एयर इंडिया क्रैश’: भावनात्मक असंतुलन , शिक्षित युवाओं की तबाही का कारण
चेन्नई की एक युवा महिला इंजीनियर गिरफ्तार
पूनम शर्मा
“पढ़ाई तो हो गई, पर इंसान नहीं बने!
आज हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ युवा पीढ़ी पहले से कहीं अधिक शिक्षित, तकनीकी रूप से सक्षम और कॉर्पोरेट जगत में स्थापित है। लेकिन हालिया घटनाएँ इस बात की गवाही दे रही हैं कि सिर्फ शिक्षा ही पर्याप्त नहीं, यदि उसके साथ संस्कार, संवेदनशीलता और भावनात्मक संतुलन नहीं हो, तो वही पढ़े-लिखे युवा समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकते हैं।
हाल ही में एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद एक चौंकाने वाली खबर सामने आई — चेन्नई की एक युवा महिला इंजीनियर रेने जोशिल्दा को देशभर में बम धमकियों के पीछे गिरफ्तार किया गया। यह युवती कोई बेरोजगार या उपद्रवी नहीं थी, बल्कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में रोबोटिक्स इंजीनियर के तौर पर कार्यरत थी। उसने मई-जून 2025 के बीच 21 से अधिक धमकी भरे ईमेल देश के विभिन्न राज्यों को भेजे।
प्यार में धोखा, और समाज को दी सज़ा?
रेने के अनुसार, वह अपने सहकर्मी दिविज प्रभाकर से एकतरफा प्रेम करती थी। लेकिन जब दिविज ने किसी और से विवाह कर लिया, तो यह युवती उस ठेस को सहन नहीं कर पाई और उसने पूरे देश को अपनी पीड़ा का गवाह बनाने का फैसला कर लिया। उसने डार्क वेब, फर्जी ईमेल और VPN के माध्यम से अपनी पहचान छिपाकर बम धमकी जैसे घिनौने कृत्य किए।
यह मामला दिखाता है कि एक असफल प्रेम संबंध कैसे एक शिक्षित और प्रतिष्ठित युवती को मानसिक असंतुलन की ओर धकेल सकता है, और जब उस असंतुलन को मार्गदर्शन या उपचार नहीं मिलता, तो वह समाज के लिए विनाशकारी बन जाता है।
पढ़ाई का क्या लाभ जब भावनाएँ काबू में न हों ?
एक इंजीनियर जिसे तार्किक सोच, टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल और प्रोफेशनल एथिक्स सिखाए जाते हैं, जब वही युवती भावनात्मक रूप से इतना असंतुलित हो जाए कि आतंक फैलाने लगे, तो यह केवल एक व्यक्ति की विफलता नहीं बल्कि हमारे शिक्षा तंत्र और पारिवारिक मूल्यों की असफलता भी है।
शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्रियां हासिल करना नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक, सहनशील व्यक्ति और संवेदनशील इंसान बनाना भी है। लेकिन क्या आज की शिक्षा प्रणाली यह सब सिखा पा रही है?
काउंसलिंग क्यों नहीं, अपराध क्यों?
रेने के पास कई विकल्प थे—वह चाहती तो काउंसलिंग, मनोचिकित्सा या पारिवारिक समर्थन का सहारा ले सकती थी। लेकिन उसने वह रास्ता चुना जो सबसे खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना था। इसका कारण यही है कि आज के युवाओं को भावनात्मक समझ और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कोई शिक्षा नहीं दी जाती। वे यह नहीं सीखते कि असफलता से कैसे निपटा जाए, या अस्वीकार किए जाने की स्थिति में संतुलन कैसे बनाए रखें।
यह सिर्फ रेने की कहानी नहीं है…
ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। इसी वर्ष कुछ माह पूर्व मेरठ की मुस्कान नाम की युवती ने भी प्रेमी के साथ मिलकर पति हत्या की थी और ताज़ातरीन घटना सोनम का जिसने विवाह के मात्र कुछ दिन बाद ही अपने पति की हत्या कर दी । ये घटनाएँ एक नई प्रवृत्ति की ओर इशारा कर रही हैं — जब युवा अपनी निजी असफलताओं का बदला पूरे समाज से लेने लगे हैं।
ये घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारे युवा भावनात्मक रूप से इतने असहाय हो चुके हैं कि वे जीवन के सामान्य संघर्षों को भी झेल नहीं सकते और आपराधिक मनोवृत्ति कैसे उनपर मानसिक रूप से हावी होती जा रही है ।
माता-पिता की भी भूमिका
अक्सर माता-पिता अपने बच्चों की शैक्षणिक सफलता को ही सब कुछ मान लेते हैं। वे उन्हें महँगे स्कूलों, कोचिंग संस्थानों और करियर काउंसलिंग में भेजते हैं, लेकिन भावनात्मक शिक्षा, आत्म-नियंत्रण, नैतिकता और करुणा जैसे मूल्यों की शिक्षा देना भूल जाते हैं वह कौन देगा ?
जब कोई बच्चा जीवन की पहली हार या ठेस से जूझता है, तो यदि उसे घर से सही मार्गदर्शन न मिले, तो वह इंटरनेट, डार्क वेब, या आत्म-विनाश की राह पकड़ सकता है। यह माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों से केवल अपेक्षा न करें, बल्कि संवाद भी करें, सुनें, और उन्हें समझाएँ कि जीवन में हार भी सीखने का एक चरण होती है।
आधुनिक समाज में पुराने मूल्यों की आवश्यकता
आज जबकि तकनीक और विज्ञान ने हमें चाँद पर पहुँचा दिया है, वहीं संवेदनशीलता, सहानुभूति और आत्म-संयम जैसे गुणों की अधिक आवश्यकता है। यदि एक इंजीनियर बम की धमकी देकर अपने निजी दर्द को व्यक्त करता है, तो यह संकेत है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में एक गंभीर खामी है।
हमें अपने शिक्षा तंत्र में मानवता, मानसिक स्वास्थ्य, परामर्श, और नैतिकता को भी उतना ही महत्व देना होगा जितना कि मैथ्स, फिजिक्स और कोडिंग को देते हैं।
क्या यह है “नए भारत ” की युवा सोच?
नए भारत “” की परिकल्पना में यदि हमारे युवा इतना स्वार्थी, असंवेदनशील और आत्म-केंद्रित बनते जा रहे हैं कि वे दूसरों की जान से खेलते हुए अपने दुख को “जस्टिफाई” करते हैं, तो यह भविष्य के लिए बेहद चिंताजनक है।
हमें आज ही यह विचार करना होगा कि क्या हम केवल पेशेवरों की फौज तैयार कर रहे हैं या जिम्मेदार नागरिक भी गढ़ रहे हैं?
रेने जोशिल्दा का मामला सिर्फ एक युवती की गलती नहीं, बल्कि पूरे समाज के आत्म-विश्लेषण की पुकार है। यह एक चेतावनी है कि अगर हमने समय रहते शिक्षा के साथ-साथ संस्कार, संवाद और मानसिक स्वास्थ्य की तरफ ध्यान नहीं दिया, तो ऐसे “शिक्षित अपराधी” हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करते रहेंगे।
यह वक्त है संभलने का — माता-पिता, शिक्षक, सरकार और समाज को मिलकर शिक्षा का सही अर्थ और उद्देश्य समझाने की ज़रूरत है। वरना तकनीक की ताकत और भावनाओं की कमजोरी मिलकर समाज के लिए विस्फोटक साबित होगी।
“पढ़ाई का मतलब इंसान बनना है, सिर्फ प्रोफेशनल नहीं।”
― यही संदेश आज की हर घटना हमें दे रही है।