भारत में संविधान सर्वोपरि है, संसद नहीं: मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई

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समग्र समाचार सेवा
अमरावती, 26 -जून भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके अनुसार भारत में संविधान सर्वोपरि है, न कि संसद। उन्होंने यह विचार बुधवार को महाराष्ट्र के अमरावती शहर में अपने सम्मान समारोह के दौरान व्यक्त किए।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “लोगों में यह धारणा प्रचलित है कि संसद सर्वोच्च है, लेकिन मेरी राय में भारत का संविधान ही सर्वोपरि है। लोकतंत्र के तीनों स्तंभ — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — संविधान के अधीन कार्य करते हैं।”

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित ‘मूल संरचना सिद्धांत’ (Basic Structure Doctrine) का हवाला देते हुए कहा कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन वह इसकी मूल संरचना को नहीं बदल सकती।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सिर्फ सरकार के खिलाफ आदेश पारित करना किसी जज को स्वतंत्र नहीं बनाता। उन्होंने कहा, “हम केवल शक्तिशाली नहीं हैं, हम पर एक कर्तव्य भी है — नागरिकों के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना।”

मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि एक न्यायाधीश को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि लोग उसके निर्णयों के बारे में क्या सोचेंगे। “निर्णय लेते समय हमें स्वतंत्र रूप से सोचना चाहिए। जनभावनाएं हमारी निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होनी चाहिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने फैसलों और काम के ज़रिए बोलते हैं और हमेशा संविधान में निहित मौलिक अधिकारों की रक्षा में खड़े रहे हैं।

उन्होंने ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ दिए गए अपने फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि “रहने का अधिकार (Right to Shelter) सर्वोपरि है।”

इस मौके पर उन्होंने अपने बचपन की यादें भी साझा कीं। उन्होंने कहा, “मैं बचपन में आर्किटेक्ट बनना चाहता था, लेकिन मेरे पिता की इच्छा थी कि मैं वकील बनूं। वे खुद स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण वकालत नहीं कर पाए थे।”

मुख्य न्यायाधीश गवई पिछले महीने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण कर चुके हैं।

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