राजस्थान की धरती से मिला 4,500 साल पुराना सभ्यता का रहस्य

सरस्वती नदी से जुड़ा गहरा संबंध

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समग्र समाचार सेवा 
राजस्थान ,28 जूनराजस्थान के बहज गाँव  में 4500 साल पुरानी सभ्यता की खोज,  क्या यह वही सरस्वती है जिसकी चर्चा वेदों में होती है?
राजस्थान की तपती रेत के नीचे इतिहास गहराई में छिपा हुआ था, और अब वह धीरे-धीरे बाहर आ रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा डीग जिले के बहज गाँव  में की गई खुदाई में एक 4,500 साल पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। सबसे अहम बात यह है कि इस स्थान पर मिली प्राचीन नदी की धारा को ऋग्वेद में वर्णित पौराणिक सरस्वती नदी से जोड़ा जा रहा है।

सरस्वती नदी का मिथक या सच्चाई?
सरस्वती नदी का उल्लेख वेदों में “नदीतमां” यानी सबसे श्रेष्ठ नदी के रूप में होता है। ऋग्वेद के अनुसार, यह नदी ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता की जननी मानी जाती थी। इतिहासकारों और वैज्ञानिकों में लंबे समय से इस पर बहस चलती रही है कि सरस्वती कोई कल्पना थी या वास्तव में अस्तित्व में थी।

अब, डीग के बहज गाँव में 23 मीटर गहराई तक खुदाई में जो प्राचीन नदी की धारा—paleo-channel—मिली है, उसे इसी पौराणिक सरस्वती से जोड़कर देखा जा रहा है।  यह प्राचीन जलधारा उत्तर वैदिक और हरप्पा सभ्यता के लोगों के लिए जीवनरेखा रही होगी और ब्रज तथा मथुरा क्षेत्रों से इसका गहरा संबंध रहा है।

खुदाई में मिले ऐतिहासिक प्रमाण
यह खुदाई 10 जनवरी 2024 को शुरू हुई थी और अब तक 800 से अधिक पुरातात्विक वस्तुएं प्राप्त हो चुकी हैं। इन खोजों में शामिल हैं:

ब्रह्मी लिपि की प्राचीनतम मुहरें

यज्ञ कुंड और अग्निकुंडों के अवशेष

मौर्यकालीन मूर्तियाँ और देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ

महाभारतकालीन पात्र, वस्त्र वर्णन और हवनकुंड चित्र

हड्डियों से बने औजार, सुइयाँ, कंघियाँ, और साँचें

शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्तियाँ

अर्ध-कीमती रत्नों से बने आभूषण और शंख की चूड़ियाँ

ताम्र और लोहा निर्माण से जुड़े भट्ठियाँ

यह पहली बार है जब भारत में हड्डियों से बनी वस्तुएँ  इतने स्पष्ट रूप में किसी स्थल से प्राप्त हुई हैं।

पाँच  कालखंडों का मिला प्रमाण
बहज गाँव  की खुदाई ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह क्षेत्र केवल एक काल की नहीं, बल्कि पाँच अलग-अलग ऐतिहासिक कालों से जुड़ा हुआ है:

हरप्पा पश्चात काल (Post-Harappan Period)

महाभारत काल (Epic Mahabharata Era)

मौर्य काल (Mauryan Period)

कुषाण काल (Kushan Era)

गुप्त काल (Gupta Dynasty)

इसका अर्थ है कि यह क्षेत्र निरंतर मानव बसावट और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है।

वैदिक और उत्तर वैदिक धर्म का गवाह
खुदाई में मिले 15 से अधिक यज्ञ कुंड और हवन से जुड़ी सामग्री यह प्रमाणित करती है कि यह स्थल वैदिक परंपराओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। वैदिक काल में यज्ञ एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान था, और यह स्थल उस परंपरा का जीवित प्रमाण बन कर सामने आया है।

मानव कंकाल की खोज और वैज्ञानिक परीक्षण
खुदाई के दौरान एक मानव कंकाल भी मिला है, जिसे वैज्ञानिक परीक्षण के लिए इज़राइल भेजा गया है। इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि उस समय के लोगों की जीवनशैली, खानपान, और सामाजिक ढांचे के बारे में और सटीक जानकारी मिलेगी।

राजस्थान ही नहीं, भारत के इतिहास को नई दिशा
बहज गांव की खुदाई केवल एक स्थान की ऐतिहासिक यात्रा नहीं है, यह भारत के प्राचीन इतिहास को फिर से परिभाषित करने का प्रयास है। यह न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे उत्तर भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को उजागर करता है। सरस्वती नदी से जुड़ाव के कारण यह स्थल वैदिक सभ्यता की धुरी के रूप में उभर रहा है।

क्या यह स्थल राष्ट्रीय धरोहर घोषित होगा?
ASI ने संस्कृति मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और इस क्षेत्र को राष्ट्रीय पुरातात्विक संरक्षित क्षेत्र (National Archaeological Protected Area) घोषित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो यह न केवल शोध के लिए, बल्कि आम जनमानस के लिए भी ऐतिहासिक धरोहर को समझने का सुनहरा अवसर बनेगा।

बहज गांव की खुदाई और उसमें मिले प्रमाण हमें यह बताते हैं कि भारत की सभ्यता कितनी पुरानी, समृद्ध और गूढ़ है। सरस्वती नदी, जिसे अब तक केवल पौराणिक कथा माना जाता था, उसकी पुष्टि के प्रमाण अब जमीन से निकलने लगे हैं। आने वाले वर्षों में यह खोज भारत के इतिहास लेखन को एक नया आयाम दे सकती है—जहां मिथक और विज्ञान एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं।

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