ईरान-इज़रायल युद्ध से भारत में तेल संकट की आशंका ? : क्या है स्ट्रेट ऑफ होरमुज और क्यों है भारत चिंतित?

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पूनम शर्मा
ईरान और इज़रायल के बीच चल रही जंग अब केवल पश्चिम एशिया तक सीमित नहीं रही। इसके गंभीर प्रभाव अब वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति पर मंडराने लगे हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए यह युद्ध एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है, खासकर जब यह फारस की खाड़ी से होकर गुजरने वाले प्रमुख तेल आपूर्ति मार्ग स्ट्रेट ऑफ होरमुज को प्रभावित कर सकता है।

युद्ध की पृष्ठभूमि
पिछले कुछ हफ्तों में इज़रायल द्वारा ईरान के सामरिक ठिकानों पर हमले और उसके जवाब में ईरान की ओर से मिसाइल हमलों ने क्षेत्र को एक गंभीर सैन्य टकराव की ओर धकेल दिया है। ये घटनाएं केवल दो देशों के बीच का मामला नहीं रहीं, बल्कि इनके प्रभाव अब वैश्विक तेल व्यापार पर पड़ने लगे हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश खुलकर इज़रायल का समर्थन कर रहे हैं, जबकि चीन और रूस की नजरें ईरान के साथ हैं। इस भू-राजनीतिक संघर्ष का सबसे बड़ा झटका तेल आयात पर निर्भर देशों को लग सकता है — जिसमें भारत प्रमुख है।

भारत की ऊर्जा आपूर्ति पर संकट
भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 85% कच्चा तेल आयात करता है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया के देशों — सऊदी अरब, इराक, कुवैत, और ईरान — से आता है। यह तेल आपूर्ति एक बेहद महत्वपूर्ण जलमार्ग, स्ट्रेट ऑफ होरमुज (Strait of Hormuz), से होकर गुजरती है।

अगर ईरान और इज़रायल के बीच युद्ध और अधिक उग्र हुआ, तो यह समुद्री मार्ग अस्थायी रूप से बंद हो सकता है या खतरनाक बन सकता है। ऐसे में भारत को मिलने वाली लगभग 40 प्रतिशत तेल आपूर्ति पर सीधा असर पड़ेगा। इसके चलते देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भारी उछाल, महंगाई और उद्योगों पर प्रभाव पड़ सकता है।

क्या है स्ट्रेट ऑफ होरमुज?
स्ट्रेट ऑफ होरमुज फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ने वाला एक संकरा समुद्री मार्ग है, जिसकी लंबाई करीब 167 किलोमीटर और चौड़ाई केवल 39 किलोमीटर है। यह मार्ग ईरान और ओमान के बीच स्थित है।

दुनिया में समुद्र के रास्ते कच्चे तेल की सबसे बड़ी आवाजाही इसी रास्ते से होती है। अनुमान है कि हर दिन यहां से करीब 2 करोड़ बैरल तेल गुजरता है। यही रास्ता सऊदी अरब, कुवैत, इराक और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के लिए एकमात्र समुद्री आउटलेट है। भारत के लिए यह मार्ग जीवनरेखा की तरह है।

इस जलमार्ग का एक किनारा ईरान के नियंत्रण में है, जो इसे रणनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील बना देता है। यदि ईरान इस जलमार्ग को अस्थायी रूप से बंद करता है या इसमें बाधा उत्पन्न करता है, तो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के तेल बाजार में हाहाकार मच सकता है।

भारत की तैयारियाँ और वैकल्पिक रणनीतियाँ
भारत सरकार ने हालात की गंभीरता को समझते हुए पहले से ही वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तलाश शुरू कर दी है। भारत अब पश्चिम अफ्रीका, अमेरिका, रूस और दक्षिण अमेरिकी देशों से आपूर्ति बढ़ाने की संभावनाएँ तलाश रहा है।

इसके अलावा, भारत के पास अपनी जरूरत के अनुसार लगभग 39 मिलियन बैरल का रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves – SPR) है, जिसे कुछ हफ्तों तक आपातकालीन स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है।

भारत ने तेल कंपनियों को भी निर्देश दिए हैं कि वे दीर्घकालिक अनुबंधों के तहत अधिक मात्रा में तेल खरीदें ताकि अनिश्चितता की स्थिति में देश की आपूर्ति बनी रहे।

वैश्विक बाजार पर असर
इस संकट ने वैश्विक तेल बाजार में भी भारी उथल-पुथल मचाई है। क्रूड ऑयल की कीमतें 110 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर चली गई हैं, जो भारत जैसे आयात-निर्भर देशों के लिए एक गंभीर आर्थिक दबाव पैदा कर रही हैं। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि अब लगभग तय मानी जा रही है।

भारत की कूटनीतिक रणनीति
भारत ने अब तक ईरान-इज़रायल विवाद में एक संतुलित रुख बनाए रखा है। भारत की नीति स्पष्ट है — वह किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं करता और क्षेत्र में शांति व स्थिरता की बहाली का पक्षधर है। भारत ने संयम बरतते हुए दोनों देशों से संवाद और कूटनीतिक समाधान की अपील की है।

वहीं, भारत ईरान के साथ पुराने व्यापारिक और ऊर्जा संबंधों को ध्यान में रखते हुए, वहाँ  की परिस्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए है।

आगे क्या ?
ईरान और इज़रायल के बीच यह टकराव केवल दो देशों की लड़ाई नहीं रह गई है, बल्कि यह एक वैश्विक ऊर्जा संकट की आहट बन चुकी है। भारत जैसे विशाल उपभोक्ता देश के लिए यह समय है कूटनीति, रणनीतिक भंडारण और आपूर्ति चैन विविधीकरण की परीक्षा का।

हालांकि भारत सरकार स्थिति पर सतर्क है, लेकिन यदि युद्ध और लंबा खिंचता है या स्ट्रेट ऑफ होरमुज में आपूर्ति ठप होती है, तो भारत में आम नागरिक से लेकर उद्योग तक सभी पर इसका असर पड़ना तय है।

अब यह देखना अहम होगा कि भारत किस तरह इस संकट से उबरता है — क्या कूटनीति से हल निकलेगा या तेल की आग दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को झुलसाएगी?

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