समग्र समाचार सेवा
पटना,19 जून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जून को बिहार के मरहौरा स्थित रेल कारखाने में निर्मित पहले स्वदेशी लोकोमोटिव इंजन को गिनी गणराज्य के लिए हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। यह कार्यक्रम भारत के औद्योगिक इतिहास में एक नई उपलब्धि के रूप में दर्ज होगा, जो ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को वैश्विक पहचान देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
रेलवे बोर्ड के सूचना एवं प्रचार विभाग के कार्यकारी निदेशक दिलीप कुमार ने इस जानकारी की पुष्टि करते हुए बताया कि यह इंजन गिनी के सिमंडौ लौह अयस्क परियोजना में उपयोग किया जाएगा। यह परियोजना भारत और गिनी के बीच रणनीतिक औद्योगिक सहयोग को नई दिशा देगी।
तीन वर्षों में चरणबद्ध तरीके से होगी आपूर्ति
गिनी को भेजे जाने वाले लोकोमोटिव इंजनों की कुल अनुमानित लागत 3,000 करोड़ रुपये से अधिक है। इन इंजनों की आपूर्ति तीन चरणों में की जाएगी— चालू वित्त वर्ष 2025-26 में 37 इंजन, अगले वर्ष 2026-27 में 82 इंजन और 2027-28 में शेष 31 इंजन दिए जाएंगे। ये सभी इंजन मरहौरा रेल कारखाने में उन्नत तकनीक से निर्मित किए जा रहे हैं, जो भारत की इंजीनियरिंग कुशलता का परिचायक हैं।
मरहौरा बना भारत का निर्यात-योग्य रेल निर्माण केंद्र
बिहार का मरहौरा अब केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रेल इंजन निर्माण का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। यह कारखाना भारतीय रेलवे की निर्माण क्षमताओं को अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थापित करने की दिशा में एक मजबूत आधारशिला साबित हो रहा है। इन इंजनों का निर्माण ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियानों के लक्ष्यों के अनुरूप किया जा रहा है।
तकनीकी दृष्टि से उन्नत, वैश्विक मांग के अनुरूप डिज़ाइन
इन लोकोमोटिव इंजनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार डिजाइन किया गया है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये भारी खनिजों, खासकर लौह अयस्क को लंबी दूरी तक ले जाने में सक्षम हैं। इन इंजनों की मजबूती, ईंधन दक्षता और उच्च ट्रैक्शन क्षमता गिनी जैसे देशों की औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूरा करती है।
भारत बन रहा वैश्विक रेलवे निर्यात केंद्र
यह परियोजना केवल एक व्यापारिक डील नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक औद्योगिक उपस्थिति का प्रतीक है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इन इंजनों को रवाना किया जाना न केवल मरहौरा की उपलब्धि है, बल्कि पूरे देश की तकनीकी प्रगति का उत्सव है। यह पहल आने वाले वर्षों में भारत को रेलवे तकनीक के निर्यात क्षेत्र में एक नई पहचान दिला सकती है।