“युद्ध की निजी कीमत” नेतन्याहू की टिप्पणी: भावनात्मक अपील

विपक्ष और मीडिया की एकजुट आलोचना

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पूनम शर्मा
जब एक देश युद्ध की आग में झुलस रहा हो, और प्रधानमंत्री अपने बेटे की शादी टलने को ‘युद्ध की निजी कीमत’ बता दें—तो यह केवल एक भावनात्मक बयान नहीं होता, बल्कि राजनीतिक और नैतिक संवेदनशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की हालिया टिप्पणी को लेकर जो प्रतिक्रिया सामने आई है, वह सिर्फ नाराज़गी नहीं, बल्कि उस व्यापक अविश्वास का संकेत है जो जनता और सत्ता के बीच गहराता जा रहा है।

नेतन्याहू की टिप्पणी: भावनात्मक अपील 
नेतन्याहू ने बे’र शेवा के मिसाइल प्रभावित अस्पताल के बाहर संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि ईरान-इज़राइल संघर्ष के चलते उनके बेटे अवनेर की शादी दो बार टल चुकी है और यह उनके परिवार के लिए एक ‘व्यक्तिगत बलिदान’ है। उन्होंने अपनी पत्नी सारा को इस परिस्थिति में ‘नायिका’ बताते हुए उनकी मानसिक मजबूती की प्रशंसा की।

यह बयान सतही रूप से भावनात्मक लग सकता है, लेकिन यह राजनीतिक मंच से उस समय आया जब देश के नागरिक शोक, भय और अनिश्चितता में जी रहे हैं। युद्ध की पृष्ठभूमि में जब आम जनता वास्तविक और अपूरणीय नुकसान झेल रही हो, तब एक नेता का यह कहना कि शादी टलना भी एक बड़ी कीमत है—गंभीर नैतिक असंतुलन की ओर इशारा करता है।

सामाजिक प्रतिक्रिया: सच्चे दुःख और बनावटी पीड़ा में फर्क
इस बयान के सामने आते ही इज़राइल की जनता और राजनीतिक विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी। सोशल मीडिया पर विरोध की बाढ़ आ गई। ग़ाज़ा में बंधक बनाए गए नागरिकों के परिवारों, युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिजनों और युद्धग्रस्त इलाकों के नागरिकों ने इस बयान को ‘स्वार्थपूर्ण’ और ‘निरर्थक’ करार दिया।

डेमोक्रेटिक सांसद गिलाड करीव ने इसे “सीमाहीन आत्ममुग्धता” बताते हुए कहा कि “बहुत से ऐसे परिवार हैं जिनकी शादियाँ  अब कभी नहीं होंगी, क्योंकि उनके बेटे लौटकर नहीं आएंगे।” यह टिप्पणी केवल नेतन्याहू की आलोचना नहीं है, बल्कि उस पीड़ा की गूंज है जो हर इज़रायली घर में महसूस की जा रही है।

राजनैतिक संवेदनशीलता बनाम व्यक्तिगत प्राथमिकता
राजनीति में नेतृत्व का मतलब होता है जनता के दुःख-दर्द में खुद को समाहित करना, न कि अपने निजी कष्टों को राष्ट्रीय पीड़ा के समकक्ष रखना। नेतन्याहू की यह कोशिश कि वे भी ‘बलिदानी’ हैं, क्योंकि बेटे की शादी टली है—वह इस युद्ध की गंभीरता को हल्का करने जैसी प्रतीत होती है।

युद्ध के समय एक नेता का हर शब्द, हर भाव और हर प्रतीकात्मक कार्रवाई जनता को संदेश देती है। ऐसे में जब प्रधानमंत्री खुद को पीड़ित दर्शाने की कोशिश करते हैं, जबकि वास्तव में उनकी स्थिति अपेक्षाकृत आरामदायक है—तो यह नेतृत्व की नैतिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाता  है।

क्या यह बयान छवि सुधार की कोशिश थी?
यह सवाल भी उठता है कि क्या यह बयान एक सोची-समझी रणनीति के तहत दिया गया? नेतन्याहू की लोकप्रियता हाल के वर्षों में डगमगाई है—भ्रष्टाचार के आरोपों, न्यायपालिका में दखल और सरकार-विरोधी प्रदर्शनों ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में एक भावनात्मक ‘पिता’ की भूमिका निभाकर वे शायद जनता से सहानुभूति बटोरना चाहते थे।

लेकिन यह दांव उलटा पड़ गया। जनता ने इसे एक बनावटी कथा मानते हुए उनकी मंशा पर ही सवाल उठा दिया। यह स्पष्ट करता है कि जनता अब भावनात्मक बाज़ीगरी से नहीं, संवेदनशील और सशक्त नेतृत्व से प्रभावित होती है।

मीडिया और विपक्ष की भूमिका
मीडिया ने इस पूरे प्रकरण को विस्तार से कवर किया और नेतन्याहू के बयान की तुलना युद्ध से प्रभावित परिवारों की वास्तविक त्रासदियों से की। विपक्ष ने भी इस मुद्दे को सत्ता के विरुद्ध जनभावनाओं को संगठित करने के अवसर में बदल दिया।

बेंजामिन नेतन्याहू का यह बयान एक छोटी सी घटना नहीं है। यह उस गहराते हुए विभाजन का प्रतीक है जो सत्ता और जनता के बीच पनप रहा है। एक नेता तब सच्चा होता है जब वह अपने कष्टों को नहीं, बल्कि जनता के दुःख को प्राथमिकता देता है। नेतन्याहू ने उस कसौटी पर इस बार असफलता पाई है।

इज़राइल जैसे देश में, जहाँ  हर घर युद्ध की चोट झेलता है, वहाँ  नेतृत्व केवल निर्णयों से नहीं, संवेदनशीलता से भी परखा जाता है। शादी का टलना निश्चित ही एक पारिवारिक क्षति हो सकती है, पर जब देश शोक में डूबा हो, तब इसे युद्ध का ‘निजी बलिदान’ कहना – एक संवेदनहीन राजनीति का परिचायक है।

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