संघ की महत्वपूर्ण ‘प्रांत प्रचारक बैठक’ दिल्ली में: क्या होगा एजेंडा?

4-6 जुलाई को होने वाली बैठक में आरएसएस की भविष्य की रणनीति पर होगा मंथन

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 26 जून:  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक 4, 5 और 6 जुलाई को दिल्ली में आयोजित होने जा रही है। यह संघ के संगठनात्मक कैलेंडर में एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम होता है, जहाँ देश भर के प्रांत प्रचारक एकत्र होकर संघ के कार्यों, भविष्य की रणनीतियों और राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श करते हैं। यह बैठक इसलिए भी खास है क्योंकि यह लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद हो रही है, और इसमें आने वाले समय के लिए संघ की दिशा तय की जा सकती है।

बैठक का महत्व: क्यों है इतनी खास?

आरएसएस, जिसे दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में से एक माना जाता है, अपनी संगठनात्मक बैठकों के माध्यम से अपनी विचारधारा और कार्यक्रमों को देशभर में फैलाता है। प्रांत प्रचारक बैठक संघ की निर्णय लेने वाली प्रक्रियाओं में से एक है, जहाँ:

कार्य समीक्षा: पिछले वर्ष के कार्यों की समीक्षा की जाती है, और विभिन्न प्रांतों में संघ की गतिविधियों का मूल्यांकन होता है।

भविष्य की योजनाएं: आगामी वर्ष के लिए संघ की कार्ययोजनाओं पर चर्चा होती है, जिसमें समाज सेवा, शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण से संबंधित विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाता है।

राष्ट्रीय मुद्दों पर मंथन: देश के सामने मौजूद सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों पर संघ का क्या रुख होना चाहिए, इस पर गहन विचार-विमर्श होता है।

विचारधारा का प्रसार: संघ के स्वयंसेवकों और आम जनता तक संघ की विचारधारा को प्रभावी ढंग से कैसे पहुंचाया जाए, इस पर रणनीति बनाई जाती है।

यह बैठक लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हो रही है, ऐसे में चुनाव परिणामों का विश्लेषण और भविष्य की राजनीतिक एवं सामाजिक भूमिका पर भी चर्चा होने की संभावना है।

किन मुद्दों पर हो सकता है विचार-विमर्श?
इस बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है:

लोकसभा चुनाव परिणाम का विश्लेषण: संघ, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का वैचारिक संरक्षक माना जाता है। लोकसभा चुनाव के नतीजों, जिसमें बीजेपी को अपेक्षित बहुमत नहीं मिला, का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाएगा। संघ अपने स्वयंसेवकों के माध्यम से जमीनी स्तर पर प्राप्त फीडबैक साझा करेगा।

संगठनात्मक विस्तार और मजबूती: संघ लगातार अपने प्रभाव क्षेत्र और सदस्यता का विस्तार करने पर जोर देता है। बैठक में नए क्षेत्रों में संघ की गतिविधियों को बढ़ाने और मौजूदा शाखाओं को मजबूत करने की रणनीति पर चर्चा हो सकती है।

सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक अभियान: संघ सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को अपने प्रमुख उद्देश्यों में से एक मानता है। अस्पृश्यता उन्मूलन, गौ-संरक्षण, पर्यावरण चेतना और परिवार प्रबोधन जैसे विषयों पर अभियानों को तेज करने पर विचार हो सकता है।

युवाओं को जोड़ना: नई पीढ़ी को संघ से जोड़ने और उन्हें राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है।

ज्ञानवापी और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे: राष्ट्रीय महत्व के संवेदनशील मुद्दों, जैसे ज्ञानवापी विवाद, मथुरा और काशी के अन्य मंदिर मुद्दे, या समान नागरिक संहिता (UCC) पर संघ की क्या भूमिका होनी चाहिए, इस पर भी विचार-विमर्श संभव है।

दिल्ली में जुटेंगे प्रमुख पदाधिकारी

इस बैठक में संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले सहित सभी सह-सरकार्यवाह और देश भर के सभी प्रांतों के प्रांत प्रचारक और अन्य प्रमुख पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। यह बैठक संघ के शीर्ष नेतृत्व और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच संवाद और समन्वय स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण मंच है।

आगे की राह: संघ की नई दिशा

यह तीन दिवसीय बैठक संघ की भविष्य की कार्यदिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। लोकसभा चुनाव के बाद के परिदृश्य में, संघ की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यह न केवल अपने वैचारिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाएगा, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करने में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बैठक से क्या नए दिशानिर्देश और अभियान सामने आते हैं।

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