भारत की एकता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले दूरदर्शी नेता को भावभीनी श्रद्धांजलि

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
दिल्ली, 25 जून: भारत की एकता और अखंडता के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 72वीं पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्यालय में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने उन्हें याद करते हुए उनके योगदानों पर प्रकाश डाला। यह ब्लॉग उनके जीवन, संघर्ष और राष्ट्र निर्माण में उनके अमूल्य योगदान को समर्पित है।

देश की एकता के लिए संघर्ष

डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने धारा 370 का कड़ा विरोध किया और ‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे’ का नारा दिया। उनका मानना था कि यह धारा भारत की एकता के लिए खतरा है। उनका यह संघर्ष आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

एक रहस्यमय अंत और विरासत

डॉ. मुखर्जी का निधन 1953 में श्रीनगर जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में हुआ था। उनकी मृत्यु की जांच की मांग को उस समय अनसुना कर दिया गया था। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि माना जाता है, क्योंकि यह उनके सपनों को साकार करने जैसा था।

प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक यात्रा

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक प्रख्यात शिक्षाविद्, विधिवेत्ता और दूरदर्शी नेता थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया। स्वतंत्रता के बाद, वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने, लेकिन मतभेदों के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया। बाद में उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो आज के भाजपा का वैचारिक जनक है।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन भारत की एकता और अखंडता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उनके आदर्श और बलिदान आज भी देश को मजबूत और समृद्ध बनाने की दिशा में प्रेरित करते हैं।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.