पूनम शर्मा
13 जून की सुबह एक सामान्य सुबह नहीं थी। यह वो घड़ी थी जब इज़रायल ने वह कर दिखाया जिसकी दुनिया को आशंका थी — ईरान की राजधानी तेहरान और उसके सैन्य ठिकानों पर जोरदार हमला। बताया जा रहा है कि इस प्रीएंप्टिव स्ट्राइक में ईरान के ताकतवर इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के प्रमुख हुसैन सलामी मारे गए। उनके साथ कई अन्य बड़े सैन्य अधिकारी भी निशाना बने। यह हमला इज़रायल की आक्रामक नीति का स्पष्ट संकेत है, पर इसके नतीजे सिर्फ इज़रायल और ईरान तक सीमित नहीं रहने वाले — बल्कि पूरा विश्व अब एक नए संकट की ओर खिंचता दिखाई दे रहा है।
चारों तरफ दुश्मन और भीतर गहराता संकट
इज़रायल का यह निर्णय, भले ही आत्मरक्षा में लिया गया हो, पर यह आग अब सीमाओं के पार लपटें फैलाने को तैयार है। हकीकत ये है कि इज़रायल आज चारों ओर दुश्मनों से घिरा हुआ है — उत्तर में लेबनान का हिज़्बुल्लाह, दक्षिण में हमास और गाज़ा, पूर्व में ईरान समर्थित सीरिया और अब प्रत्यक्ष रूप से ईरान। ऐसे में यह देश निरंतर अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है।
इज़रायल के लिए यह कोई साधारण सैन्य कार्रवाई नहीं थी। यह एक स्पष्ट संदेश है कि जब अस्तित्व खतरे में हो, तो आत्मरक्षा ही सर्वोच्च धर्म है। रक्षा मंत्री इसराइल कात्ज़ ने यह स्वीकारा कि उन्हें ईरान से मिसाइल और ड्रोन हमलों की तीव्र आशंका है। इसीलिए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। लेकिन बड़ा सवाल यह है — क्या इज़रायल के पास अब कोई और विकल्प बचा है?
ईरानी सरकारी टीवी ने राजधानी में जोरदार धमाकों की पुष्टि की है। तेहरान की वायु रक्षा प्रणाली पूरी तरह सक्रिय है। वहीं ईरान ने भी संकेत दिए हैं कि वह यूरेनियम संवर्धन को एक नए स्तर पर ले जाएगा, नई छठी पीढ़ी की मशीनें लगाएगा और परमाणु हथियार कार्यक्रम को तेज करेगा। यह साफ है कि ईरान अब रुकने वाला नहीं।
संयुक्त राष्ट्र की परमाणु एजेंसी IAEA पहले ही ईरान के गैर-अनुपालन को लेकर चिंतित है, लेकिन अब हालात नियंत्रण से बाहर होते दिख रहे हैं। अमेरिका ने खुद को इस हमले से अलग बताया है, पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि यह संघर्ष अब बड़े युद्ध की ओर बढ़ सकता है।
तीसरे विश्व युद्ध की आहट?
आज जब तेल की कीमतों में 6% की अचानक वृद्धि देखी गई, तो यह केवल आर्थिक हलचल नहीं थी। यह संकेत था कि दुनिया अब फिर से वैश्विक अशांति की दहलीज पर खड़ी है। यूक्रेन-रूस संघर्ष अभी थमा नहीं, दक्षिण चीन सागर में तनाव बना हुआ है, और अब मध्य पूर्व जल रहा है।
विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि यदि ईरान और इज़रायल का यह टकराव लंबा चलता है, तो यह पूरी दुनिया को अपने में घसीट लेगा। अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र, जिनके हित इस क्षेत्र में गहरे हैं, लंबे समय तक तटस्थ नहीं रह सकते। वहीं रूस और चीन, जो ईरान के निकट माने जाते हैं, अपने तरीके से इस संघर्ष में दखल दे सकते हैं। इस संतुलन को बिगड़ने में अब ज़्यादा समय नहीं लगेगा।
इज़रायल के पास क्या विकल्प?
इज़रायल के लिए यह युद्ध सिर्फ सामरिक नहीं, अस्तित्व का है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पहले ही कह चुके हैं — अब नरमी का कोई स्थान नहीं। यह वही नेतन्याहू हैं जिन्होंने 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले के बाद कहा था कि अब इज़रायल “पूर्ण युद्ध की मुद्रा” में है।
दरअसल, इज़रायल आज उस स्थिति में है जहाँ ‘करो या मरो’ की नीति ही अंतिम विकल्प बची है। युद्ध न सिर्फ उसकी सीमाओं पर है, बल्कि विचारधाराओं के स्तर पर भी — एक ओर लोकतांत्रिक यहूदी राष्ट्र, और दूसरी ओर कट्टरपंथी इस्लामी शासन।
क्या यहूदी राष्ट्र का अस्तित्व संकट में?
इतिहास गवाह है कि जब-जब इज़रायल पर चारों ओर से हमला हुआ, उसने अप्रत्याशित तरीके से पलटवार किया। लेकिन यह बारूदी सुरंग अब बहुत अधिक खतरनाक हो चुकी है। परमाणु तकनीक से लैस ईरान, क्षेत्रीय मिलिशियाएं, और वैश्विक ताकतों के छद्म समर्थन के बीच इज़रायल की सुरक्षा अब सिर्फ उसकी सैन्य ताकत पर नहीं, बल्कि उसकी कूटनीतिक कुशलता पर भी निर्भर है।
दुनिया को चाहिए त्वरित मध्यस्थता
आज की तारीख में इज़रायल और ईरान का टकराव केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं रहा। यह वैश्विक राजनीति का बारूदी ढांचा बन चुका है। अगर अब भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस पर स्पष्ट, निर्णायक और निष्पक्ष कदम नहीं उठाए, तो आने वाले हफ्तों में हम विश्व युद्ध जैसी स्थिति की ओर बढ़ सकते हैं।
इज़रायल के लिए अब शांति की कोई गारंटी नहीं, जब तक वह अपने चारों ओर सुरक्षा की मजबूत दीवार नहीं बना लेता। लेकिन सवाल यह है कि दीवारें कब तक युद्ध की आंधी को रोक पाएँगी?