समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 जून: लोकसभा चुनाव 2024 भारतीय राजनीति में कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। इस चुनावी महासमर में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए खर्च का विश्लेषण अब सामने आया है, जो चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने जारी किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चुनावी अभियान पर सबसे अधिक खर्च किया, जबकि कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही।
चुनावी खर्च में भाजपा सबसे आगे
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग 1,494 करोड़ रुपये खर्च किए। यह कुल चुनावी खर्च का लगभग 44.56 प्रतिशत है। यह आंकड़ा भाजपा द्वारा अपनी प्रचार रणनीति और जमीनी स्तर पर पकड़ मजबूत करने के लिए किए गए विशाल निवेश को दर्शाता है।
कांग्रेस का खर्च और अन्य दल
भाजपा के बाद, कांग्रेस 620 करोड़ रुपये के खर्च के साथ दूसरे स्थान पर रही, जो कुल चुनावी खर्च का 18.5 प्रतिशत है। एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में 32 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के चुनावी खर्च का विश्लेषण किया, जिसमें कुल मिलाकर 3,352.81 करोड़ रुपये खर्च किए गए। राष्ट्रीय दलों ने इस कुल खर्च में से 2,204 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए, जो कुल का 65.75 प्रतिशत है।
कहां हुआ सबसे ज्यादा खर्च?
रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों ने अपने खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा प्रचार-प्रसार (पब्लिसिटी) पर खर्च किया। कुल 2,008 करोड़ रुपये से अधिक केवल प्रचार पर खर्च हुए, जिसमें मीडिया विज्ञापन और प्रचार सामग्री शामिल थी। इसके बाद यात्रा व्यय (ट्रैवल एक्सपेंस) का नंबर आता है, जिस पर 795 करोड़ रुपये खर्च किए गए। दिलचस्प बात यह है कि इस यात्रा व्यय का 96.22 प्रतिशत हिस्सा स्टार प्रचारकों की यात्रा पर खर्च किया गया, जबकि अन्य नेताओं पर बहुत कम राशि खर्च हुई।
पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों को एकमुश्त भुगतान के रूप में भी 402 करोड़ रुपये दिए। डिजिटल माध्यम से चुनाव प्रचार पर 132 करोड़ रुपये और अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि को प्रकाशित करने पर 28 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
पारदर्शिता पर चिंताएं
एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आयोग को खर्च का विवरण प्रस्तुत करने में देरी पर भी चिंता जताई है। कुछ मामलों में यह देरी 168 दिनों तक की रही। एडीआर ने चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों के खर्च पर कड़ी निगरानी रखने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त करने का आग्रह किया है, जैसे उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी की जाती है।
चुनावी खर्च की बढ़ती प्रवृत्ति
यह रिपोर्ट एक बार फिर भारतीय चुनावों में बढ़ते खर्च की प्रवृत्ति को उजागर करती है। हालांकि उम्मीदवारों के लिए चुनावी खर्च की एक सीमा निर्धारित होती है (लोकसभा चुनाव के लिए 95 लाख रुपये तक), राजनीतिक दलों के खर्च पर कोई स्पष्ट सीमा नहीं है। यह स्थिति बड़े और वित्तपोषित दलों को एक अनुचित लाभ प्रदान करती है और चुनाव में धन के प्रभाव पर सवाल उठाती है।
एडीआर की यह रिपोर्ट चुनाव सुधारों की आवश्यकता पर बल देती है। चुनावी खर्च में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि लोकतंत्र में धन का प्रभाव कम हो और सभी दलों को समान अवसर मिलें।