मेघालय की बेटी ने रचा इतिहास: रिफाइनेस वारजरी ने फतह किया माउंट एवरेस्ट!
साहस और संकल्प की अद्भुत मिसाल
समग्र समाचार सेवा
शिलॉन्ग, 23 जून : मेघालय की 20 वर्षीय एनसीसी कैडेट रिफाइनेस वारजरी ने एक असाधारण उपलब्धि हासिल की है। 18 मई को सुबह 4:45 बजे, उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8,848.86 मीटर) को सफलतापूर्वक फतह कर लिया। इसके साथ ही वह ऐसा करने वाली मेघालय की सबसे कम उम्र की और तीसरी महिला बन गई हैं। रिफाइनेस की यह उपलब्धि न केवल उनके लिए बल्कि पूरे राज्य और देश के लिए गौरव का क्षण है।
सेंट एंथोनी कॉलेज की छात्रा, एनसीसी कैडेट
रिफाइनेस, जो सेंट एंथोनी कॉलेज में बीएससी बॉटनी की छात्रा हैं, 61 मेघालय गर्ल्स बटालियन एनसीसी की एक सक्रिय कैडेट भी हैं। उनकी इस उपलब्धि का जश्न मनाने के लिए शनिवार को उमरोई एयरपोर्ट पर उनका जोरदार स्वागत किया गया, जहाँ एनसीसी यूनिट और उनके परिजनों ने गर्मजोशी से उनका अभिनंदन किया।
पूर्वोत्तर से एकमात्र प्रतिभागी
रिफाइनेस श्लुर्बोर खारमिंडाई और डायमंडसी वारजरी की पांच संतानों में तीसरी हैं। यह गर्व की बात है कि वह पूरे उत्तर-पूर्व क्षेत्र से एकमात्र प्रतिभागी थीं जिन्हें 38-सदस्यीय एवरेस्ट अभियान टीम के लिए चुना गया था। यह उनके असाधारण शारीरिक और मानसिक दृढ़ता का प्रमाण है।
एवरेस्ट से पहले भी कई चोटियों पर लहराया परचम
एवरेस्ट फतह करने से पहले भी रिफाइनेस ने अपने पर्वतारोहण कौशल का प्रदर्शन किया था। अगस्त 2024 में, उन्होंने उत्तराखंड स्थित माउंट आबि गामिन (7,355 मीटर) को भी सफलतापूर्वक चढ़ा था, जो उनकी तैयारी और समर्पण को दर्शाता है।
कठिन प्रशिक्षण और एनसीसी की भूमिका
रिफाइनेस का एवरेस्ट तक का सफर आसान नहीं था। एनसीसी चयन प्रक्रिया में भाग लेने वाले 17 लाख कैडेट्स में से सिर्फ 10 फाइनलिस्ट चुने गए थे, जिनमें रिफाइनेस भी शामिल थीं। इस उपलब्धि के लिए उन्हें नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (उत्तरकाशी), हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट (दार्जिलिंग) और सियाचिन जैसी अत्यधिक कठिन जगहों पर गहन प्रशिक्षण लेना पड़ा। यह प्रशिक्षण ही उन्हें एवरेस्ट की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर पाया।
तिरंगा लहराते ही गौरवपूर्ण पल
अपनी यात्रा साझा करते हुए रिफाइनेस ने बताया, “जब मैंने तिरंगे को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर लहराया, तो वह पल मेरे जीवन का सबसे गौरवपूर्ण क्षण था। यह सिर्फ मेरी नहीं, मेरे राज्य और परिवार की भी जीत है।” उन्होंने एवरेस्ट यात्रा के दौरान आने वाली चुनौतियों को भी बताया, खासकर कैंप 4, जिसे ‘डेथ जोन’ कहा जाता है, जहाँ ऑक्सीजन मास्क के बिना सांस लेना मुश्किल था। उन्होंने चार मृत पर्वतारोहियों के शवों को पार करने के अपने अनुभव को भी साझा किया, जो इस अभियान की गंभीरता को दर्शाता है।
प्रेरणास्रोत माता-पिता और डोलाइन खारभीह
प्रेरणा के सवाल पर रिफाइनेस ने अपने माता-पिता और एनसीसी को धन्यवाद दिया, जिन्होंने उन्हें इस लक्ष्य तक पहुंचने में मदद की। उन्होंने पूर्व एवरेस्ट विजेता डोलाइन खारभीह का भी आभार जताया, जिनसे मिलकर उन्होंने पर्वतारोहण में अपनी रुचि विकसित की थी। रिफाइनेस आज मेघालय की नई उम्मीद और साहसिक युवाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा बन चुकी हैं।