सागर समाचार सेवा
चेन्नई/तिरुपत्तूर 26 जून -तमिलनाडु की राजनीति में एक बार फिर धर्म, संस्कृति और विचारधारा को लेकर विवाद छिड़ गया है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भाजपा और AIADMK पर तीखा हमला करते हुए कहा कि “AIADMK ने अन्ना के नाम को गिरवी रख दिया है” और भाजपा तमिलनाडु में “धार्मिक ध्रुवीकरण” कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या DMK को सच में धर्मनिरपेक्षता की चिंता है, या वह हिंदू जनभावनाओं की बढ़ती लामबंदी से राजनीतिक रूप से असहज हो रही है?
भाजपा की सांस्कृतिक जागरूकता से डर रही DMK?
हाल ही में मदुरै में भाजपा और हिंदू मुन्नानी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “मुरुगन महासभा” में हजारों श्रद्धालुओं की भागीदारी रही। इस कार्यक्रम में AIADMK के वरिष्ठ नेताओं की भी उपस्थिति ने यह संकेत दिया कि तमिलनाडु में अब धर्म और संस्कृति को केंद्र में रखकर राजनीति की नई धारा बह रही है।
यह वही भूमि है जहाँ अब तक धर्म और परंपरा की आलोचना को “प्रगतिशीलता” माना गया, लेकिन अब हिंदू समाज अपने सांस्कृतिक अधिकारों के लिए जागरूक हो रहा है — यही बात DMK को असहज कर रही है।
स्टालिन की आलोचना: एक रणनीतिक बचाव?
मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि अन्ना और पेरियार जैसे द्रविड़ नेताओं को अपमानित करने वाले वीडियो “मुरुगन महासभा” में दिखाए गए, और AIADMK ने उस पर आपत्ति नहीं की। लेकिन इस आरोप का कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह कार्यक्रम तमिल संस्कृति के संरक्षण के लिए था, न कि किसी नेता को नीचा दिखाने के लिए।
दरअसल, DMK को शायद इस बात की चिंता है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल राज्य में तेजी से धार्मिक जागरूकता फैला रहे हैं — जो अब तक DMK की “धर्मनिरपेक्ष” राजनीति के एकाधिकार को चुनौती दे रही है।
महिलाओं के हक और विकास योजनाओं पर भ्रम
तिरुपत्तूर में एक सरकारी योजना कार्यक्रम के दौरान स्टालिन ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में “महिला अधिकार योजना” की राशि अभी तक नहीं मिली है और अगस्त या सितंबर में वितरित की जाएगी। लेकिन यह स्वीकारोक्ति इस बात का प्रमाण है कि DMK की वादों वाली राजनीति ज़मीनी हकीकत से मेल नहीं खा रही है।
जहां BJP केंद्र सरकार की योजनाओं को समयबद्ध रूप से लागू कर रही है — जैसे उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, और PM आवास योजना — वहीं DMK सरकार खुद स्वीकार रही है कि उनकी कल्याण योजनाएं समय पर लागू नहीं हो पा रही हैं।
भाजपा की “फर्जी भक्ति” नहीं, वास्तविक सांस्कृतिक पुनर्जागरण
स्टालिन ने भाजपा की भक्ति को “फर्जी” बताया और कहा कि वे “राजनीतिक नाटक” कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि भाजपा ने हाल के वर्षों में तमिल संस्कृति, भाषा और मंदिरों के पुनरुद्धार के लिए कई पहल की हैं। चाहे वो 3000 से अधिक मंदिरों में कुम्भाभिषेक हो या केंद्रीय योजनाओं के तहत तीर्थ स्थलों का विकास — भाजपा का फोकस संस्कृति और विकास, दोनों पर रहा है।
डर संस्कृति से या समर्थन से?
DMK की हालिया बयानबाजी दर्शाती है कि वह भाजपा और AIADMK के बढ़ते जनसमर्थन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान से परेशान है। भाजपा नेताओं का कहना है कि स्टालिन और उनकी पार्टी अब जनता की धार्मिक भावना को नकारने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए वे हर सांस्कृतिक प्रयास को “ध्रुवीकरण” कहकर बदनाम कर रहे हैं।
तमिल जनता अब तय कर चुकी है – जो धर्म, संस्कृति और विकास की बात करेगा, वही तमिलनाडु का नेतृत्व करेगा। और यही भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बनती जा रही है।