ ही, उन कॉलेज अधिकारियों पर भी कार्रवाई की मांग की जा रही है, जिन्होंने पहले की शिकायतों को दबाकर एक अपराधी को बढ़ावा दिया।

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