भारत का अपना ‘गुयाना मोमेंट’? अंडमान में तेल की खोज से बदल सकती है देश की तकदीर!

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 जून : भारत ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप पुरी के एक बयान ने पूरे देश में उम्मीद की एक नई लहर जगा दी है। उन्होंने कहा है कि अंडमान क्षेत्र में चल रही तेल और गैस की खोज भारत के लिए ‘गुयाना मोमेंट’ साबित हो सकती है। सरकार जीवाश्म ईंधन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है, जिससे भारत की ऊर्जा आयात पर निर्भरता काफी हद तक कम हो सकती है।

क्या है ये ‘गुयाना मोमेंट’?
सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ‘गुयाना मोमेंट’ का मतलब क्या है। गुयाना, दक्षिण अमेरिका का एक छोटा सा देश है, जिसकी किस्मत हाल ही में वहाँ मिले तेल के विशाल भंडारों ने बदल दी। तेल की खोज ने गुयाना की अर्थव्यवस्था को पंख लगा दिए। ठीक इसी तरह, भारत को उम्मीद है कि अंडमान में तेल और गैस के बड़े भंडार मिल सकते हैं, जो देश की ऊर्जा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए एक गेम-चेंजर साबित होंगे।

अंडमान पर क्यों है सरकार का फोकस?
भारत के पास लगभग 3.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर का सेडिमेंट्री बेसिन (Sedimentary Basin) है। यह धरती के नीचे की वो परतें होती हैं, जहाँ करोड़ों सालों से जीवाश्म जमा होकर तेल और गैस का रूप ले लेते हैं। चिंता की बात यह है कि अब तक इस विशाल क्षेत्र के केवल 8 प्रतिशत हिस्से में ही खोज का काम हुआ है।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के अनुसार:

सरकार ने अब इस दायरे को बढ़ाने का फैसला किया है।

पहले लगभग 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र खनन के लिए प्रतिबंधित था, जिसे अब खोल दिया गया है।

इस नए खुले क्षेत्र में सरकार को निवेशकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है और उम्मीद है कि भविष्य में यह और बढ़ेगी।
खोज की राह नहीं आसान: कितना आता है खर्च?

समुद्र की गहराइयों में तेल खोजना एक बेहद महंगा सौदा है। यही कारण है कि भारत को अपनी समुद्री क्षमता का उपयोग करने में इतना समय लगा।

एक औसत समुद्री कुएं (Offshore Well) की खुदाई में लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 830 करोड़ रुपये) तक का खर्च आता है।

भारत की प्रमुख अन्वेषण कंपनी ONGC इस चुनौती के बावजूद पूरी ताक़त से जुटी है और उसने पिछले चार दशकों में इस साल सबसे ज़्यादा कुएं खोदे हैं।

मंत्री पुरी ने गुयाना का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें 46 असफल प्रयासों के बाद 47वें कुएं में सफलता मिली थी, जो बाद में एक बड़ी खोज बनी। भारत भी इसी तरह की सफलता की उम्मीद कर रहा है।

क्या सच में मिल रहा है तेल? हालिया खोज के संकेत
खुशी की बात यह है कि शुरुआती संकेत बेहद सकारात्मक हैं। भारत को हाल ही में खोदे गए कुछ कुओं में तेल और गैस के भंडार मिले हैं:

सूर्यमणि: यहाँ 4 मिलियन मीट्रिक टन तेल के बराबर क्षमता का पता चला है।

नीलमणि: यहाँ 1.2 मिलियन मीट्रिक टन तेल के बराबर क्षमता पाई गई है।

अन्य कुएं: 2,865 मीटर और 2,957 मीटर की गहराई पर भी तेल और गैस के महत्वपूर्ण भंडार मिले हैं।

ये केवल शुरुआती अनुमान हैं और अभी भी विस्तृत आकलन किया जा रहा है। ONGC और ऑयल इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियाँ अब 5,000 मीटर की और अधिक गहराई पर खुदाई कर रही हैं, जिससे बड़ी खोज की संभावना बढ़ गई है।

भारत के लिए यह खोज क्यों है महत्वपूर्ण?
यह मिशन भारत के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आयात पर निर्भरता कम होगी: वर्तमान में, भारत अपनी ज़रूरत का 80% कच्चा तेल और 50% प्राकृतिक गैस आयात करता है। घरेलू उत्पादन बढ़ने से यह निर्भरता कम होगी।

विदेशी मुद्रा की बचत: तेल आयात पर हर साल खरबों डॉलर खर्च होते हैं। घरेलू उत्पादन से यह पैसा देश में ही रहेगा, जिसका उपयोग अन्य विकास कार्यों में किया जा सकेगा।

ऊर्जा सुरक्षा: इज़राइल-ईरान जैसे अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के कारण तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर भारत पर कम होगा।

आर्थिक विकास: तेल और गैस उद्योग के विस्तार से रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

अंडमान में तेल और गैस की खोज भारत के लिए एक उम्मीद की किरण है। हालाँकि चुनौतियाँ बड़ी हैं और सफलता की कोई गारंटी नहीं है, लेकिन शुरुआती संकेत और सरकार के ठोस प्रयास एक उज्ज्वल भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं। अगर यह मिशन सफल होता है, तो यह वास्तव में भारत के लिए एक ‘गुयाना मोमेंट’ होगा, जो देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

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