चुनाव आयोग ने CCTV फुटेज की स्टोरेज अवधि घटाई
अब केवल 45 दिन तक रखी जाएगी चुनावी CCTV रिकॉर्डिंग, आयोग ने दुरुपयोग का हवाला दिया
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 जून: भारतीय चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सीसीटीवी फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हालांकि, हाल ही में चुनाव आयोग (ECI) ने इन फुटेज को स्टोर करने की समय-सीमा को लेकर एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। अब चुनावी प्रक्रिया के सीसीटीवी फुटेज को केवल 45 दिनों तक ही सुरक्षित रखा जाएगा, जबकि पहले यह अवधि 3 महीने से लेकर 1 साल तक की थी। इस फैसले पर जहां कुछ लोग ‘दुरुपयोग की आशंका’ को सही ठहरा रहे हैं, वहीं कुछ इसे पारदर्शिता के खिलाफ मान रहे हैं।
क्यों बदला गया नियम?
चुनाव आयोग ने राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को भेजे गए अपने नए निर्देशों में इस बदलाव का कारण बताया है। आयोग के अनुसार, “गैर-उम्मीदवारों द्वारा सोशल मीडिया पर इन सामग्रियों का हाल ही में दुरुपयोग किया गया है, जहां इन्हें तोड़-मरोड़कर, संदर्भ से हटाकर प्रसारित किया गया, जिससे गलत सूचनाएं और दुर्भावनापूर्ण नैरेटिव फैलाए गए। इसका कोई कानूनी परिणाम नहीं निकलता, इसलिए समीक्षा करना आवश्यक था।”
यह नया निर्देश 6 सितंबर, 2024 को जारी हुए पुराने दिशा-निर्देशों से अलग है, जिनमें अलग-अलग चरणों की रिकॉर्डिंग को 3 महीने से लेकर 1 साल तक सुरक्षित रखने की बात कही गई थी।
क्या है 45 दिनों का महत्व?
चुनाव आयोग ने इस नई समय-सीमा को चुनाव याचिका दाखिल करने की अधिकतम 45 दिनों की कानूनी समय-सीमा से जोड़ा है। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद, किसी भी व्यक्ति के पास चुनाव परिणाम को चुनौती देने के लिए संबंधित उच्च न्यायालय में ‘चुनाव याचिका’ दायर करने के लिए 45 दिन का समय होता है। आयोग का कहना है कि यदि इस अवधि में कोई याचिका दाखिल होती है, तो रिकॉर्डिंग तब तक सुरक्षित रखी जाएगी जब तक मामला अदालत में लंबित है। यदि कोई याचिका दाखिल नहीं होती है, तो 45 दिनों के बाद डेटा नष्ट किया जा सकता है।
चुनावी प्रक्रिया में सीसीटीवी की भूमिका
सीसीटीवी फुटेज और वीडियोग्राफी का उपयोग चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न महत्वपूर्ण चरणों की निगरानी के लिए किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:
मतदान केंद्रों के भीतर और बाहर की गतिविधियां: यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदान शांतिपूर्ण और व्यवस्थित ढंग से हो रहा है, और किसी भी प्रकार की अनियमितता को रोका जा सके।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की जांच, स्टोरेज और परिवहन: EVM की सुरक्षा और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए।
मतगणना के दौरान की गतिविधियां: मतगणना प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए।
चुनाव प्रचार: उम्मीदवारों के खर्च और आचार संहिता के उल्लंघन की निगरानी के लिए।
चुनाव आयोग का कहना है कि इन रिकॉर्डिंग को कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं किया गया है, बल्कि इन्हें एक “आंतरिक प्रबंधन उपकरण” के रूप में उपयोग किया जाता है।
पारदर्शिता बनाम दुरुपयोग की चिंता
यह फैसला एक बहस को जन्म देता है कि पारदर्शिता को कैसे बनाए रखा जाए और साथ ही गलत सूचनाओं के प्रसार को कैसे रोका जाए। कुछ आलोचकों का तर्क है कि फुटेज तक पहुंच को सीमित करने से चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है, जबकि आयोग का मानना है कि यह दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक है। दिसंबर 2024 में, सरकार ने चुनाव नियमों में भी संशोधन किया था ताकि सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोका जा सके।
यह निर्णय भविष्य में चुनावी प्रक्रिया में निगरानी और पारदर्शिता पर कैसे प्रभाव डालेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।