इज़रायल-ईरान संघर्ष: दुनिया दो धड़ों में बंटी, कौन किसके साथ और भारत का रुख क्या?

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 जून: मध्य पूर्व में इज़रायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव अब केवल क्षेत्रीय मुद्दा नहीं रहा, बल्कि इसने वैश्विक भू-राजनीति को दो स्पष्ट धड़ों में बांट दिया है। इज़रायल के हालिया हवाई हमलों और ईरान की परमाणु प्रतिक्रिया की धमकियों ने दुनिया को एक बड़े संघर्ष के मुहाने पर ला खड़ा किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन सा देश किसके साथ खड़ा है और इस नाजुक स्थिति में भारत का क्या रुख है?

दो धड़ों में बंटी दुनिया: समर्थन और निंदा

इज़रायल का दावा है कि उसके सैन्य हमले ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने के लिए आवश्यक हैं। इस रुख को कई प्रमुख पश्चिमी देशों का समर्थन मिल रहा है:

इज़रायल के समर्थक: संयुक्त राज्य अमेरिका (US), फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम (UK), जर्मनी और इटली जैसे देश इज़रायल की आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करते हैं और ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चिंता व्यक्त करते हैं। ये देश अक्सर ईरान पर अस्थिर करने वाली गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हैं।
इसके विपरीत, कुछ देश इज़रायल की कार्रवाई की निंदा कर रहे हैं और ईरान के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं या उसके पक्ष में सहानुभूति रखते हैं:

इज़रायल का विरोध/ईरान के समर्थक: चीन, यमन और इराक जैसे देश इज़रायल की कार्रवाइयों का विरोध करते हैं और मध्य पूर्व में अमेरिकी व पश्चिमी प्रभाव को चुनौती देते हैं। रूस का रुख भी ईरान के प्रति अधिक झुकाव वाला है, खासकर उनके साझा भू-राजनीतिक हितों के कारण।

अन्य देशों की प्रतिक्रिया: संयम और चिंता

कई अन्य देशों ने भी इस बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की है और सभी पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया है:

पाकिस्तान: पाकिस्तान ने स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है और सभी पक्षों से तनाव कम करने का आग्रह किया है।
तुर्की: तुर्की, जिसने हाल के दिनों में पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है, ने भी मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की है और शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया है।
कतर: कतर ने भी इस मामले पर चिंता व्यक्त की है और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए बातचीत का समर्थन किया है।

भारत का संतुलित और कूटनीतिक रुख

इस संवेदनशील स्थिति में भारत ने बेहद संतुलित और कूटनीतिक रुख अपनाया है। भारत ने किसी भी पक्ष का सीधा समर्थन या निंदा करने से परहेज किया है। इसके बजाय, भारत ने लगातार सभी पक्षों से तनाव कम करने, बातचीत और कूटनीति के माध्यम से मुद्दों को सुलझाने का आग्रह किया है।

बातचीत और कूटनीति पर जोर: भारत ने इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए संवाद और कूटनीति की आवश्यकता पर जोर दिया है।
SCO के साथ जुड़ाव: भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के साथ चर्चा में भाग लिया है, जो इस क्षेत्र में बहुपक्षीय संवाद का एक महत्वपूर्ण मंच है।
ईरानी समकक्षों के साथ संवाद: भारत ईरानी समकक्षों के साथ भी सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है, जिससे स्थिति को शांत करने और क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए राजनयिक चैनलों को खुला रखा जा सके।

भारत का यह रुख उसकी “रणनीतिक स्वायत्तता” की विदेश नीति के अनुरूप है, जहाँ वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है और किसी भी गुट का हिस्सा बनने से बचता है। भारत इस बात से भी वाकिफ है कि मध्य पूर्व में कोई भी बड़ा संघर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेषकर तेल की कीमतों और भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा पर सीधा असर डालेगा।

यह स्पष्ट है कि इज़रायल-ईरान संघर्ष ने दुनिया को एक नाजुक मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहाँ वैश्विक शक्तियां अलग-अलग धड़ों में बंटी हुई हैं, जबकि भारत जैसे देश शांतिपूर्ण समाधान के लिए कूटनीतिक प्रयास कर रहे हैं।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.