पूनम शर्मा
बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, विपक्षी INDIA गठबंधन के सुर और भी तल्ख़ होते जा रहे हैं। लेकिन इस बार निशाने पर न बीजेपी है, न मुख्यमंत्री, बल्कि सीधे देश का चुनाव आयोग है। शुक्रवार को तेजस्वी यादव और उनके सहयोगियों ने प्रेस कांफ्रेंस कर विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) की प्रक्रिया को न सिर्फ लोकतंत्र का मज़ाक बताया बल्कि यह आरोप भी जड़ा कि पूरा अभियान प्रधानमंत्री मोदी के इशारे पर विपक्षी वोटरों को हटाने के लिए चलाया जा रहा है।
अब सवाल यह उठता है — क्या लोकतंत्र सिर्फ तभी खतरे में पड़ता है जब विपक्ष को हार का डर होता है?
एक साल पहले तक सब कुछ ठीक था?
तेजस्वी यादव और अन्य नेता यह पूछ रहे हैं कि जब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची बनी थी, तो अब एक साल के भीतर विशेष पुनरीक्षण क्यों? परंतु क्या उन्हें यह नहीं पता कि हर राज्य में स्थानीय चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग का यह एक नियमित और कानूनी प्रक्रिया है? क्या 2024 में तैयार हुई सूची परम पवित्र है, जिस पर कोई संशोधन नहीं हो सकता?
वास्तव में, मतदाता सूची की गहन समीक्षा का उद्देश्य पारदर्शिता और अद्यतन डेटा सुनिश्चित करना होता है। यह काम हर कुछ वर्षों में, खासकर चुनावी वर्ष में किया जाता है ताकि नए मतदाता जुड़ सकें और मृत/स्थानांतरित लोगों के नाम हटाए जा सकें।
सियासी हार का ठीकरा ECI पर क्यों?
INDIA गठबंधन, खासकर आरजेडी और वाम दल, अब यह पूर्वानुमान लगा चुके हैं कि जनता का मूड उनके पक्ष में नहीं है। ऐसे में लोकतंत्र के नाम पर पहले से ही ECI की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना एक रक्षात्मक राजनीति का हिस्सा है।
जब सत्ता में रहते हैं, तो यही नेता चुनाव आयोग की निष्पक्षता का गुणगान करते हैं, लेकिन जैसे ही पराजय की संभावना दिखती है, वही संस्था “केंद्र सरकार के इशारे पर चलने वाली” बन जाती है।
टारगेटेड कम्युनिटी की राजनीति?
सीपीआई (एमएल) जैसे दलों द्वारा यह आरोप लगाना कि सूची संशोधन एक खास विचारधारा और समुदाय को हटाने के लिए किया जा रहा है, न सिर्फ बेबुनियाद है, बल्कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश भी कही जा सकती है। विपक्ष के पास कोई ठोस आंकड़ा या उदाहरण नहीं है, लेकिन आशंका और भय फैलाकर वे अपना वोट बैंक बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं।
मुद्दों से भटकाने की रणनीति
बिहार की जनता जानती है कि रोजगार, शिक्षा, कानून-व्यवस्था, पलायन, और स्वास्थ्य जैसे असली मुद्दों पर विपक्ष की पकड़ कमजोर है। इनके पास न कोई ठोस योजना है, न कोई नया विज़न। ऐसे में चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर भावनात्मक माहौल तैयार करने की कोशिश की जा रही है।
तेजस्वी यादव के पिछले कार्यकाल को लेकर भी जनता में कई तरह की असंतोष की भावना है। भ्रष्टाचार के आरोपों और प्रशासनिक अराजकता ने विपक्ष की साख को पहले ही झटका दिया है।
सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक जाने की धमकी: नाटक या नियत?
विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि वे यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक ले जाएंगे। लेकिन इससे पहले यह पूछना जरूरी है कि क्या संवैधानिक संस्थाओं को बार-बार राजनीतिक दबाव में लाने की कोशिश करना ही असली लोकतंत्र है?
यदि चुनाव आयोग की हर प्रक्रिया को “साजिश” कहकर खारिज किया जाएगा, तो फिर जनादेश की पवित्रता कैसे बचेगी?
लोकतंत्र का असली खतरा कहाँ है?
INDIA गठबंधन अगर वाकई लोकतंत्र की रक्षा करना चाहता है, तो उसे पहले खुद आत्मचिंतन करना होगा। जनता के मुद्दों पर ठोस एजेंडा लेकर आएं, संगठन मजबूत करें, और युवाओं का भरोसा जीतें।
लोकतंत्र को चुनाव आयोग नहीं, बल्कि आरोपों की राजनीति, वोटबैंक तुष्टिकरण और जिम्मेदारी से भागती विपक्षी सोच से असली खतरा है।
वक्त आ गया है कि विपक्ष ‘लोकतंत्र खतरे में है’ जैसी घिसी-पिटी स्क्रिप्ट से बाहर निकलकर जनता के सामने वास्तविकता में लौटे — नहीं तो जनता एक बार फिर अपना फैसला देगी, बिना किसी ‘पुनरीक्षण’ के।