गुवाहाटी में अंबुबाची मेला आरंभ

नीलाचल की गोद में आस्था का महापर्व

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पूनम शर्मा
सोमवार की एक जीवंत सुबह, जैसे ही कामाख्या मंदिर के कपाट दोपहर 2:56 बजे औपचारिक रूप से बंद हुए, गुवाहाटी की पवित्र नीलाचल पहाड़ी आध्यात्मिक ऊर्जा से गूँज उठी। यह दृश्य था चार दिवसीय अंबुबाची मेला के आरंभ का – वह वार्षिक पर्व जो देवी कामाख्या की रजस्वला अवस्था को दर्शाता है और स्त्री शक्ति की दिव्यता का उत्सव है।

कामाख्या मंदिर प्रबंधन समिति के अनुसार, पहले दिन ही तीन लाख से अधिक श्रद्धालु मंदिर पहुँच चुके थे और यह संख्या बारह लाख तक पहुँचने की उम्मीद है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने सोशल मीडिया पर श्रद्धालुओं का स्वागत करते हुए कहा, “#अंबुबाची महायोग का आज शुभारंभ हुआ है, जो माँ कामाख्या की दिव्यता और सृजन शक्ति का प्रतीक है।”

विविधता में एकता: भक्तों की भावनात्मक एकजुटता
नीलाचल पहाड़ी इन दिनों एक रंगबिरंगी धार्मिक छवि बन गई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल से लेकर विदेशों तक से आए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। उनमें साधुओं और तांत्रिकों की उपस्थिति विशेष ध्यान आकर्षित कर रही है।

हरियाणा से आए सियाराम बाबा, जो वर्षों से बिना चप्पल पहने अग्नि-साधना कर रहे हैं, बोले – “सूरत में माँ ने बुलाया और मैं चला आया। जब शरीर साध लिया हो, तो अग्नि भी साधक को आशीर्वाद देती है।”

वहीं, महाराष्ट्र के महंत श्री मलंगा नंद महाराज, जो एक कॉर्पोरेट फर्म बैंक ऑफ अमेरिका में काम करते हैं, हर वर्ष छह महीने पहले अवकाश लेकर अंबुबाची में भाग लेते हैं। इस बार वे एक सहकर्मी को न्याय दिलाने के लिए माँ के दरबार में उपस्थित हुए, जिसकी आत्महत्या का कारण कार्यस्थल पर उत्पीड़न था। “पुलिस ने अभी तक कुछ नहीं किया। अब माँ से ही न्याय की आस है,” उन्होंने कहा।

प्रशासनिक तैयारियाँ और सुरक्षा
श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने व्यापक इंतज़ाम किए हैं। भूतनाथ, आदाबाड़ी, पांडु जैसे इलाकों में सफाई, जल व्यवस्था, लाइटिंग और मेडिकल कैंप लगाए गए हैं।

गुवाहाटी नगर निगम के 5000 से अधिक कर्मचारी तीन शिफ्टों में सफाई व्यवस्था संभाल रहे हैं। बीते हफ्तों में हुए भूस्खलन की घटनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री ने रात्रि में पहाड़ियों पर जाने से मना किया है। SDRF और NDRF की टीमें तैनात हैं।

राज्य प्रशासन ने पाँच स्वागत काउंटर बनाए हैं, जहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को स्वागत पत्र और मार्गदर्शन सामग्री दी जा रही है।

स्त्रीत्व की महिमा: रजस्वला देवी की पूजा
अंबुबाची मेला मुख्य रूप से उस काल को दर्शाता है जब देवी कामाख्या ऋतुकाल में होती हैं। इस दौरान मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है और चार दिन तक वहां किसी को प्रवेश नहीं दिया जाता। माना जाता है कि यह समय प्रकृति की उर्वरता का प्रतीक है।

श्रद्धालु मंदिर के बाहर रहकर दुर्गा पूजा, मनसा पूजा, पोहन बिया जैसी विशेष आराधनाएं करते हैं। 26 जून की तड़के सुबह 3:19 बजे मंदिर के कपाट पुनः खुलेंगे और देवी का दर्शन आरंभ होगा।

समाज, संस्कृति और व्यापार की संगम स्थली
मेला केवल आध्यात्मिक नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु तंबुओं में रुकते हैं, जहाँ भंडारों में दिन-रात लंगर चलता है। इस बार आयोजकों ने एक दिन पहले यानी 21 जून से ही भोजन सेवा प्रारंभ कर दी थी। बताया गया कि एक भंडारा पिछले वर्ष एक ही दिन में ₹1.2 लाख तक खर्च कर चुका था।

स्थानीय व्यवसाय भी मेला से समृद्ध होता है – प्रसाद, अगरबत्ती, धार्मिक वस्त्र, हस्तनिर्मित ताबीज़ और अन्य पूजन सामग्रियों की दुकानों से पूरे इलाके में उत्सव जैसा वातावरण है।

नीलाचल की ऐतिहासिकता
कामाख्या मंदिर भारत के प्राचीन चार तांत्रिक शक्तिपीठों में एक है। इसका वर्तमान रूप 8वीं–9वीं सदी में बना, जिसे कोच और अहोम शासकों ने पुनर्निर्मित कराया। मंदिर की वास्तुकला में असमिया कारीगरी और बंगाली-इस्लामी प्रभाव झलकता है।

यहाँ देवी की महाविद्या रूपों की सात उप-प्रतिमाएँ हैं और एक गुप्त गर्भगृह है, जिसे योनि-कुंड कहा जाता है, जहाँ तांत्रिक साधना होती है।

जैसे-जैसे 26 जून का दिन निकट आएगा, माँ के दर्शन और प्रसाद के लिए भक्तों का रेला और बढ़ेगा। देश-विदेश से लाखों लोग कामाख्या के इस महायोग में शामिल होकर मातृशक्ति की आराधना करते हैं।

नीलाचल की चार दिवसीय यह यात्रा केवल पूजा नहीं, आत्मिक शांति, सामाजिक एकजुटता और जीवन के गहरे अर्थों को अनुभव करने का पर्व है – जो बताता है कि स्त्रीत्व और सृजन का सम्मान ही मानव सभ्यता का मूल है।

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