पूनम शर्मा
पश्चिम बंगाल में विपक्षी नेताओं की हत्या अब एक आम बात बनती जा रही है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सरकार के शासन में राज्य लगातार हिंसा, राजनीतिक प्रतिशोध और अराजकता की गिरफ्त में है। ताजा मामला हुगली जिले के गोघाट से सामने आया है, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अल्पसंख्यक मोर्चा के मंडल अध्यक्ष का शव पेड़ से लटका मिला। मृतक के दोनों हाथ रस्सी से पीछे बंधे हुए थे, जिससे यह साफ तौर पर हत्या प्रतीत होती है, लेकिन ममता सरकार इस पर चुप्पी साधे बैठी है।
हत्या या आत्महत्या? पुलिस भी संशय में
शव की स्थिति अत्यंत संदिग्ध थी। रस्सी से बंधे दोनों हाथ, और पेड़ से लटका हुआ शरीर यह बताने के लिए काफी है कि यह कोई आत्महत्या नहीं, बल्कि पूर्व नियोजित राजनीतिक हत्या है। पुलिस ने अभी तक इस मामले में किसी गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की है, और सरकार की ओर से भी कोई कड़ा बयान नहीं आया है।
स्थानीय BJP कार्यकर्ताओं का कहना है कि मृतक नेता को पहले धमकियां दी जा रही थीं और वह पिछले कुछ महीनों से डर के साए में जी रहे थे। लेकिन राज्य प्रशासन और पुलिस ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की। यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि ममता बनर्जी की सरकार के तहत राज्य में विपक्षी नेताओं की जान और सुरक्षा दोनों खतरे में हैं।
कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल
यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या हुई हो। 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद से लेकर अब तक, सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं की रहस्यमयी परिस्थितियों में हत्या हो चुकी है।
उदाहरण
अभिजीत सरकार (कोलकाता): 2021 चुनाव परिणामों के तुरंत बाद भाजपा कार्यकर्ता अभिजीत सरकार की बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। उनका फेसबुक लाइव वीडियो भी सामने आया था जिसमें उन्होंने अपनी जान को खतरा बताया था।
मानिक मोइरा (पूर्वी मिदनापुर): वर्ष 2022 में भाजपा बूथ अध्यक्ष मानिक मोइरा की लाश खेत में मिली थी। परिवार ने टीएमसी कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाया लेकिन जांच आज तक अधूरी है।
दिबाकर सरकार (उत्तर दिनाजपुर): 2023 में इस भाजपा युवा नेता की हत्या कर दी गई थी और आरोप था कि यह राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई थी।
इन सभी घटनाओं में एक चीज समान रही—सरकारी तंत्र की चुप्पी और पुलिस की निष्क्रियता। आरोप लगते हैं, एफआईआर दर्ज होती है, लेकिन न्याय का कोई नामोनिशान नहीं दिखता।
ममता सरकार की असंवेदनशीलता
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हमेशा से विपक्ष की हर आलोचना को “साजिश” कहकर खारिज करती रही हैं। लेकिन जब विपक्ष के नेता एक के बाद एक मारे जा रहे हों, और सरकार न तो अपराधियों को गिरफ्तार करे, न ही पीड़ित परिवारों को न्याय दे, तो यह केवल प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि एक लोकतंत्र पर धब्बा है।
बीजेपी के नेताओं का कहना है कि राज्य सरकार का रवैया न केवल असंवेदनशील है, बल्कि जानबूझकर हिंसा को नजरअंदाज करने वाला भी है। ममता सरकार की प्राथमिकता राजनीतिक वर्चस्व है, न कि नागरिकों की सुरक्षा।
विपक्षी नेताओं की सुरक्षा खतरे में
राज्य में तृणमूल कांग्रेस का दबदबा इस हद तक बढ़ गया है कि स्थानीय प्रशासन तक राजनीतिक दबाव में कार्य करता नजर आता है। बीजेपी नेताओं को लगातार धमकियां मिलती हैं, उनके घरों पर हमले होते हैं, और गाँवों से उन्हें निकाला जाता है।
गोघाट की घटना ने यह साबित कर दिया है कि बंगाल में लोकतंत्र के नाम पर केवल एक पार्टी का राज चल रहा है, जहाँ विपक्ष को कुचलने के लिए हिंसा को हथियार बनाया गया है।
रस्सी से बंधे एक विपक्षी नेता का शव ममता सरकार की असफल होती कानून-व्यवस्था और संवेदनहीनता की एक जीवंत मिसाल है। अगर राजनीतिक मतभेद का उत्तर हत्या और दमन से दिया जाएगा, तो लोकतंत्र का क्या अर्थ रह जाएगा?
अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट इस स्थिति का संज्ञान लें। विपक्ष की हत्या को केवल “राजनीतिक झड़प” कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बंगाल को हिंसा से मुक्त और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।