फिर कभी न लौट पायें वो काले दिन

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सत्य पाल जैन पूर्व सांसद एवं एडीषनल सालिसिटर जनरल ऑफ इंडिया

25 जून, 1975 को देष में लगी आपातस्थिति को आज 50 वर्ष हों गये हैं, लेकिन उन काले दिनों की याद आज भी मन मस्तिक पर वैसे ही ताज़ा है।

उस दौर में श्री जय प्रकाष नारायण जी का आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। इसी दौरान 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने श्रीमति इंदिरा गांधी का 1971 का लोकसभा चुनाव रद्द कर दिया था। इस कारण उनके त्यागपत्र की मांग निरंतर ताकत पकड़ रही थी, परन्तु श्रीमति इंदिरा गांधी ने त्यागपत्र देने के बजाय 25 जून की रात को देष में आपातस्थिति ही लागू कर दी।

26 जून प्रातः सभी विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थी। श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लाल कृष्ण आडवाणी, श्री मौराजी भाई देसाई, चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवी लाल सभी नेता मीसा में बन्द कर दिये गये थे।

तानाषाही ओर निरंकुषता केवल अपना स्वार्थ देखती है उसके सामने विचारधारा आदि का कोई महत्व नहीं है। इसी को प्रामाणित करते हुये श्रीमति इंदिरा गांधी ने न केवल विपक्षी, अपितु अपनी पार्टी के भी बड़े वरिष्ठ नेताओं को, जिसमें स्व0 चन्द्रषेखर, श्री कृष्णकांत भी शामिल थे, को जेल में डाल दिया था। जिन लोगों को जेल में डाला गया उनमें से भारी संख्या में लोगों की नौकरियों चली गई, कारोबार बंद हो गये तथा कई परिवारों को भूखे मरने की नौबत आ गई थी। लेकिन इसके वावजूद सभी ने पूरी हिम्मत एवं साहस से इसका मुकाबला किया।

मेरी आयु उस समय मात्र 23 वर्ष की थी और तब मैं पंजाब विष्विद्यालय छात्र संघ का महासचिव था तथा स्वर्गीय जय प्रकाष नारायण द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन में पंजाब एवं चंडीगढ़ छात्र समिति का अध्यक्ष था। 13 जुलाई, 1975 को जब मैं पंजाब विष्वविद्यालय में लॉ विभाग में प्रवेष लेने गया तो मेरिट में होने के बावजूद भी प्रवेष नहीं दिया गया, उलटे जब मैं इंटरव्यू देकर कमरे से बाहर आया तो मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। मेरे उपर झूठा केस बनाया गया था कि मैंने लॉ विभाग के बाहर एक बहुत बड़ी छात्र रैली की तथा उसमें कहा कि हम इंदिरा गांधी सरकार का तख्ता पलट देंगे। दिसंबर माह में तब के न्यायिक मजिस्टेªट श्री हंस राज नागरा ने मेरे विरूद्ध मुकदमें को खारिज करते हुये मुझे रिहा करने का आदेष दिया।

उसके बाद मैंने 26 जनवरी, 1976 को पंजाब विष्वविद्यालय में सत्याग्रह करके अपनी गिरफ्तारी दी। रात्रि को मुझे सैक्टर 29 पुलिस लाइन में ले जाकर मेरे दाये हाथ की उंगलियों पर तांबे की नंगी पतली तारें बांधकर बिजली के करंट लगाकर यातनाएं दी गई। एक बार तो ऐसा लगा कि शायद यह रात जीवन की अंतिम रात होगी। अगले दिन मुझे बुड़ैल जेल भेज दिया गया।

उस दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित कर दिये गये थे तथा राजनीतिक कैदियों को जेल से न्यायालय में लाकर पेष करने के बजाय जजों को ही जेल में जाकर वहीं पर अदालत लगाने के आदेष दिये गये थे। पुलिस और सरकार पूरी तरह से निरंकुष हो गई थी तथा किसी को भी कभी भी, कंही से भी और कोई भी झूठा केस बनाकर जेल में डाल देती थी तथा ऐसे सभी बंदियों की जमानत पर कानूनी तौर से प्रतिबंध भी लगा दिया गया था।

आपातस्थिति लगाने के लगभग 6 महीनें बाद आरएसएस, विपक्षी नेताओं, जनसघं आदि सभी गैर कांग्रेसी संस्थाओं ने जिनका आपातस्थिति के विरूद्ध आंदोलन प्रांरभ किया जिनमें हजारों लोगों ने अपनी गिरफ्तारियां देकर देष की प्रधानमंत्री की तानाषही को चुनौती दी।

वह काले दिन बहुत ही डरावनें थे। रिष्तेदार, सगे-सम्बंधी, मित्र सभी मिलने से डरते थे। हर तरफ भय और आंतक का माहौल था। रेडियों पर सेंसर लगा था जिस कारण लोगों को छुप-छुप के बीबीसी के समाचार सुनने पर ही कुछ जानकारी मिलती थी। सारा देष एक खुली जेल की तरह हो गया था जहां आंतक, कु्ररता एवं तानाषाही का माहौल था। हर व्यक्ति पर पुलिस का खौफ था। एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि देष में अब लोकतंत्र कभी लौट के नहीं आयेगा तथा एक व्यक्ति की तानाषाही ही अब आगे चलेगी। कई बार जेल में सोचते थे कि शायद जेलों से जीवित बाहर आ भी पायेंगे या नहीं।

श्रीमति इंदिरा ने जब संसद का अधिवेषन आपातस्थिति को पास करने के लिये बुलाया तो ये इतिहास में पहला और आखिरी अवसर था कि संसद में सभी विपक्षी बेंच खाली पडे़ थे, बस इंमरजैंसी में सरकार का साथ देने वाली पार्टियों के सांसद ही सदन में उपस्थित थे। वह भी शायद पहली बार था कि श्रीमति गांधी ने बिना मंत्रीमंडल की स्वीकृति के राष्ट्रपति के पास आपातस्थिति लगाने की सिफारिष की थी जिसे तब के राष्ट्रपति स्व0 फखरूदीन अली अहमद ने इस असंवैधानिक प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लिया था। कैबिनेट को इसकी सूचना अगली सुबह दी गई थी।

परंतु सŸाा के नषे में डूबी श्रीमति इंदिरा गांधी ने अचानक जनवरी, 1977 में यह सोचा कि अब उनके मुकाबले कोई पार्टी या नेता नहीं टिक पायेगा तथा आपातस्थिति के विरूद्ध जोर पकड़ रहे आंदोलन, विदेषों का दबाव तथा विपक्ष को एक और झटका देने के उदेष्य से चुनाव करवाने का निर्णय किया। और चुनाव की घोषणा होते ही जनता के धैर्य का बांध टूट पड़ा और लोग खुलकर इन्दिरा गांधी के विरूद्ध लामबन्द हो गये।

श्री जयप्रकाष नारायण द्वारा दिया गया नारा ‘‘कांग्रेस को गया एक-एक वोट हाथ की हथकड़ी तथा पांव की बेड़ी साबित होगा’’ ने रामबाण का काम किया। चुनाव में इंदिरा जी एवं कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गये।

1977 में लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद ही देष से आपातस्थिति हटाई गई थी। जब श्रीमति इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव हारने के बाद त्यागपत्र लेकर तब के राष्ट्रपति श्री बी डी जती के पास गई तो श्री जती ने उन्हें सलाह दी कि वह त्यागपत्र से पहले आपातस्थिति वापिस ले लें अन्यथा नई सरकार उसी आपातस्थिति में बने कानुनों को श्रीमति इंदिरा गांधी के विरूद्ध इस्तेमाल कर सकती है। इस पर श्रीमति इंदिरा गांधी की ही सिफारिष पर राष्ट्रपति ने नई सरकार बनने से पहले ही आपातस्थिति हटा दी।

आज भी वो काले दिन याद करके मन कांप उठता है परंतु भारत की जनता में इतनी ताकत है और भारत का लोकतंत्र इतना मजबूत है कि किसी भी बडे़ से बड़े संकट से बाहर आ सकता है। आज सारे देष को यह प्रण करने का दिन है कि कोई भी तानाषाह भविष्य में आपातस्थिति लागू करने की तो दूर परन्तु इसे लागू करने सोच भी न सके।
‘फिर कभी न लौट पायें वो काले दिन’।

सत्य पाल जैन
पूर्व सांसद एवं एडीषनल सालिसिटर जनरल ऑफ इंडिया
मोबाइल नं0 9814102232
Email: contact@satyapaljain.com

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